सवाल-1: भारत में सर्दी का सीजन कब से कब तक रहता है?
जवाब: आमतौर पर भारत में सर्दी का मौसम नवंबर के आखिरी हफ्ते से शुरू होकर फरवरी के आखिरी हफ्ते तक चलता है। ये वो समय होता है जब तापमान में लगातार गिरावट आती है, पहाड़ी इलाकों में बर्फबारी होती है और उत्तरी भारत में ठंडी हवाएं तेजी से बहने लगती हैं। मौसम वैज्ञानिक इसे तीन हिस्सों में बांटते हैं ताकि तापमान और मौसम के पैटर्न को बेहतर तरीके से समझा जा सके…

- प्री-विंटर (20 नवंबर–20 दिसंबर)
इस अवधि में ठंड की हल्की दस्तक होती है। दिन में हल्की गर्मी और रात में ठंड बढ़ने लगती है।
मैदानों में कोहरा और धुंध की शुरुआत हो जाती है। पहाड़ी इलाकों में बर्फबारी की शुरुआती खबरें आती हैं, जिससे उत्तर भारत में ठंडी हवाएं बहने लगती हैं।
तापमान में धीरे-धीरे गिरावट होती है और लोगों की दिनचर्या में गर्म कपड़े शामिल होने लगते हैं। - पीक-विंटर (20 दिसंबर–20 जनवरी)
ये सर्दियों का सबसे ठंडा और तीखा दौर होता है। इस समय तापमान कई राज्यों में 10 डिग्री सेल्सियस से नीचे चला जाता है और उत्तरी भारत के कई हिस्सों में न्यूनतम तापमान शून्य के आसपास या उससे भी कम हो सकता है। पश्चिमी विक्षोभ यानी वेस्टर्न डिस्टर्बेंस सबसे ज्यादा सक्रिय रहता है। ये वही मौसम प्रणाली है जो पहाड़ों पर भारी बर्फबारी और मैदानी इलाकों में ठंडी हवाएं व बारिश लाती है। इस दौरान दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में ठंड चरम पर होती है। सुबह और रात में कोहरा इतना घना हो सकता है कि विजिबिलिटी बहुत कम हो जाती है। - पोस्ट-विंटर (20 जनवरी–20 फरवरी)
. इस समय तापमान धीरे-धीरे बढ़ने लगता है, लेकिन ठंडी हवाओं का असर बना रहता है। दिन के समय धूप तेज हो जाती है, पर सुबह और रातें ठंडी रहती हैं।
कई बार इस दौरान भी पश्चिमी विक्षोभ के कारण हल्की बारिश और ठंड की वापसी देखने को मिलती है। यही वो वक्त होता है जब सर्दी से गर्मी की ओर मौसम का ट्रांजिशन शुरू होता है।
सवाल-2: इस बार भारत के अलग-अलग इलाकों में सर्दियों का मौसम कैसा रहेगा?
जवाब: भूमध्य रेखा के आस-पास प्रशांत महासागर की सतह अक्टूबर के शुरूआती हफ्ते में ही काफी ठंडी होने लगी है। ये शुरुआत है ला-नीना की और इशारा कि इस बार सर्दियां बेहद सर्द रह सकती हैं। भारत में मानसून भी इस साल जल्दी आया और औसत से 8% ज्यादा बारिश हुई। इसके चलते गर्मियां बहुत गर्म नहीं थी और समय से पहले ही सर्दियों की दस्तक शुरू होने लगी है। मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक उत्तर भारत में तापमान में भारी गिरावट की संभावना है। इसका मतलब है कि दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में शीत लहर (कोल्ड वेव) के ज्यादा दिन देखने को मिल सकते हैं। तापमान सामान्य से काफी नीचे जा सकता है, जिससे ठंड और कोहरे का असर और गहराएगा। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू और कश्मीर जैसे पहाड़ी राज्यों में इस बार बर्फबारी जल्दी शुरू हो सकती है और देर तक जारी रह सकती है। इससे पर्यटन पर भी असर पड़ेगा। जहां एक तरफ बर्फीले नजारों के लिए पर्यटकों की भीड़ बढ़ेगी, वहीं दूसरी ओर स्थानीय प्रशासन को सड़क बंद होने और ठंड से निपटने की अतिरिक्त तैयारी करनी होगी।

ला नीना के कारण नमी और ठंडी हवाओं में इजाफा होता है, जिससे मैदानों में कोहरे की स्थिति और गंभीर हो सकती है। कोहरा ज्यादा घना और लंबे समय तक बना रह सकता है। इससे विजिबिलिटी (दृश्यता) कम होगी और रेल, सड़क और हवाई यातायात पर असर पड़ सकता है। खासकर सुबह और रात के समय यात्रा चुनौतीपूर्ण हो सकती है। हालांकि भारत मौसम विभाग यानी IMD ने अभी तक सर्दी का पूर्वानुमान जारी नहीं किया है। IMD के महानिदेशक एम. महापात्रा ने बताया, ‘अभी तक ला-नीना आया नहीं है, लेकिन अगले कुछ महीनों में ला-नीना की स्थिति बनने की उम्मीद है। इसका सर्दियों पर असर पड़ेगा। मानसून के बाद के मौसम का पूर्वानुमान जल्द ही जारी किया जाएगा।’
सवाल-3: आखिर ये ला-नीना क्या है और ये सर्दी कैसे बढ़ाता है?
जवाब: अगर आप प्रशांत महासागर का नक्शा देखें, तो इसके पूर्वी छोर पर दक्षिण अमेरिका और पश्चिम की तरफ ऑस्ट्रेलिया और एशियाई देश हैं।
सामान्य दिनों में प्रशांत महासागर के ऊपर से हवा पूर्व से पश्चिम चलती है। ये हवा गर्म सतही पानी को एशिया की तरफ धकेल देती है, जिससे इंडोनेशिया और आसपास के इलाके गर्म रहते हैं, और दक्षिण अमेरिका की तरफ का समुद्र ठंडा।

भारत में ला नीना का सबसे ज्यादा असर कब दिखेगा?
जवाब: नेशनल ओशनिक एंड एटमोस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन यानी NOAA ने कहा है कि अक्टूबर से दिसंबर के बीच ला नीना के बनने की 71% संभावना है, जबकि दिसंबर से फरवरी के बीच यह संभावना 54% रहेगी। ला नीना पूरी दुनिया के मौसम और जलवायु पर असर डालता है। एक्सपर्ट्स का अनुमान है कि ये भूमध्य सागर से उठने वाले बर्फीले तूफान यानी वेस्टर्न डिस्टर्बेंस को और मजबूत बनाएगा। इससे उत्तर भारत के पहाड़ी इलाकों में बहुत ज्यादा बर्फ बारी होगी और मैदानी इलाकों में ठंडी हवाएं चलेंगी, कोहरा और धुंध बनी रहेगी। अनुमान लगाया जा रहा है कि भारत में ला नीना का सबसे ज्यादा असर जनवरी 2026 में दिखेगा। ये मार्च तक बना रहेगा और 2026 का बसंत काफी देर से आएगा। हालांकि कुछ मौसम विज्ञानियों का यह भी कहना है कि अगर इस साल ला-नीना बना भी, तो कमजोर होगा। इस बार की सर्दियों पर इसका बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ेगा।
सवाल-5: बर्फबारी और शीतलहर के लिए जिम्मेदार वेस्टर्न डिस्टर्बेंस क्या है?
जवाबः भारत के पश्चिम में भूमध्य सागर है, वहां से तूफानी हवा नमी लेकर गल्फ देशों और काला सागर, कैस्पियन सागर से होकर हमारे देश तक आती है, जिसे वेस्टर्न डिस्टर्बेंस कहते हैं। ये हवा भारत में आकर यहां के वेदर पैटर्न को डिस्टर्ब करती है, इसलिए डिस्टर्बेंस शब्द जुड़ा। जैसे- ठंड के मौसम में वेस्टर्न डिस्टर्बेंस आ जाए तो बारिश या बर्फबारी होने लगती है। एक तरह से बेमौसम बारिश के लिए यही हवा जिम्मेदार है। 2025-26 की सर्दी पिछले 10 साल की सबसे ठंडी होगी, इसके लिए तो मौसम विभाग के पूर्वानुमान का इंतजार करना होगा, लेकिन सर्दियों से निपटने के लिए सरकारों और आपको अभी से तैयारी शुरू कर देनी चाहिए।


