महाराष्ट्र में दलित-उच्च जाति की हिंसा के केंद्र में 200 साल पुराने भीमा-कोरेगांव युद्ध का जश्न है, जहाँ अंग्रेजों की सेवा करने वाले महार दलित सैनिकों ने ब्राह्मण पेशवाओं की सेना को हराया था। लेकिन आज भी, ‘महार’ भारतीय सेना का एक प्रमुख अंग है—आज़ादी के बाद से, यह उस रेजिमेंट का नाम है जिसने दो सेना प्रमुख दिए हैं, कई युद्ध सम्मान जीते हैं, और जिसे देश का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार, परमवीर चक्र, प्राप्त है।
अपनी स्थापना के८४ वर्ष पूरे करने जा रही महार रेजीमेंट की स्थापना में भारत के संविधान निर्माता डॉ. बीआर अंबेडकर की बड़ी भूमिका रही है। रेजीमेंट में उपलब्ध ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक सन 1892 से तत्कालीन अंग्रेज सरकार ने केवल उच्च वर्ग की जातियों को ही सेना में लेने नियम बना दिया था। जिसका विराेध डॉ. अंबेडकर के पिता सूबेदार मेजर रामजी मालोजी सकपाल ने पुरजोर तरीके से किया।

करीब 25 साल बाद जैसे ही प्रथम विश्वयुद्ध समाप्त हुआ। अंग्रेज सरकार ने 1917 में 111 महार रेजिमेंट की स्थापना की। लेकिेन आर्थिक कारणों का हवाला देते हुए 1920 में इसका विलय 71 पंजाब रेजीमेंट में कर दिया। इस तरह महार रेजिमेंट तत्कालीन अस्तित्व खत्म हो गया। इधर 20 वीं सदी के शुरुआती दशकों में महारों के लिए एक अलग बटालियन बनाने की मांग फिर जोर पकड़ने लगी। जिसके बाद 01 अक्टूबर सन 1941 को नानाबड़ी बेलगाम में इस रेजीमेंट का पुर्नगठन किया गया।
महार रेजिमेंट का युद्धघोष – बोलो हिंदुस्तान की जय ‘
बोलो हिंदुस्तान की जय ‘ के अपने युद्धघोष के साथ , महार रेजिमेंट विभाजन के दौरान, १९६२ के युद्ध के दौरान लद्दाख में, १९७१ के युद्ध के दौरान पंजाब में सक्रिय रही है, तथा १९८७ में श्रीलंका में शांति स्थापना के दौरान मेजर रामास्वामी परमेश्वरन के कार्य के लिए परमवीर चक्र प्राप्त किया।रेजिमेंट का प्रतीक चिन्ह क्रॉस की हुई विकर्स मीडियम मशीन गनों का एक जोड़ा है – यह सेना की उन पहली रेजिमेंटों में से एक थी जिसने मशीन गन का इस्तेमाल किया – और उस पर एक खंजर बना हुआ है। आज़ादी से पहले, खंजर की जगह कोरेगांव का स्तंभ बना हुआ था.

आजादी के बाद
महार रेजिमेंट के आधिकारिक इतिहास में लिखा है, “विभाजन के बाद की अशांत परिस्थितियों के दौरान, रेजिमेंट ने हिंसक सशस्त्र भीड़ के सामने लाखों शरणार्थियों के सुरक्षित स्थानांतरण में मदद की।”१९५६ में, रेजिमेंट ने बॉर्डर स्काउट्स की तीन बटालियनों को अपने में समाहित कर लिया, जिन्हें पहले अशांत पंजाब सीमा पर तैनात करने के लिए गठित किया गया था। रेजिमेंट की वर्ग संरचना में वर्षों के दौरान बदलाव आया, और सभी राज्यों और वर्गों के सैनिकों को इसमें शामिल किया गया, जबकि कुछ बटालियनों में मूल महार संरचना को बरकरार रखा गया।

स्थापना दिवस पर अनेक कार्यक्रमों का आयोजन एवं सोशल मीडिया पर शुभकामनाओं की बौछार
अपनी स्थापना के८४ वर्ष पूरे करने जा रही महार रेजीमेंट के गौरवशाली इतिहास को याद करने के लिए पुरे देश में कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है, ताकी आज के युवा वर्ग को इसके प्रति जानकारी हासिल हो सके. इसके अलावा सोशल मीडिया पर लोगों ने अपनी शुभकामनाओं के साथ सन्देश पोस्ट किये हैं.