अमेरिका के कैलिफॉर्निया प्रांत की सेनेट जूडिशियरी कमेटी ने जातिगत भेदभाव बिल को सर्वसम्मति से पारित कर दिया है. समिति के सभी आठ सदस्यों ने बिल के समर्थन में मतदान किया. इस बिल को हिंदुत्ववादी संगठनों के लिए एक बड़ा झटका बताया जा रहा है क्योंकि कई प्रभावशाली अमेरिकी हिंदू संगठन इस बिल का विरोध कर रहे थे. लेकिन अमेरिका में जातिगत भेदभाव झेल चुके बहुत से लोग इसे अपनी जीत मान रहे हैं. सिएटल के बाद कैलिफॉर्निया प्रांत ने जाति आधारित भेदभाव को बैन करके समता आधारित समाज निर्मिती के लिए एक कदम आगे बढ़ाया है.
अमेरिका में जाति का कितना साया
सिएटल और कैलिफॉर्निया तकनीक का सेंटर हैं जहां बड़ी संख्या में दक्षिण एशियाई लोग बड़ी टेक कंपनियों में काम करते हैं. इन्हीं में से एक सिस्को पर एक मुकदमा चला जब उसके एक कर्मचारी ने अपने दो सुपरवाइजरों पर जाति के आधार पर भेदभाव करने का आरोप लगाया. इस मुकदमे ने अमेरिका में जाति को लेकर अनुभवों और पर बहस छेड़ दी और इसे इक्वलिटी लैब्स नाम के एक संगठन ने मुद्दा बनाया.2018 में इक्वलिटी लैब्स ने अमेरिका में जातियों पर एक रिसर्च रिपोर्ट छापी. यह रिपोर्ट 1500 लोगों से बात करके बनाई गई थी. इसमें भाग लेने वाले 60 फीसदी लोगों ने बताया कि दलितों को जाति आधारित अपमानजनक मजाक और भेदभाव सहन करना पड़ता है.
2021 में कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस की एक रिपोर्ट में बताया गया, “मोटे तौर पर आधे से अधिक अमेरिकी हिंदू” किसी जाति समूह के साथ अपनी पहचान जोड़ते हैं. रिसर्च में बताया गया कि बहुत से प्रवासी अपने साथ अपनी पहचान लेकर आते हैं जिसकी जड़ें उनके पैतृक जन्मभूमि से जुड़ी है लेकिन बहुत से लोगों ने उसे अमेरिकी पहचान के लिए छोड़ दिया है. हालांकि इसके बाद भी उन्हें भेदभाव करने वाली ताकतों, ध्रुवीकरण और उनकी पहचान से जुड़े सवालों से मुक्ति नहीं मिल पाई है.”
इन समूचे सीनियर जर्नालिस्ट दिलीप मंडल लिखते है कैलिफ़ोर्निया राज्य जाति के नाम पर भेदभाव रोकने का क़ानून बनाना चाहता है और हिंदू अमेरिकन संगठन सड़क और ट्राम लाइन पर आकर विरोध कर रहे हैं। कैलिफ़ोर्निया की सीनेट के सामने आज दोनों पक्ष आमने-सामने आ गए। पुलिस को दोनों के बीच घोड़े दौड़ाने पड़े। हथियार लेकर आना पड़ा। ऐसे बनेगी हिंदू एकता? वंचितों को थोड़ा हक़ मिल रहा है। लेने दो। एडजस्ट करो।
अमेरिका में प्रवासियों का जाति अनुभव
फरवरी में सिएटल की सिटी कॉउंसिल ने जाति की पहचान को संरक्षित दर्जा दे दिया. इसके बाद अब कैलिफॉर्निया में यह बिल पेश किया गया. बहुत से लोगों ने इसका विरोध किया. समीर कालरा दूसरी पीढ़ी के भारतीय अमेरिकी और हिंदू अमेरिका फाउंडेशन के प्रबंध निदेशक हैं. अमेरिका में भारतीय के तौर पर उनका अनुभव बिल्कुल अलग है.उन्होंने और जिन लोगों की वो बात करते हैं उन्होंने कभी “जाति को देखा या अनुभव नहीं किया है.” कालरा का कहना है, “इसमें वे लोग भी शामिल हैं जो भारत में हाशिये पर रहने वाले समुदायों से आते हैं.”
जाति को शामिल करने से क्या होगा?
नेपाल में जन्मे समाजसेवी प्रेम पेरियार को वो घटना याद है जब कैलिफॉर्निया के बे एरिया मेंपहली बार उन्हें उनकी जाति याद दिलाई गई थी.”दूसरे लोगों की तरह मैं भी हाथ में प्लेट और चम्मच लिये टेबल की तरफ बढ़ रहा था लेकिन जब खाना लेने की मेरी बारी आई तो मेजबान ने कहा, ‘प्रेम क्या तुम रुकोगे? मैं तुम्हारे लिए खाना लाता हूं.’ मैंने मान लिया. यह ठीक है, मैं आपका खाना खराब नहीं करूंगा.”
पेरियार का मानना है कि अमेरिकी तंत्र को जाति के बारे में बताना पहला कदम है और उनके लिए इस कानून का मतलब है संरक्षण. वहाब का मानना है कि बिल का “सबसे बड़ा असर” संरक्षण है. उन्होंने कहा, “इससे लोगों को यह महसूस होगा कि उनके पास कुछ है और अगर उन्हें कभी भेदभाव की कोशिशें या फिर उनके खिलाफ जाती हुई महसूस हुईं तो उनके पास उसे सुधारने का संसाधन होगा. वो यह कह सकेंगे, ‘इसकी अनुमति नहीं है. और इसलिए मैं संविधान के तहत संरक्षित हूं.'”
दक्षिण एशिया में जातियों का सामाजिक-आर्थिक ढांचा हजारों साल पुराना है. इसमें शुद्धता और गंदगी से जुड़े नियम भी हैं. ये नियम कुछ समूहों को “अछूत” का दर्जा देते हैं, ये लोग खुद को इस ढांचे में सबसे निचले पायदान पर खड़ा देखते हैं. इन्हें कुछ और जातीय समूहों के साथ “दलित” कहा जाता है. भोजन जातीय शुद्धता के पैमानों में से एक है और इनसे जुड़े नियमों के मुताबिक दलित जिस खाने को छू लेते हैं वह “गंदा” हो जाता है. इसका मतलब है कि गैरदलित इसे नहीं खा सकते. 2015 में कैलिफॉर्निया आने पर पेरियार को इसका अनुभव हुआ.
पेरियार डेमोक्रैटिक सेनेटर आयशा वहाब का समर्थन करते हैं जो कैलिफॉर्निया में जाति आधारित भेदभाव को खत्म करने की कोशिश में हैं. मार्च में वहाब ने एक बिल पेश किया जिसे मंगलवार को सेनेट की जूडिशरी कमेटी ने पारित कर दिया है. अगर कानून बन जाये तो कैलिफोर्निया जाति को सेक्स, वंश, धर्म और लिंग के साथ संरक्षण का दर्जा मिल जाएगा.
वहाब का कहना है कि जैसे जैसे दूसरे राज्यों में विविधता बढ़ रही है, यह बिल दूसरे राज्यों पर भी आधिकारिक भाषा में जाति को शामिल करने के लिए दबाव बनाएगा. वह कहती हैं कि जब कैलिफॉर्निया आगे आता है तो दूसरे भी उसे अपनाते हैं. मुझे पूरा यकीन है कि इस बार भी यही होगा.”
बिल का विरोध करने वाले मौजूदा अमेरिकी कानूनों का जिक्र करते हैं जो जिसमें वंश के आधार पर भेदभाव की बात है. उन्हें लगता है कि यह जाति के आधार पर भेदभाव की व्याख्या के लिए पर्याप्त है. समीर कालरा और उनका संगठन जाति विरोधी विशेष कानून और उसके असर को लेकर आशंकित हैं. उनका कहना है, “लोग आशंकित हैं कि दूसरी, तीसरी पीढ़ी के बच्चों पर इसका क्या असर होगा. एक समुदाय के तौर पर दूसरे समुदायों के नफरती अपराधों, हिंदूफोबिया या आप्रवासी विरोध को हम भी झेलते हैं. क्या दक्षिण एशियाई लोगों की एक समुदाय के तौर पर प्रोफाइल तैयार की जाएगी? क्या नियोक्ता अब इनके आधार पर किसी को नौकरी पर रखने के बारे में फैसला करेंगे क्योंकि वे सोचते हैं कि भारतीय अमेरिकी या दक्षिण एशियाई अमेरिकी जाति के आधार पर अपने आप भेदभाव करते हैं?”