यूपी के 10 राज्यसभा सांसद वर्ष 2026 में रिटायर हो जाएंगे। इन सदस्यों के रिटायर होने से बीएसपी का प्रतिनिधित्व उच्च सदन में खत्म हो जाएगा। इन सीटों पर चुनाव को लेकर सियासी सरगर्मियां तेज हो गई हैं। वर्ष 2026 में सेवानिवृत्त होने वाले राज्यसभा सांसदों में भाजपा, समाजवादी पार्टी और अन्य दलों के कई दिग्गज नेताओं के नाम शामिल हैं। मौजूदा विधानसभा संख्याबल के आधार पर राज्यसभा चुनाव का गणित लगभग साफ नजर आ रहा है, जिसमें भारतीय जनता पार्टी को बड़ा फायदा मिलता दिख रहा है।
लखनऊ: उत्तर प्रदेश के 10 राज्यसभा सांसद वर्ष 2026 में रिटायर हो जाएंगे। इन सदस्यों के रिटायर होने का सबसे बड़ा असर बहुजन समाज पार्टी पर पड़ने वाला है। राज्यसभा चुनाव का जो समीकरण अभी है, उससे साफ है कि बसपा को अगले साल होने वाले राज्यसभा चुनाव में किसी सीट पर जीत मिलनी संभव नहीं है। ऐसे में 36 साल बाद इस प्रकार का मौका होगा, जब बसपा का कोई प्रतिनिधि उच्च या निचले सदन में नहीं होगा। दरअसल, लोकसभा चुनाव 2024 में बसपा को किसी सीट पर जीत नहीं मिली। पार्टी शून्य के आंकड़े पर सिमटी थी। वहीं, वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन के बाद बसपा को राज्यसभा में सदस्य भेजने का मौका मिला। अभी बसपा के रामजी गौतम ही हैं, जो संसद के किसी भी सदन में पार्टी का प्रतिनिधित्व करते हैं। रामजी गौतम वर्ष 2026 में रिटायर करने वाले हैं। इसके बाद राज्यसभा भी बसपा विहीन हो जाएगी।
मायावती के करीबी गौतम
रामजी गौतम मायावती के करीबी नेताओं में गिने जाते हैं। लोकसभा चुनाव 2019 में सपा के साथ गठबंधन के बाद बसपा के एक सदस्य को राज्यसभा भेजने की तैयारी की गई। माना जा रहा था कि बसपा सुप्रीमो मायावती दिल्ली जाएंगी। हालांकि, उन्होंने रामजी गौतम को राज्यसभा भेजा। लखीमपुर खीरी के रहने वाले 49 वर्षीय रामजी गौतम 2 नवंबर 2020 को राज्यसभा के सदस्य बने। उन्होंने पार्टी में राष्ट्रीय कॉर्डिनेटर और पहले राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की भूमिका को निभाया है।
राज्यसभा की 10 सीटें नवंबर 2025 तक रिक्त होने जा रही हैं। इन सीटों पर चुनाव को लेकर सियासी सरगर्मियां तेज हो गई हैं। वर्ष 2026 में सेवानिवृत्त होने वाले राज्यसभा सांसदों में भाजपा, समाजवादी पार्टी और अन्य दलों के कई दिग्गज नेताओं के नाम शामिल हैं। मौजूदा विधानसभा संख्याबल के आधार पर राज्यसभा चुनाव का गणित लगभग साफ नजर आ रहा है, जिसमें भारतीय जनता पार्टी को बड़ा फायदा मिलता दिख रहा है।
10 सांसद होंगे रिटायर
उत्तर प्रदेश से 10 राज्यसभा सांसदों का कार्यकाल 2026 में समाप्त हो रहा है। इनमें भाजपा के बृजलाल, सीमा द्विवेदी, चंद्रप्रभा उर्फ गीता, हरदीप सिंह पुरी, दिनेश शर्मा, नीरज शेखर, अरुण सिंह और बीएल वर्मा शामिल हैं। वहीं, बहुजन समाज पार्टी के रामजी गौतम और समाजवादी पार्टी की ओर से प्रो. रामगोपाल यादव का कार्यकाल भी इसी अवधि में समाप्त होगा। इस तरह कुल 10 सीटें खाली होंगी, जिन पर चुनाव कराए जाएंगे।
उत्तर प्रदेश विधानसभा के वर्तमान संख्याबल पर नजर डालें तो कुल 403 सीटों में से फिलहाल 402 सीटें भरी हुई हैं, जबकि एक सीट रिक्त है। मौजूदा स्थिति में बीजेपी के पास 258 विधायक, समाजवादी पार्टी के 103 विधायक, अपना दल के 13 विधायक, राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के 9 विधायक, निषाद पार्टी के 5 विधायक, सुभासपा के 6 विधायक, कांग्रेस के 2 विधायक, जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के 2 विधायक और बसपा का 1 विधायक हैं। साथ ही, यूपी विधानसभा में सपा के बागी कुल 3 विधायक हैं।
राज्यसभा चुनाव में एक सीट जीतने के लिए करीब 37 विधायकों के समर्थन की आवश्यकता होती है। इस गणित के आधार पर यूपी में सत्तारूढ़ बीजेपी को स्पष्ट बढ़त मिलती दिख रही है। मौजूदा संख्याबल के अनुसार भाजपा अपने दम पर 8 राज्यसभा सीटें जीतने की स्थिति में है, जबकि समाजवादी पार्टी को 2 सीटें मिलने की संभावना है।
बसपा के लिए मुश्किल
यूपी विधानसभा के इस गणित में बहुजन समाज पार्टी के लिए स्थिति काफी चुनौतीपूर्ण नजर आ रही है। विधानसभा में केवल एक विधायक होने के कारण बसपा राज्यसभा में इस बार शून्य पर सिमट सकती है। अन्य छोटे दलों के पास भी स्वतंत्र रूप से राज्यसभा सीट जीतने लायक संख्याबल नहीं है। ऐसे में मायावती की मुश्किलें आने वाले विधानसभा चुनाव में बढ़ने वाली हैं। 2027 के यूपी चुनाव में मायावती के सामने अधिक सीटों पर जीत दिलाने की चुनौती होगी, ताकि दिल्ली में पार्टी की आवाज गूंजती रहे।
1989 से संसद में प्रतिनिधित्व
कांशीराम ने वर्ष 1984 में बसपा का गठन किया था। 1989 के यूपी विधानसभा चुनाव में उतरी पार्टी ने 13 सीटों पर जीत दर्ज की। पहली बार 1989 लोकसभा चुनाव में पहली बार 3 सीटों पर जीत दर्ज कर दिल्ली तक अपनी बात पहुंचाई। इसमें बिजनौर से मायावती भी शामिल थीं। 1993 में सपा और बसपा ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा। पार्टी को 67 सीटों पर जीत मिली। 1991 के लोकसभा चुनाव में मायावती को हार मिली थी। कांशीराम इटावा से सांसद चुने गए थे। 1993 में बसपा के मजबूत होने के बाद मायावती को वर्ष 1994 में पार्टी ने राज्यसभा भेजा। हालांकि, 1996 में यूपी की मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
लोकसभा और राज्यसभा में बसपा के सदस्यों की मौजूदगी आगे लगातार दर्ज की गई। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा भले शून्य पर सिमटी, लेकिन राज्यसभा में पार्टी की मौजूदगी रही। हालांकि, अब संकट बढ़ गया है। लोकसभा चुनाव 2024 में पार्टी को महज 2.04 फीसदी वोट शेयर मिले। इससे उसकी राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा छिनने का खतरा बढ़ गया है।


