आरपीआई (रामदास आठवले) , आरपीआई के अन्य दाल,कांग्रेस और शिवसेना के बौद्ध नेताओं को एकसाथ लेकर महामोर्चा का आयोजन किया गया है. १४ अक्टूबर को महामोर्चा का आयोजन आज़ाद मैदान पर करने का निर्णय लिया गया है. इस आंदोलन में विभिन्न राजकीय पक्षों के बौद्ध नेता एक साथ मिलकर सहभागी होंगे ऐसी जानकारी आयोजकों द्वारा दी गयी है.
महाबोधि महाविहार के मुक्ति के लिए आयोजित इस मोर्चा में लाखो की संख्या में बौद्ध उपासकों को शामिल होने का आवाहन किया गया है. विगत अनेक दशकों से महाबोधि विहार के लिए विभिन्न संगठनो द्वारा आंदोलन चल रहा है मगर बिहार सरकार के साथ साथ केंद्र सरकार के कानो पर जू तक नहीं रेंगती। पिछले लगभग २ वर्षो से महाबोधि मुक्ति का विषय जोर पकड़ने लगा है. अनेक भारतीय संस्थानों के साथ साथ विदेशी बुद्धा उपासकों द्वारा भी बिहार सरकार के सामने यह विषय रखा गया है , इसके लिए अनेक जन आंदोलन भी हुए मगर अब तक इसका सकारात्मक परिणाम नहीं आया ,ऐसा मत पत्रकार परिषद् में व्यक्त किया गया.

भारतीय संविधान ने सभी धर्मों को अपने धार्मिक स्थलों का व्यवस्थापन करने का अधिकार दिया है, तो यह अधिकार बौध्दो को क्यों नाकारा जा रहा है? १९४९ के टेम्पल मैनेजमेंट एक्ट में बदलाव करके ही महाबोधि विहार की समस्या सुलझायी जा सकती है. यह जिम्मेदारी बिहार और केंद्र सरकार की है.
जो लोग अपना संपूर्ण जीवन बौद्ध धम्म को समर्पित करते है उनके लिए महाबोधि विहार प्रेरणा का स्त्रोत है। पूरी दुनिया से लोग यहाँ ऊर्जा अर्जित करने पहुंचते है.इसलिए सरकार ने जल्द से जल्द महाबोधि विहार बौद्धों के हवाले करने की दिशा में कदम उठाना चाहिए ऐसा मत पत्रकार परिषद् में व्यक्त किया गया.
जिस दिन बाबासाहब आंबेडकर ने बुद्धा धम्म की दीक्षा ग्रहण की वह एक ऐतिहासिक दिन था, उसी का महत्व जानकर १४ अक्टूबर को महामोर्चा का आयोजन किया गया है, ऐसी जानकारी भी इस वक़्त दी गयी. लगभग ६० विविध संघटनाओ के सहयोग से इस महामोर्चा का आयोजन किया गया है। बौद्ध संघटनाओ के अतिरिक्त अन्य अनेक समाज बांधवों ने १४ अक्टूबर को निकलने वाले महामोर्चा को समर्थन दिया है. देशभर से उपसको को इस महामोर्चा में बड़ी संख्या में सहभागी होने का आवाहन आयोजकों द्वारा किया गया है.

मुख्य मांगें और मुद्दे
प्रबंधन पर बौद्धों का अधिकार: बौद्ध समुदाय बोधगया मंदिर अधिनियम, 1949 को रद्द करने और मंदिर का प्रबंधन पूरी तरह से बौद्ध अनुयायियों को सौंपने की मांग कर रहा है।
“ब्राह्मणों के कथित कब्जे” को हटाना: संगठन चाहते हैं कि मंदिर परिसर से “ब्राह्मणों” के कथित अवैध कब्जे को हटाया जाए।

विवाद का इतिहास
सम्राट अशोक का निर्माण: पहला मंदिर सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में बनवाया था, और वर्तमान मंदिर पांचवीं या छठी शताब्दी का है।
BT एक्ट 1949: इस कानून ने मंदिर के प्रबंधन को नियंत्रित करने के लिए प्रावधान किए।
साझा विरासत के रूप में मान्यता: इतिहास के एक बिंदु पर, मंदिर को बौद्धों और हिंदुओं की साझी विरासत के रूप में मान्यता दी गई थी, जिससे बीटीएमसी में हिंदुओं को शामिल किया गया था।
1953 का समझौता: बाद में मठ और बौद्धों के बीच एक समझौता हुआ और 1953 में मंदिर को बौद्धों को दे दिया गया था।