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बिहार विधानसभा चुनाव में बराबरी पर क्यों बंटी बीजेपी-जेडीयू सीटे ?

बिहार विधानसभा चुनाव में बराबरी पर क्यों बंटी बीजेपी-जेडीयू सीटे ?

बिहार में बीजेपी और जेडीयू के बीच जब से गठबंधन है, उसके इतिहास पर एक नजर डालें तो ऐसा पहली बार हुआ कि दोनों पार्टी बराबर-बराबर सीटों पर चुनावी मैदान में उतरने जा रही है. 2025 के विधानसभा चुनाव में दोनों दल 101-101 उम्मीदवार उतारने जा रहे हैं, तो चिराग पासवान की बात मानते हुए उन्हें 29 सीटें दी गई हैं.

क्या बिहार में बीजेपी की चुनावी रणनीति से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कद घट रहा है और चिराग पासवान में नई उम्मीद देखी जा रही है ? विपक्षी दल पहले से ही निशाना साध रहे थे कि नीतीश कुमार का उपयोग समाप्त हो गया है. अब बीजेपी के नए चुनावी नारे और एनडीए की सीट शेयरिंग फार्मूला ने इस दावे को और मजबूत कर दिया है. लेकिन बीजेपी का असली मंसूबा क्या है?

एनडीए की सीट शेयरिंग ने बिहार विधानसभा चुनाव का सस्पेंस और बढ़ा दिया है. एनडीए के जीतने पर नीतीश कुमार एक बार फिर मुख्यमंत्री होंगे या नहीं- इसकी चर्चा अब और तेज हो गई है. यहां तक कि नई एनडीए सरकार में जेडीयू का भी कद कितना बड़ा रह जाएगा, इस पर भी संदेह बढ़ गया है. बिहार में बीजेपी और जेडीयू के बीच जब से गठबंधन है, उसके इतिहास पर एक नजर डालें तो ऐसा पहली बार हुआ कि दोनों पार्टी बराबर-बराबर सीटों पर चुनावी मैदान में उतरने जा रही है.२०२५ के विधानसभा चुनाव में दोनों दल १०१ -१०१ उम्मीदवार उतारने जा रहे हैं, तो चिराग पासवान की बात मानते हुए उन्हें २९ सीटें दी गई हैं. उम्मीदवार हों या जीती सीटों की संख्या- बीजेपी हमेशा से जेडीयू से पीछे ही रही है. सिर्फ २०२० के चुनाव में बीजेपी ने जेडीयू से ज्यादा सीटें हासिल की थीं लेकिन फिर भी पार्टी ने नीतीश कुमार पर पूरा भरोसा जताया था.

बिहार अब गठबंधनों से नहीं, बल्कि गणित से चलेगा : अभिषेक मनु सिंघवी (कांग्रेस सांसद और वरिष्ठ सुप्रीम कोर्ट वकील )
बिहार में एनडीए की सीटों के बंटवारे पर अंतिम मुहर लग गई है। लेकिन असली बंटवारा स्वाभिमान, विचारधारा और जनता के विश्वास का है।
भाजपा को 101 सीटें, नीतीश कुमार को 101, और बाकी दल तो बस सांत्वना पुरस्कार के हकदार हैं। बिहार अब गठबंधनों से नहीं, बल्कि गणित से चलता है। जनता की समझ खत्म हो गई है।

इस बार बीजेपी-जेडीयू बराबरी पर बंटी गई है. प्रचार अभियान के फ्रंट पर नीतीश कुमार का चेहरा और नाम भी गायब है. बीजेपी नेता, जेडीयू नेताओं के मुकाबले ज्यादा आक्रामक हैं. अब नतीजे बताएंगे कि बिहार में दोनों में से कौन सा दल बड़ा भाई बनेगा. महाराष्ट्र में बीजेपी ने जिस तरह बड़े भाई शिवसेना को छोटा भाई बना दिया, क्या बिहार में भी कुछ ऐसा ही होने जा रहा है? आखिर अबकी बार बराबरी वाला दांव और साथ में एक बार फिर एनडीए सरकार के नारे के क्या मायने हैं. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने यही नारा दिया है. लेकिन दो टूक शब्दों में यह क्यों नहीं कहे पा रहे हैं कि चुनाव जीतने पर बिहार में बीजेपी अब जेडीयू के सपोर्ट में नहीं रहेगी बल्कि जेडीयू को बीजेपी के सपोर्ट मोड में रहना होगा. संभवत: मुख्यमंत्री भी कोई नया चेहरा हो ऐसी अटकलें भी लगायी जा रही हैं.

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