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अरावली की ‘गलत परिभाषा’ पर बवाल, कांग्रेस ने पूछा- किसके फायदे के लिए अड़ी है सरकार?

अरावली की ‘गलत परिभाषा’ पर बवाल, कांग्रेस ने पूछा- किसके फायदे के लिए अड़ी है सरकार?

अरावली पहाड़ियों की नई परिभाषा को लेकर कांग्रेस ने केंद्र सरकार पर जनता को गुमराह करने का आरोप लगाया है। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने इसे पर्यावरण के लिए खतरनाक बताया।

अरावली पहाड़ियों को लेकर राजस्थान, हरियाणा, गुजरात और राजधानी दिल्ली में विरोध-प्रदर्शन जारी हैं। वहीं, कांग्रेस ने बुधवार को केंद्र सरकार पर अरावली के मुद्दे को लेकर जनता को गुमराह करने का आरोप लगाया। कांग्रेस ने पूछा कि वह पहाड़ियों की पूरी तरह से गलत परिभाषा को क्यों आगे बढ़ा रही है? बुधवार को कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर केंद्र सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि अरावली की जिस नई परिभाषा को अपनाया जा रहा है, उसका देश की प्रमुख संस्थाओं ने विरोध किया है।

कांग्रेस का आरोप: विशेषज्ञों की राय को किया नजरअंदाज
जयराम रमेश ने कहा कि अरावली की इस नई परिभाषा का भारतीय वन सर्वेक्षण, सुप्रीम कोर्ट की सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी और सुप्रीम कोर्ट के एमिकस क्यूरी पहले ही विरोध कर चुके हैं। इसके बावजूद सरकार इस परिभाषा को आगे बढ़ाने पर अड़ी हुई है। कांग्रेस का आरोप है कि विशेषज्ञ संस्थाओं की आपत्तियों को नजरअंदाज किया जा रहा है ,यह कदम पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा साबित हो सकता है।

कांग्रेस का सीधा सवाल
कांग्रेस ने सवाल उठाया है कि सरकार अरावली को दोबारा परिभाषित करने पर क्यों जोर दे रही है और यह बदलाव आखिर किसके हित में किया जा रहा है। पार्टी का कहना है कि अरावली भारत की अमूल्य प्राकृतिक धरोहर हैं और इनके संरक्षण से कोई समझौता देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ होगा। फिलहाल, अरावली की नई परिभाषा को लेकर राजनीतिक टकराव और पर्यावरणीय चिंताएं दोनों गहराती जा रही हैं, जिससे संकेत मिलते हैं कि आने वाले दिनों में यह मुद्दा और बड़ा राजनीतिक विवाद बन सकता है।

पर्यावरण पर पड़ सकता है गहरा असर
पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि अरावली पहाड़ियां सिर्फ ऊंची चोटियों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इनके निचले हिस्से और आसपास के इलाके भी बेहद अहम भूमिका निभाते हैं। ये क्षेत्र भूजल रिचार्ज, जैव विविधता के संरक्षण, जलवायु संतुलन बनाए रखने और मिट्टी की स्थिरता के लिए जरूरी हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, अगर इन हिस्सों को कानूनी संरक्षण से बाहर किया गया, तो उत्तर भारत में पानी की किल्लत और प्रदूषण की समस्या और अधिक गंभीर हो सकती है।

केंद्र सरकार का पक्ष
केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा है कि अरावली पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर जानबूझकर गलत जानकारी फैलाई जा रही है। उन्होंने स्पष्ट किया कि सरकार देश की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखला के संरक्षण के लिए लगातार काम कर रही है और पर्यावरण तथा अर्थव्यवस्था दोनों को साथ लेकर चलने की नीति पर कायम है। उन्होंने कहा ‘कोर्ट ने साफ कहा है कि दिल्ली, गुजरात और राजस्थान में फैली अरावली श्रृंखला का संरक्षण वैज्ञानिक आकलन के आधार पर किया जाना चाहिए।’ मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री के नेतृत्व में सरकार ने हमेशा ग्रीन अरावली को बढ़ावा दिया है और इस फैसले से सरकार की संरक्षण नीति को समर्थन मिला है। सरकार का दावा है कि अरावली क्षेत्र का 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सा अब भी संरक्षित रहेगा और खनन पर कोई ढील नहीं दी जा रही है।

जानिए क्या है अरावली की नई परिभाषा?
सरकार की नई परिभाषा के अनुसार, किसी क्षेत्र को अरावली पहाड़ी तभी माना जाएगा जब उसकी ऊंचाई आसपास की जमीन से कम से कम 100 मीटर अधिक हो। वहीं, अरावली रेंज की पहचान ऐसी दो या उससे ज्यादा पहाड़ियों के समूह के रूप में की गई है, जो एक-दूसरे से 500 मीटर के दायरे में स्थित हों। इस परिभाषा को लेकर विशेषज्ञों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि इससे अरावली के कई महत्वपूर्ण हिस्से जैसे ढलान, छोटी पहाड़ियां, तलहटी और भूजल रिचार्ज क्षेत्र कानूनी संरक्षण से बाहर हो सकते हैं, जिससे पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंचने की आशंका है।

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