मद्रास उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए दलित कॉलोनी से मंदिर का रथ निकालने का रास्ता साफ कर दिया है। अदालत ने समाज में समानता का कड़ा संदेश देते हुए टिप्पणी की कि ईश्वर कभी किसी के साथ भेदभाव नहीं करते और ऐसी कोई सड़क नहीं है जो भगवान या उनके रथ के गुजरने के लिए ‘अयोग्य’ हो।
चेन्नई: मद्रास उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए दलित कॉलोनी से मंदिर का रथ निकालने का रास्ता साफ कर दिया है। अदालत ने समाज में समानता का कड़ा संदेश देते हुए टिप्पणी की कि ईश्वर कभी किसी के साथ भेदभाव नहीं करते और ऐसी कोई सड़क नहीं है जो भगवान या उनके रथ के गुजरने के लिए ‘अयोग्य’ हो।
‘आस्था को जाति की बेड़ियों में नहीं जकड़ा जा सकता’
न्यायमूर्ति पी.बी. बालाजी ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि आस्था को जाति या पंथ की सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता और न ही दिव्यता को इंसानी पूर्वाग्रहों तक सीमित किया जा सकता है। उन्होंने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा, “भगवान केवल कुछ खास सड़कों पर ही निवास नहीं करते। जिस सड़क से भगवान का रथ गुजरता है, वह सड़क कभी अपवित्र नहीं हो सकती। ईश्वर की नजर में सब एक हैं, इसलिए परंपरा की पवित्रता की आड़ में भेदभाव को उचित नहीं ठहराया जा सकता।”
संविधान के अनुच्छेद 17 का उल्लेख करते हुए कोर्ट ने याद दिलाया कि देश में अस्पृश्यता (छुआछूत) को न केवल शारीरिक रूप से, बल्कि उसकी मूल भावना के साथ भी समाप्त कर दिया गया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि कोई भी व्यक्ति यह तय करने का अधिकार नहीं रखता कि कौन देवता के सामने खड़ा होकर पूजा कर सकता है और कौन नहीं।
क्या था पूरा मामला?
यह मामला कांचीपुरम जिले के मुथु कोलाक्की अम्मन मंदिर से जुड़ा है। अनुसूचित जाति समुदाय के एक व्यक्ति ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि ऊंची जाति के लोग उन्हें और उनके समुदाय को मंदिर में प्रवेश करने और पूजा-पाठ में भाग लेने से रोक रहे हैं। याचिकाकर्ता ने मांग की थी कि मंदिर के रथ उत्सव के दौरान रथ को उनकी दलित कॉलोनी तक आने की अनुमति दी जाए, ताकि वे भी इस उत्सव का हिस्सा बन सकें।
याचिकाकर्ता का कहना था कि हालांकि मंदिर का प्रबंधन हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती (HR&CE) विभाग के पास है, लेकिन भेदभाव अभी भी जारी है और कुछ लोग कानून हाथ में लेकर उन्हें रोक रहे हैं।
विरोध पक्ष का तर्क
सुनवाई के दौरान जिला कलेक्टर ने अदालत को बताया कि पूर्व के आदेशानुसार क्षेत्र का निरीक्षण किया गया था और याचिकाकर्ता या उनके समुदाय के लोगों के मंदिर प्रवेश या रथ उत्सव में भाग लेने पर कोई रोक नहीं है। दूसरी ओर, निजी प्रतिवादियों (ऊंची जाति के प्रतिनिधियों) ने याचिका का विरोध किया। उनका तर्क था कि दशकों से रथ यात्रा का एक निश्चित मार्ग तय है और उसे बदलने की कोई आवश्यकता नहीं है। उन्होंने दलील दी कि यदि यह मांग मानी गई, तो अन्य लोग भी अपनी सड़कों पर रथ ले जाने की मांग करेंगे, जिससे जटिलताएं बढ़ेंगी। हालांकि, उन्होंने छुआछूत के आरोपों से इनकार किया।
अदालत का अंतिम निर्देश
जिला कलेक्टर ने मार्गों की जांच के बाद अदालत को सूचित किया कि जुलूस के ऐतिहासिक स्वरूप को प्रभावित किए बिना मार्ग का विस्तार करना संभव है। कलेक्टर की इस रिपोर्ट के आधार पर, हाई कोर्ट ने निर्देश दिया कि रथ यात्रा प्रस्तावित नए एकीकृत मार्ग से ही निकाली जाए। अदालत ने अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का भी आदेश दिया कि जुलूस शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हो और इस दौरान पर्याप्त पुलिस सुरक्षा प्रदान की जाए।


