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बिहार चुनाव के दूसरे चरण में 11 जिलों की 61 सीटों पर बड़ा दांव….जानिए कैसे बनेंगे समीकरण ?

बिहार चुनाव के दूसरे चरण में 11 जिलों की 61 सीटों पर बड़ा दांव….जानिए कैसे बनेंगे समीकरण ?

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 अपने निर्णायक मोड़ पर है. दूसरे चरण के तहत 20 जिलों की 122 सीटों पर 11 नवंबर को मतदान होना है. लेकिन राजनीतिक नजरें जिन इलाकों पर टिकी हैं, वे हैं-सीमांचल, मगध और शाहाबाद. इन तीन क्षेत्रों की 11 जिलों की 61 सीटें न सिर्फ गठबंधनों की साख बल्कि सरकार की भविष्य की तस्वीर भी तय करने जा रही हैं.

पटना. बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में 11 नवंबर को मतदान होना है. चुनाव प्रचार के लिए 9 नवंबर की शाम तक मौका है. आखिरी चरण में 20 जिलों के 122 विधानसभा क्षेत्रों में मतदान होगा. लेकिन, महागठबंधन और एनडीए, दोनों की जिन इलाकों पर नजर टिकी है वह है-सीमांचल, मगध और शाहाबाद. इन क्षेत्रों की 11 जिलों की 61 सीटों पर आने वाले चुनाव नतीजों पर नई सरकार के गठन के लिए काफी कुछ निर्भर करेगा. इनमें सीमांचल के 4, मगध के 5 और शाहाबाद के 2 जिले शामिल हैं. एनडीए के लिए यह चरण किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं माना जा रहा, क्योंकि 2020 के चुनाव में इन इलाकों में उसका प्रदर्शन कमजोर रहा था. इस बार न सिर्फ मुकाबला मुश्किल है, बल्कि जातीय और क्षेत्रीय समीकरण भी नए सिरे से लिखे जा रहे हैं. इस बार मुकाबला और भी दिलचस्प माना जा रहा है, क्योंकि दोनों गठबंधन इन इलाकों को निर्णायक मान रहे हैं.

2020 विधानसभा चुनाव का गणित
2020 के विधानसभा चुनाव में 61 सीटों में से महागठबंधन ने 42, एनडीए ने 18 और एआईएमआईएम ने 1 सीट जीती थी. सीमांचल और मगध में आरजेडी का दबदबा था, जबकि शाहाबाद में एनडीए ने कुछ मजबूती दिखाई थी. इस बार सीमांचल में महागठबंधन के सामने चुनौती यह है कि क्या वह मुस्लिम-यादव समीकरण को पहले जैसा बनाए रख पाएगा या एआईएमआईएम और जनसुराज जैसी नई ताकतें उसके वोट बैंक में सेंध लगाएंगी. एनडीए के लिए इस क्षेत्र में अपनी साख की पुनर्वापसी की चुनौती भी परीक्षा है.

सीमांचल में समीकरणों का हिसाब
सीमांचल की राजनीति हमेशा से धार्मिक और सामाजिक विविधता पर टिकी रही है. कटिहार, पूर्णिया, अररिया और किशनगंज जिले की 24 सीटों में मुस्लिम मतदाता औसतन 35 से 60 प्रतिशत तक हैं. 2020 में इन सीटों पर महागठबंधन और एआईएमआईएम ने लगभग पूरी बाजी मार ली थी. किशनगंज की चारों सीटें एनडीए के खाते में नहीं आईं. एआईएमआईएम ने सीमांचल में पांच सीटें जीतकर मुस्लिम बहुल इलाकों में अपनी मजबूत मौजूदगी दर्ज की थी, हालांकि बाद में उसके चार विधायक राजद में शामिल हो गए जिससे महागठबंधन की ताकत और बढ़ गई. इस बार भाजपा और जदयू दोनों ने सीमांचल में एआईएमआईएम और राजद को कड़ी चुनौती देने की तैयारी की है.

सीमांचल में विकास और सुरक्षा का मुद्दा
भाजपा ने यहां मुस्लिम और यादव बहुल सीटों पर नए उम्मीदवारों को उतारकर जातीय समीकरण बदलने की कोशिश की है. यह इलाका महागठबंधन के लिए किला माना जाता है, लेकिन इस बार AIMIM और जनसुराज की सक्रियता ने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है. प्रशांत किशोर की जनसुराज यात्रा ने पूर्णिया और अररिया में जनाधार खड़ा किया है, जबकि AIMIM अपनी खोई जमीन वापस पाने में जुटी है. भाजपा यहां विकास और सुरक्षा के मुद्दे को सामने रखकर ‘नया सीमांचल’ की बात कर रही है, लेकिन उसे स्थानीय स्तर पर संगठनात्मक मजबूती की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है.

मगध में विकास बनाम असंतोष का नैरेटिव
मगध के गया, जहानाबाद, अरवल, औरंगाबाद और नवादा जिले की 27 सीटें इस चरण में शामिल हैं. यह इलाका हमेशा से सत्ता परिवर्तन का संकेतक रहा है. 2020 के चुनाव में इन 26 में से एनडीए को मात्र 6 सीटें मिलीं, जबकि महागठबंधन ने 20 सीटें जीत लीं. अरवल, जहानाबाद और औरंगाबाद में एनडीए को एक भी सीट नहीं मिली थी. गया जिले की 10 सीटों में दोनों गठबंधनों ने 5-5 सीटें बांट ली थीं. बाद में बेलागंज उपचुनाव में जदयू ने राजद से सीट छीनी थी, जिससे थोड़ा संतुलन बना. किसानों में सिंचाई संकट और बेरोजगारी जैसे मुद्दे गहराई तक हैं. महागठबंधन यहां रोजगार और सामाजिक न्याय के वादे पर टिका है, जबकि एनडीए विकास के निरंतरता और स्थिरता का नारा दे रहा है. बोधगया से लेकर औरंगाबाद तक भाजपा को उम्मीद है कि मोदी की रैलियां कुछ फर्क डालेंगी, वहीं जेडीयू अपने पारंपरिक कुर्मी-कोइरी वोट बैंक को बचाने में जुटी है.

शाहाबाद में जातीय आधार पर नई गोलबंदी
शाहाबाद के भोजपुर और बक्सर की 10 सीटें इस बार खास नजर में हैं. यह इलाका भूमिहार, यादव और दलित राजनीति का मिलाजुला है. जहां जातीय एकजुटता अक्सर चुनावी नतीजे तय करती है. 2020 में महागठबंधन का दबदबा रहा था. रोहतास की सभी 7 सीटों पर महागठबंधन ने जीत दर्ज की थी, जबकि कैमूर की 4 में से 3 सीटें भी उसके पास गईं. बसपा ने एक सीट जीती थी, लेकिन उसके विधायक जमा खान बाद में जदयू में शामिल हो गए. 2020 में यहां राजद ने बढ़त बनाई थी, लेकिन इस बार एनडीए ने आक्रामक रणनीति अपनाई और पूरी ताकत झोंक रहा है. भोजपुर में पीएम मोदी की बड़ी रैली के बाद भाजपा ने इस इलाके को मिशन शाहाबाद घोषित कर दिया है. वहीं, राजद के युवा उम्मीदवार और स्थानीय चेहरे यहां महागठबंधन को नई ऊर्जा दे रहे हैं.

सिर्फ सीटों का हिसाब नहीं तय करेगा चुनाव
बिहार विधानसभा चुनाव का दूसरा चरण बेहद अहम माना जा रहा है. इस बार मुकाबला खासकर सीमांचल और मगध के इलाकों में दिलचस्प हो गया है. 2020 के चुनाव में ये दोनों क्षेत्र महागठबंधन के मजबूत गढ़ थे, लेकिन इस बार एनडीए इन्हें ‘रिकवरी ज़ोन’ यानी खोई जमीन वापस पाने का मौका मान रहा है. भाजपा और जदयू को उम्मीद है कि वे यहां बेहतर प्रदर्शन कर सत्ता वापसी की राह बना सकते हैं. वहीं, तेजस्वी यादव और राहुल गांधी इन इलाकों में लगातार रैलियां कर रहे हैं और रोजगार और विकास को चुनाव का बड़ा मुद्दा बना रहे हैं. 11 नवंबर को होने वाला यह मतदान सिर्फ सीटों का हिसाब नहीं तय करेगा, बल्कि यह भी बताएगा कि बिहार की जनता नीतीश कुमार के ‘विकास मॉडल’ पर भरोसा रखती है या तेजस्वी यादव के ‘परिवर्तन के नारे’ पर. इन 11 जिलों की 61 सीटों के नतीजे ही तय करेंगे कि बिहार में वापसी होगी या बदलाव.

20 जिलों की 122 सीटों पर 11 नवंबर को मतदान
बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में 20 जिलों में मतदान होना है. इस चरण में पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, सीतामढ़ी, शिवहर, मधुबनी, सुपौल, अररिया, किशनगंज, पूर्णिया और कटिहार जिलों के साथ-साथ भागलपुर, बांका, जमुई, नवादा, गया, औरंगाबाद, जहानाबाद, अरवल, कैमूर और रोहतास जिलों में भी वोट डाले जाएंगे. इस चरण में कुल 45,399 बूथ बनाए गए हैं, जिनमें 45,388 सामान्य मतदान केंद्र और 11 सहायक मतदान केंद्र शामिल हैं. यहां 3 करोड़ 70 लाख 13,556 मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे, जिनमें 1 करोड़ 95 लाख 44,041 पुरुष, 1 करोड़ 74 लाख 68,572 महिला और 943 थर्ड जेंडर मतदाता हैं. मैदान में कुल 1,302 उम्मीदवार हैं, जिनमें 1,165 पुरुष, 136 महिला और 1 थर्ड जेंडर प्रत्याशी शामिल हैं.

दूसरे चरण में युवाओं और महिलाओं की भूमिका
पहले चरण में रिकॉर्ड 65 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ है और 69% महिलाओं ने मतदान में अपनी भागीदारी की है. चुनाव आयोग को उम्मीद है कि दूसरे चरण में यह रुझान और बढ़ेगा. जानकारों का मानना है कि महिला और युवा वोट ही इस बार निर्णायक कारक साबित होंगे. नीतीश कुमार के महिला सशक्तिकरण के कामों का असर अब भी कुछ इलाकों में कायम है, लेकिन रोजगार और पलायन के मुद्दों पर युवाओं का रुझान महागठबंधन और जनसुराज की ओर भी झुक रहा है. बिहार चुनाव का यह दूसरा चरण महज एक और मतदान नहीं, बल्कि सत्ता का आधा फैसला है. सीमांचल की सियासी बिसात, मगध का विकास और शाहाबाद की जातीय गोलबंदी-इन तीनों के नतीजे यह तय करेंगे कि पटना के राजपथ पर कौन कदम बढ़ाएगा.

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