भारत के चीफ जस्टिस एनवी रमाना ने राष्ट्रनिर्माता डॉ. बाबासाहब आंबेडकर को अभिवादन करते हुए कहा है डॉ. आंबेडकर द्वारा रचित संविधान के कारण ही वो भारत के सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बन पाए. अपने अमेरिका के दौरे के दौरान उन्होंने ये बात कही.
अमेरिका के फिलाडेल्फिया में इंडिपेंडेंस हॉल का दौरा करने के बाद, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एनवी रमाना ने नागरिकों की स्वतंत्रता, और लोकतंत्र को बनाए रखने और आगे बढ़ाने के लिए अथक परिश्रम करने की आवश्यकता पर जोर दिया, जिसके लिए उनके पूर्वजों ने लड़ाई लड़ी थी।
CJI ने संयुक्त राज्य अमेरिका के पहले सुप्रीम कोर्ट का भी दौरा किया। दो दिन पहले, CJI ने न्यूयॉर्क में कोलंबिया विश्वविद्यालय का दौरा किया था और इसके विशिष्ट पूर्व छात्र विश्वरत्न डॉ.बी.आर अंबेडकर को श्रद्धांजलि अर्पित की थी। जस्टिस रमाना का कोलंबिया लॉ स्कूल में श्री एडम कोलकर, डीन और ऑफिस ऑफ इंटरनेशनल एंड कम्पेरेटिव लॉ प्रोग्राम्स के कार्यकारी निदेशक द्वारा स्वागत किया गया। जस्टिस रमाना ने विश्वविद्यालय के पुस्तकालय भवन में स्थित डॉ बाबासाहब अम्बेडकर की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की थी।
उस अवसर पर जस्टिस रमाना ने कहा: “काफी साल पहले, डॉ बी.आर अम्बेडकर इस महान शिक्षा के गलियारों से गुजरते थे। आज मुझे उनके नक्शेकदम पर चलने का सम्मान मिला। यह मेरे लिए एक भावनात्मक क्षण है। मेरी कोई विशेषाधिकार प्राप्त पृष्ठभूमि नहीं है। मैं हूं एक साधारण किसान का बेटा। मैं विश्वविद्यालय की शिक्षा प्राप्त करने वाला परिवार में पहला हूं। आज मैं यहां भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में खड़ा हूं। ऐसी संभावना भारत के सबसे प्रगतिशील और भविष्यवादी संविधान के तहत डॉ बीआर अम्बेडकर के नेतृत्व में तैयार की गई थी। मैं और मेरे जैसे लाखों लोग हमेशा दूरदर्शी के ऋणी रहेंगे।
जब भारत के युवा गणराज्य की परिवर्तनकारी यात्रा इतिहास की किताबों में दर्ज होगी, तो इसका श्रेय भारत के संविधान और उसमें लोगों की आस्था को दिया जाएगा। डॉ अम्बेडकर सहित कई विश्व नेताओं को जन्म देने वाली इस संस्था में आज यहां खड़ा होना मेरे लिए सम्मान की बात है। वह आधुनिक भारत के संस्थापकों में से एक थे। उनके जीवन ने भारतीयों की पीढ़ियों को अपने स्वयं के मूल्य और पहचान में विश्वास करने के लिए प्रेरित किया है। मेरे देश की अब तक की 75 साल की लंबी यात्रा लोकतंत्र की ताकत का प्रमाण है।
यह आवश्यक है कि लोग, विशेषकर छात्र और युवा, लोकतंत्र के महत्व को समझें। आपकी सक्रिय भागीदारी से ही लोकतंत्र कायम और मजबूत हो सकता है। केवल एक सच्ची लोकतांत्रिक व्यवस्था ही विश्व में स्थायी शांति की नींव हो सकती है।”