बिहार विधानसभा चुनाव २०२५ में मायावती की बहुजन समाज पार्टी पश्चिम बिहार में नया समीकरण बना रही है. कैमूर, रोहतास, आरा और बक्सर जैसे सीमावर्ती जिलों में पार्टी का जनाधार बढ़ रहा है. जानिए कैसे बीएसपी ५ से ७ सीटों पर बिगाड़ सकती है एनडीए -महागठबंधन का खेल
पटना. बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही सियासी सरगर्मियां चरम पर हैं. एनडीए और महागठबंधन जहां बड़े दलों के समीकरण साधने में जुटे हैं, वहीं उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती भी चुपचाप लेकिन रणनीतिक तरीके से बिहार की राजनीति में अपनी जमीन तलाश रही है. खास तौर पर कैमूर, रोहतास और शाहाबाद के सीमावर्ती इलाकों में बीएसपी की सक्रियता ने राजनीतिक हलकों में नई चर्चा छेड़ दी है. सवाल उठ रहा है कि क्या इस बार मायावती का दल बिहार चुनाव में “किंगमेकर” की भूमिका निभा सकता है?
बीएसपी बिहार में सभी २४३ सीटों पर चुनाव लड़ेगी. इस बारे में बसपा मुखिया मायावती ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट भी किया था. दरअसल उत्तर प्रदेश की सीमा से सटे बिहार के पश्चिमी इलाकों- कैमूर, रोहतास, बक्सर और आरा (भोजपुर) में दलित और पासी वोटरों की संख्या अच्छी-खासी है. यही वो क्षेत्र है जहां से बीएसपी अपनी राजनीतिक पकड़ बढ़ाने की कोशिश में है. बीते कुछ महीनों में पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने इन जिलों का दौरा किया है.
कैमूर के चैनपुर, रोहतास के डेहरी और आरा के जगदीशपुर में मायावती के पोस्टर और ‘जय भीम-जय भारत’ के नारे अब सार्वजनिक दीवारों पर दिखाई देने लगे हैं. बता दें, कैमूर में बसपा का लगभग १ लाख से अधिक वोट शेयर है. २०२० में जमा खान ने बसपा से२४ हजार वोटों से बीजेपी के पूर्व मंत्री बृजकिशोर बिंद को हराया था. हालांकि बाद में वह जेडीयू में शामिल हो गए थे, जिसके बाद वह मंत्री बन गए थे.

बीएसपी का “संगठन सुदृढ़ीकरण अभियान”
स्थानीय सूत्रों के मुताबिक, बीएसपी ने इन जिलों में “संगठन सुदृढ़ीकरण अभियान” चलाया है. हर पंचायत स्तर पर ११ सदस्यीय “बहुजन विकास समिति” का गठन किया जा रहा है, जो पार्टी के लिए बूथ स्तर पर काम करेगी. बीएसपी की रणनीति बिल्कुल स्पष्ट है- दलित, अतिपिछड़ा और मुस्लिम वोट बैंक पर फोकस. पिछले विधानसभा चुनाव (२०२० ) में BSP ने बिहार की २४३ में से ८० सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. हालांकि पार्टी को 2.37% वोट शेयर मिला और सिर्फ जमा खान चैनपुर से चुनाव जीत सके थे और बाद में वह जेडीयू में शामिल हो गए थे. लेकिन करीब 30 सीटों पर BSP प्रत्याशी दूसरे या तीसरे स्थान पर रहे.
साइलेंट वोटरों पर मायावती की नजर!
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, मायावती की पार्टी इस बार ‘साइलेंट वोटर’ पर दांव खेल रही है- वो वर्ग जो पारंपरिक रूप से जेडीयू या आरजेडी को वोट देता था, लेकिन अब विकास और सम्मान दोनों के मुद्दे पर निराश है. बीएसपी का सबसे बड़ा फायदा है- उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती प्रभाव क्षेत्र. चंदौली, वाराणसी, सोनभद्र और मिर्जापुर जैसे जिलों से सटे बिहार के इलाके सामाजिक और भाषाई रूप से बहुत हद तक समान हैं. मायावती का नाम यहां नया नहीं है; २००५ और २०१० के चुनावों में भी पार्टी ने यहां से कई सीटों पर अच्छा प्रदर्शन किया था. इस बार पार्टी ने कैमूर, डेहरी, करहगर और नोखां जैसी सीटों पर ‘स्थानीय चेहरों’ को उम्मीदवार बनाने की रणनीति अपनाई है, ताकि बाहरी होने का टैग न लगे.
कितनी सीटों पर असर डाल सकती है बीएसपी
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि बीएसपी इस बार सीधे सत्ता में न सही, लेकिन कई सीटों के नतीजे बदलने में अहम भूमिका निभा सकती है. खासकर कैमूर, चैनपुर, रामगढ़, रोहतास, आरा, बक्सर और डेहरी जैसी सीटों पर अगर बीएसपी १० से १२ हजार वोट भी जुटा लेती है, तो मुकाबला तीन कोनों का हो सकता है. बिहार में मायावती की बीएसपी भले ही सत्ता की दौड़ में फिलहाल तीसरा मोर्चा दिखे, लेकिन पश्चिम बिहार के सीमावर्ती जिलों में उसका जनाधार बढ़ना बाकी दलों के लिए चेतावनी की तरह है. कैमूर से लेकर आरा तक बीएसपी का नेटवर्क धीरे-धीरे मजबूत हो रहा है. ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि २०२५ के बिहार चुनाव में मायावती भले “किंग” न बनें, लेकिन “किंगमेकर” ज़रूर बन सकती हैं.