बहुजन नायक कांशीराम सोशल ट्रांसफॉर्मेशन फाउंडेशन नागपुर की और से कांशीरामजी की स्मृति में एक व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया.
कार्यक्रम के आयोजन का यह दूसरा वर्ष था. मुख्या वक्त के रूप में आर्टिकल १९ के संपादक नविन कुमार उपस्थित थे. उनके भाषण के कुछ मुख्या बिंदु और कार्यक्रम की संक्षिप्त जानकारी पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं.
नागपुर : आर्टिकल १९ के संपादक नविन कुमार ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हम जिस समाज से आते हैं उनके पास डरने का कोई विकल्प ही नहीं है , हमारे पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है सिवाय आत्मसम्मान के, इसलिए हम लड़ने से डर ही नहीं सकते. वर्षों से चली आ रही इस लड़ाई से सवाल यह उठता है की इस लड़ाई से हमें क्या मिला? तो जवाब है कि हमारी लड़ाई केवल इतनी है की मनुष्य को मनुष्य के सामान माने , मगर अब भी हमें वह अधिकार नहीं मिलता. समानता का अधिकार सबको मिले इसके लिए इस देश में केवल संविधान सही मायने और सही तरीके से लागु करने की जरुरत है, आज २०२५ में जब हम खड़े हैं , इसी नागपुर में १०० साल पहले बने आरएसएस का शताब्दी महोत्सव हुआ , मगर विडम्बना देखिये पेरियार को भी तो १०० साल हो रहे हैं, मगर उनको याद नहीं किया जा रहा, कौन लोग है जो हमारी याददाश्त से बाबासाहब को, पेरियार को, कांशीरामजी को मिटा देने की कोशिश कर रहे है ? यह मुमकिन नहीं मगर उनकी कोशिश निरंतर जारी है. बाबासाहब ने जो झेला क्या वाकई में वह परिस्थिति वर्त्तमान में बदल गयी है? हमारी पूरी लड़ाई केवल मनुष्य माने जाने की लड़ाई है.

पिछले कुछ ही दिनों में ३ ऐसी बड़ी घटनाये हुयी है जिसने हमको झकजोर दिया. रायबरेली में २ अक्टूबर को हरिओम वाल्मीकि के मुँह में पेशाब की जाती है और उसको मार दिया जाता है। ऐसी ही और दो घटनाये हुयी है. यह भारत की तस्वीर है और ऐसा ही भारत बनाने की कोशिश की जा रही है.पिछले १० साल में ५ लाख दलित उत्पीड़न के मामले आये है. यह सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज है. नविन कुमार ने आगे कहा कि भारत के इतिहास में पहली बार सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश पर जूता उछाला गया मगर एक एफआयआर तक दर्ज नहीं होती. देश को इस तरह बनाया जा रहा है.
हिन्दू देश की बात मतलब संविधान ख़त्म करना
देश का ब्राम्हणवादी तबका यह मानाने को तैयार नहीं कि दलित ऊँची कुर्सी पर भी बैठ जाये तो उसकी जाती मायने नहीं रखेगी. ये ताकत कहा से आती है, यह बात किसी से छुपी नहीं है. एजेंडा क्या है यह समझिये , इस देश के दलितों को, पिछडो को, आदिवासियों, हर समाज की महिलाओ को बराबर की कुर्सी पर नहीं बैठने दिया जायेगा. धीरेन्द्र शास्त्री जैसे बाबा हिन्दू धर्म के कथावाचक बन बैठे हैं , यह लोग हिन्दू देश की बात करते है , इसका मतलब संविधान को खत्म करने की बात करते है. और ऐसे हिन्दू समाज में दलित और औरतो की जगह जमीं पर होगी.

आईडिया ऑफ़ कंस्टीटूशन ख़त्म करने के लिए शिक्षा पर प्रहार
शिक्षा पर प्रहार करके लोगो के सोचने की क्षमता को ख़त्म करना आसान हो जायेगा. आर्थिक दृष्टी से कमजोर करने के लिए सरकार हमारे लोगो को वर्किंग सिस्टम से दूर करना चाहता है , ताकि यह समाज उनके हाथो पर नाच सके. सामाजिक परिवर्तन को रोका जा रहा है, वह चाहते है कि परिवर्तन की बात करना हम बंद कर दे. मगर हम बोलना बंद कैसे कर दे ? देश आईडिया ऑफ़ कंस्टीटूशन से चलना चाहिए, मगर उसे ही धराशाही करने की कोशियश की जा रही है. लाख कोशिश करने के बावजूद भी अब तक वह यह नहीं कर पाए हैं. आईडिया ऑफ़ कंस्टीटूशन मंदिरो में नहीं बल्कि स्कूल और कॉलेज में होती है। और उसे ही ख़त्म करने की कोशिश कर रहे हैं. शिक्षा को ख़त्म करने से संविधान के लिए बोलने वाला कोई नहीं बचेगा इसलिए वह हमारे बच्चो से शिक्षा का अधिकार छीन रहे हैं. पिछले कुछ सालो में ९० हजार स्कूल बंद हुए हैं और उन स्कूलों में ज्यादा से ज्यादा गरीब बच्चे पढ़ते थे इसको बताने की जरुरत नहीं है.

अब निजी संस्थाओं में करनी होगी आरक्षण की मांग
आरक्षण निजी संस्थाओ में मांगने का वक़्त आ गया है. इतना ही नहीं बल्कि इकनोमिक एक्टिविटी में हमको आरक्षण मांगना होगा यानि अगर १ हजार करोड़ का सरकारी ठेका दिया जा रहा है तो ५०० करोड़ का दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्गों के लोगो को दिया जाना चाहिए. क्योकि बड़ी चालाकी से सरकारी संस्थाओ का निजीकरण किया जा रहा है ताकि दलित और पिछड़े वर्ग के युवा आर्थिक दृष्टी से स्वावलम्बी न बन सके। यह होशियारी नहीं चकेगी. ग्रुप डी वर्ग में आरक्षण देने मात्र से अब काम नहीं चलेगा. आज नहीं तो कल यह मांग करना ही पड़ेगा.
कांशीराम का बहुजनवाद भारतीय राजनीती में कहा है? नविन कुमार का नागपुर से सवाल || मा. कांशीराम सोशल ट्रांसफॉर्मेशन फाउंडेशन द्वारा कांशीराम स्मृति व्याख्यानमाला ||
तीन बिन्दुओ पर करना होगा काम
१. हमको अपने संसथान खड़े करने पड़ेंगे और डंके की चोट पर बाबासाहब का नाम लेकर हमारे मीडिया का ढांचा तैयार करना पड़ेगा
२. समाज को वैचारिक लोगों की जरुरत है उसके लिए हमारे युवाओं को तैयार करना पड़ेगा
३. शिक्षा में भागीदारी बढ़ानी पड़ेगी.
छल बर्दाश्त नहीं करना, नया नेतृत्व तलाशने की जरुरत
जिस ढांचे के दम पर हमारे साथ छल हो रहा है उसे नहीं बर्दाश्त नहीं करना चाहिए. हमारे पुराने नेता अब हमारे नहीं रहे यह खेद के साथ कहना पड रहा है इसलिए हमको नया नेतृत्व ढूँढना पड़ेगा अथवा तैयार करना पड़ेगा।

बाबासाहब का भावनिक आवाहन याद कीजिये
बाबासाहब ने आगरा में जो अपना अंतिम भाषण दिया था उसमे उन्होंने बड़ी भावनिक बात कही थी कि मैं बड़ी मुश्किल से यह रथ यहाँ तक ले आया हूँ, तुम इसे आगे नहीं लेकर जा सकते तो उसको पीछे मत लेकर जाना। कोई अन्य व्यक्ति आएगा और उसको आगे ले जायेगा …
गिरफ़्तारी से मुझे डर नहीं लगता
मेरे पिताजी आजकल परेशान रहते है और अक्सर मुझसे ोुचते हैं कि पकड़ लेंगे क्या तुमको? मै हसकर कहता हूँ की पकड़ ले , कोई फर्क नहीं पड़ता… मै घर में भी किताबों के साथ रहता हूँ वह भी किताबें पढ़ता रहूँगा। … हमें बोलते रहना चाहिए , आप से कहकर जा रहा हूँ कुछ भी हो जाये बोलना बंद मत करिए , सुनना बंद मत करिए।
संगठित नहीं हुए तो भविष्य बहुत मुश्किल होगा : एडवोकेट सुषमा भट
एडवोकेट सुषमा भट ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि बाबासाहब के बाद उनके आंदोलन की मशाल को जलाये रखने का काम सही मायने में कांशीरामजी ने ही किया है. बाबासाहब द्वारा कहा गया था कि आप शाषनकर्ता बनो, बाबासाहब के इस एक विचार को अमल में लाने के लिए जो प्रयास कांशीरामजी द्वारा किया वैसा किसी और को मुमकिन नहीं हो सका है. कांशीरामजी सायकल पर रैली निकलते और नारे लगाते … वोट हमारा राज तुम्हारा नहीं चलेगा। .. ऐसे ही कई अजरामर नारे कनाशीरामजी ने दिए है. इसलिए हमारा पहला प्रयत्न शासक बनाना होना चाहिए. अगर हम अब भी संगठित नहीं हुए तो भविष्य बहुत मुश्किल होगा ऐसा मत उन्होंने व्यक्त किया.

अतिथियों में एडवोकेट सुषमा भट , अध्यक्ष्य अशोक सरस्वती आयोजक समिति के अध्यक्ष्य रत्नाकर मेश्राम मुख्य रूप से उपस्थित थे। बहुजन नायक स्मृति व्याख्यानमाला का आयोजन करने के लिए रत्नाकर मेश्राम का स्वागत बहुजन सौरभ की सम्पादिका संध्या राजुरकर इन्होने किया. शिशुपार रामटेके ने कार्यक्रम की प्रस्तावन रखी। अपने अध्यक्षीय भाषण में अशोक सरस्वती ने भी कांशीरामजी की कुछ यादे साझा की। बाबासाहब के दिखाए रस्ते पर चलते समय पुराने रीती रिवाजो का त्याग करना आवश्यक है ऐसा मत रामटेके जी ने व्यक्त किया .