विश्व नदी दिवस दुनिया के जलमार्गों का उत्सव है। यह हमारी नदियों के अनेक मूल्यों पर प्रकाश डालता है, जन जागरूकता बढ़ाने का प्रयास करता है, और दुनिया भर की सभी नदियों के बेहतर प्रबंधन को प्रोत्साहित करता है। लगभग हर देश की नदियाँ कई तरह के खतरों का सामना करती हैं, और केवल हमारी सक्रिय भागीदारी से ही हम आने वाले वर्षों में उनकी सेहत सुनिश्चित कर सकते हैं। आज विश्व नदी दिवस के अवसर पर भारत की नदियाँ उनकी वर्त्तमान स्थति, प्रदुषण के खतरे और उपायों पर संक्षिप्त विश्लेषण करना जरुरी हो जाता है।
विश्व नदी दिवस , संक्षिप्त इतिहास
नदियों का जश्न मनाने के लिए एक वैश्विक आयोजन का प्रस्ताव बीसी रिवर्स डे की सफलता पर आधारित था, जिसकी स्थापना मार्क एंजेलो ने की थी और 1980 से पश्चिमी कनाडा में इसका नेतृत्व कर रहे थे। संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों ने विश्व नदी दिवस के आयोजन को “जीवन के लिए जल दशक” के उद्देश्यों के लिए उपयुक्त माना और प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई। 2005 में आयोजित वह पहला आयोजन बेहद सफल रहा और दर्जनों देशों में नदी दिवस मनाया गया। तब से, यह आयोजन निरंतर फल-फूल रहा है। यह हर साल सितंबर के चौथे रविवार को मनाया जाता है । पिछले साल, लगभग 100 देशों में लाखों लोगों ने हमारे जलमार्गों के अनेक मूल्यों का जश्न मनाया।
भारत में नदियों की वर्तमान स्थिति चिंताजनक
विश्व नदी दिवस के अवसर पर अगर हम भारत की नदियों की बात करें तो हम पते हैं कि भारत में नदियों की वर्तमान स्थिति चिंताजनक है. लगभग ७० % सतही जल पीने योग्य नहीं है, और ६०५ में से आधे से ज़्यादा नदियाँ अत्यधिक प्रदूषित हैं, जिससे बड़ी आबादी को स्वच्छ पानी नहीं मिल पा रहा है, जबकि जलवायु परिवर्तन और बढ़ती खारापन की समस्याएँ भी गहराती जा रही हैं, जिसके कारण सरकारें राष्ट्रीय नदी संरक्षण और नमामि गंगे जैसी कई परियोजनाएँ चला रही हैं।

मुख्य समस्याएँ
नदियों के प्रदुषण की सबसे बड़ी समस्या शहरी क्षेत्रों के पास, औद्योगिक और घरेलू कचरे से होनेवाला अत्यधिक प्रदूषण हैं, जिससे जल की गुणवत्ता गिर रही है। तो दूसरी तरफ दिन बा दिन देश की बड़ी आबादी के लिए स्वच्छ पीने योग्य पानी की कमी हो रही है, जिससे लोगों के जीवन पर गहरा असर पड़ रहा है।
जलवायु परिवर्तन के कारण नदियों के मुहानों पर खारे पानी का दबाव बढ़ा रहा है, जिससे मीठे पानी का संतुलन बिगड़ रहा है। कृषि और अन्य ज़रूरतों के लिए नदियों का अत्यधिक उपयोग हो रहा है, जिससे जल स्तर घट रहा है और नदियाँ कमज़ोर पड़ रही हैं।

नदियों के कचरे में भारत एवं अन्य देशों का योगदान
भारत में दशकों से चले आ रहे खराब तरीके से कचरे के प्रबंधन के कारण कूड़े के बड़े-बड़े पहाड़ हर जगह दिखाई पड़ जाते हैं। लेकिन इस बढ़ते हुए ‘बिना उपचारित कचरे’ का परिणाम सिर्फ हम तक सीमित नहीं है। जलीय वातावरण में फैलते कचरे का अनुमान लगाने वाले एक नए अध्ययन से पता चलता है कि आने वाले समय में भारत इस वैश्विक समस्या के लिए कुछ बड़े जिम्मेदार देशों में से एक होगा और इसकी वजह शहरों यानी नगरपालिका क्षेत्रों का बिना उपचारित कचरा है।
संस्थापक के बारे में
मार्क एंजेलो कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया के बर्नाबी से हैं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रख्यात नदी संरक्षणवादी हैं। वे ब्रिटिश कोलंबिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (बीसीआईटी) और विश्व नदी दिवस, दोनों के संस्थापक और अध्यक्ष हैं और रिवर्स इंस्टीट्यूट के मानद अध्यक्ष हैं। मार्क लंबे समय तक बीसीआईटी के मत्स्य, वन्यजीव और मनोरंजन कार्यक्रम के प्रमुख भी रहे हैं। पिछले चार दशकों में नदी संरक्षण के उनके प्रयासों के लिए उन्हें ऑर्डर ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया और ऑर्डर ऑफ कनाडा (उनके देश का सर्वोच्च सम्मान) दोनों से सम्मानित किया जा चुका है। उनके कई अन्य पुरस्कारों में संयुक्त राष्ट्र स्टीवर्डशिप पुरस्कार और राष्ट्रीय नदी संरक्षण पुरस्कार शामिल हैं। एक उत्साही पैडलर के रूप में, मार्क ने दुनिया भर में लगभग 1000 नदियों की यात्रा की है, जो शायद किसी भी अन्य व्यक्ति से अधिक है।

भारत में लाखों लोग अपने अस्तित्व के लिए विशाल नदी प्रणालियों पर निर्भर रहते आए हैं। भारतीय वन्यजीव संस्थान के मुताबिक, भारत की नदियां दुनिया के अनोखे जलीय जीव-जंतु और पौधों की १८ % आबादी का पोषण भी करती हैं। लेकिन २०२२ में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भारत की ६०५ नदियों में से आधे से थोड़ी ज्यादा नदियों को प्रदूषित पाया। यह प्रदूषण न सिर्फ लोगों के स्वास्थ्य और जैव विविधता के लिए खतरा है, बल्कि अब यह जल स्रोतों में जाने वाले कचरे के बढ़ते वैश्विक बोझ से भी जुड़ गया है।
इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एप्लाइड सिस्टम्स एनालिसिस (IIASA) के शोधकर्ताओं ने एक नए अध्ययन में अनुमान लगाया कि २०२० में, भारत के नगरपालिका क्षेत्र के कचरे ने दुनिया की नदियों में बहकर जाने वाले कचरे में १० % का योगदान दिया है। और यह तब है, जब २०१८ तक लागू नीतियों को ध्यान में रखा गया था। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट में रिसर्च एसोसिएट श्रोतिक बोस ने कहा, “यह कोई आश्चर्यजनक या असंभव आंकड़ा नहीं है। ऐसे कई अध्ययन हैं, जो भारत में कचरे के खराब प्रबंधन के बारे में बताते हैं।”

सरकार ने अकेले गंगा नदी को साफ करने पर १३ हजार करोड़ रुपये खर्च कर दिए, लेकिन ये प्रयास काफी हद तक बेकार साबित हुए। २०१९ के एक आकलन में क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया ने पाया कि गंगा के किनारे बसे ७० % से ज्यादा शहर सीधे अपना कचरा नदी में डाल रहे थे क्योंकि उनके पास कचरे से निपटने वाले संयंत्र नहीं थे। बिना सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और कचरे के सही तरीके से प्रबंधन न होने के कारण ३८ हजार मिलियन लीटर से ज्यादा अपशिष्ट जल भारतीय नदियों में मिल रहा है।
IIASA अध्ययन के अनुसार, मौजूदा समय में भारत में दुनियाभर के नगर पालिका क्षेत्र के कचरे का १७ % हिस्सा है। अगर सर्कुलर अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली को अमल में नहीं लाया गया, तो नदियों में कचरे के जाने की समस्या बढ़ती रहेगी।
रिसर्च पेपर में सुझाव दिया गया है कि नगरपालिका क्षेत्र के ठोस कचरे के निपटान के लिए मानकीकृत ढांचे वाली एक वैश्विक संधि बनाई जाए। “एक वैश्विक संधि यह सुनिश्चित कर सकती है कि सभी देश समान नियमों का पालन करें, जिससे एक देश से दूसरे देश में कचरा आने का जोखिम कम हो जाएगा”. २०१८ तक की नीतियों को ध्यान में रखते हुए आधारभूत रेखा पर, अध्ययन का अनुमान है कि २०२० में ७८ मिलियन टन बिखरा हुआ नगर पालिका कचरा नदियों में चला गया। इस प्रदूषण में ८० % योगदान भारत, अफ्रीका, चीन, दक्षिण एशिया, लैटिन अमेरिका और कैरेबियन जैसे देशों का है। इसमें से अकेले भारत की हिस्सेदारी १० % की है।

अगर वर्तमान स्थिति बनी रहती है, जहां सर्कुलर अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली धीरे-धीरे अपनाई जा रही है, आर्थिक विकास मध्यम है और असमानताएं मौजूद हैं, तो साल २०१४ तक, नगरपालिका क्षेत्र का लगभग ३५ मिलियन टन कचरा जलीय वातावरण में जा सकता है। २०४० में, जलीय स्रोतों के कचरे का ९५ % हिस्सा संभवतः दक्षिण एशिया, चीन, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और कैरेबियाई, और भारत का होगा। इसमें से चीन व दक्षिण एशिया की इसमें हिस्सेदारी ५५ % की होगी।
स्वच्छ भारत मिशन 2.0 अब भी दूर
भारत सरकार के अनुसार, भारत में रोजाना तकरीबन १,५२,२४५ मीट्रिक टन नगरपालिका ठोस कचरा उत्पन्न होता है, जिसमें से लगभग ७५ % को प्रोसेस कर लिया जाता है। नगरपालिका क्षेत्रों के कचरे में घरों, दुकानों, मेडिकल और निर्माण-तोड़-फोड़ का कचरा शामिल होता है।
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम के अनुसार, कचरे को स्रोत पर ही अलग-अलग कर देना चाहिए। और इसका पालन कराने की जिम्मेदारी पूरी तरह से राज्य सरकारों की है। लेकिन भारत में ज्यादातर कचरे में बायोडिग्रेडेबल (जैविक) घटक होते हैं जिन्हें अलग नहीं किया जाता है। इससे मिश्रित कचरा बनता है, जिसका ऊर्जा मान कम होता है। इसे जलाया नहीं जा सकता है, इसलिए, इसे डंप साइट्स या लैंडफिल में भेज दिया जाता है।

२०२१ में स्वच्छ भारत मिशन २. ० को शुरू किया गया था, जिसका लक्ष्य २०२६ तक सभी शहरों को कचरा मुक्त बनाना है। इसके लिए स्रोत पर ही कूड़े को पूरी तरह से अलग-अलग करना, घर-घर जाकर कूड़ा उठाना और सभी प्रकार के कचरे का वैज्ञानिक प्रबंधन व वैज्ञानिक रूप से बने लैंडफिल में सुरक्षित निपटान सुनिश्चित करना है। मगर सन २०२५ तक पहुंचने के बाद भी हम कचरे का उचित नियोजन कर पाए हैं ऐसा नज़र नहीं आता. विशेषज्ञ कहते हैं कि कचरे को स्रोत पर ही अलग-अलग करना, कूड़े के निपटान के लिए सबसे जरूरी पहला कदम है, जो अक्सर आकर्षक तकनीकी समाधानों (जैसे, कचरे से ऊर्जा संयंत्र) पर ध्यान देने की वजह से नजरअंदाज कर दिया जाता है। इसलिए मौजूदा बुनियादी ढांचे के साथ, स्वच्छ भारत मिशन 2.0 के लक्ष्यों को समय पर पूरा कर पाना मुश्किल नजर आता है।”
IIASA अध्ययन में कहा गया है कि “नगरपालिका क्षेत्र से निकले कचरे को संसाधित करने की राज्य क्षमता में सुधार के अलावा, एक वैश्विक मानकीकृत ढांचा भी जरूरी है, जो शहरों से निकले कचरे के उत्पादन, संरचना व प्रवाह की निगरानी करने और साथ ही कचरे में कमी व अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों में सुधार लाने के लिए लक्षित कार्यों (राजनीतिक, आर्थिक और तकनीकी उपायों सहित) के कार्यान्वयन का अनुसरण कर सकता है।”
सरकारी पहलें
हालाँकि भारत में नदियों के प्रदुषण को रोकने के लिए वियभिन्ना योजनाएं लागु हुयी है पर उनका सकारात्मक परिणाम अब तक नज़र नहीं आ रहा है.
नमामि गंगे परियोजना: गंगा नदी को स्वच्छ और पुनर्जीवित करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई यह सबसे महत्वपूर्ण परियोजनाओं में से एक है।
राष्ट्रीय नदी संरक्षण कार्यक्रम: यह कार्यक्रम विभिन्न प्रदूषित नदियों को स्वच्छ बनाने और पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए चलाया जा रहा है।
अन्य प्रयास: यमुना और अन्य नदियों की सफाई के लिए विशेष अभियान चलाए जा रहे हैं, साथ ही पर्यावरण को लेकर नीतियां बनाई जा रही हैं।
नदियों के प्रदूषण को रोकने में आम नागरिकों की भूमिका महत्वपूर्ण
नदियों के प्रदूषण को रोकने में आम नागरिकों की भूमिका महत्वपूर्ण है, जिसमें कचरा प्रबंधन, रासायनिक उत्पादों का कम उपयोग, नदियों में वसा और तेल न बहाना, और जागरूक रहकर नियमों का पालन करना शामिल है. नागरिकों को बायोडिग्रेडेबल उत्पादों का उपयोग करना चाहिए, खाद और कीटनाशकों का सीमित प्रयोग करना चाहिए, और तूफानी नालियों में कोई भी तरल पदार्थ नहीं बहाना चाहिए. साथ ही, जल स्रोतों की रक्षा के लिए वृक्षारोपण करना और जागरूकता फैलाना भी आवश्यक है.

दैनिक जीवन में नागरिक क्या कर सकते हैं
कचरे का सही निपटान: अपने घर के कचरे को सही कूड़ेदान में डालें और उसे नालियों या नदियों में न बहाएं.
रासायनिक उत्पादों का कम उपयोग: साबुन और अन्य घरेलू डिटर्जेंट जैसे रासायनिक उत्पादों का कम से कम उपयोग करें, जो जल प्रदूषण का कारण बनते हैं.
तेल और वसा को नदियों में न बहाएं: कार से गिरने वाले तेल और घर के बचे हुए तेल को तूफानी नालियों या सड़क पर न डालें, बल्कि उन्हें किसी ऑटो पार्ट्स स्टोर पर ले जाएं.
सावधानी से बागवानी: उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग सीमित करें और पत्तियों को सड़क पर न उड़ाएं, क्योंकि यह नालियों को जाम कर सकता है.
वाहन धोना: अपनी कार या बाहरी उपकरणों को ऐसे स्थान पर धोएं जहाँ पानी सड़क के बजाय बजरी या घास वाले क्षेत्र में जा सके.
पेड़ लगाएं: अधिक से अधिक पेड़ लगाएं जो मिट्टी के कटाव को रोकते हैं और नदियों में पानी का सीधा प्रवाह सुनिश्चित करते हैं.
जागरूकता फैलाएं: अन्य लोगों को जल प्रदूषण के दुष्परिणामों और रोकथाम के उपायों के बारे में बताएं.
नियमों का पालन करें: नदी प्रदूषण से संबंधित सरकारी नियमों और कानूनों का सख्ती से पालन करें.
सामुदायिक स्तर पर भूमिका:
सामुदायिक भागीदारी: ऐसे अभियानों में भाग लें जो नदियों को स्वच्छ रखने के लिए चलाए जाते हैं, जैसे कि नदी सफाई अभियान.
स्थानीय निकायों को प्रोत्साहित करें: यह सुनिश्चित करने के लिए स्थानीय निकायों पर दबाव डालें कि वे अपशिष्ट जल के उपचार के लिए बेहतर सुविधाएं स्थापित करें.
नियमों के उल्लंघन की रिपोर्ट करें: यदि आप किसी ऐसे व्यक्ति को नदियों को प्रदूषित करते हुए देखें जो नियमों का उल्लंघन कर रहा है, तो संबंधित अधिकारियों को उसकी रिपोर्ट करें.
संरक्षण और संवर्धन की शपथ ग्रहण करे: शिवराज सिंह चौहान
विश्व नदी दिवस के अवसर पर शुभकामनाएं देते हुए शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि अनादिकाल से नदियां हमारी संस्कृति, सभ्यता, और संस्कार को पल्लवित, पुष्पित ,पोषित करती आ रही हैं। इसलिए आज विश्व नदी दिवस के अवसर पर हम उन्हें स्वच्छ ,सदानीरा बनाये रखने के साथ उनके संरक्षण और संवर्धन की शपथ ग्रहण करे.