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राजस्थान में धर्मांतरण कानून लागू: लोगों द्वारा कानून के खिलाफ राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शन का दिया इशारा

राजस्थान में धर्मांतरण कानून लागू: लोगों द्वारा कानून के खिलाफ राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शन का दिया इशारा

राजस्थान विधानसभा में पारित हुए नए धर्म परिवर्तन विरोधी कानून के खिलाफ ईसाई, मुस्लिम और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों ने हाल ही में जयपुर के शहीद स्मारक पर बड़ा विरोध प्रदर्शन किया था। प्रदर्शनकारियों ने राज्यपाल से इस विधेयक पर मंजूरी न देने की अपील की थी। आज गुरूवार १० अक्टूबर को राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े ने ‘धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध विधेयक २०२५ ‘ को मंजूरी दे दी है।

जयपुर. राजस्थान में जबरन या लोभ-लालच से धर्मांतरण रोकने के लिए लाए गए विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध विधेयक-२०२५ को राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े ने मंजूरी दे दी है. विधानसभा ने ९ सितंबर को विपक्ष के हंगामे के बीच इसे पारित किया था. विधि विभाग ने अधिसूचना जारी कर बिल को कानून का रूप दे दिया. भजनलाल सरकार का यह कदम प्रदेश में लॉ एंड ऑर्डर मजबूत करने और संविधान के अनुच्छेद २५ के तहत धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा का दावा करता है. गृह राज्यमंत्री जवाहर सिंह बेढ़म ने कहा कि संविधान हर नागरिक को धर्म मानने का अधिकार देता है, लेकिन किसी अन्य को ठेस न पहुंचे. कपट, लोभ या जबरदस्ती से धर्मांतरण रोकना जरूरी है.

विधेयक को फरवरी २०२५ में बजट सत्र में पेश किया गया था. विपक्ष खासकर कांग्रेस ने हंगामा किया, लेकिन चर्चा के बिना पारित हो गया. बेढ़म ने बाइट में कहा कि नेता प्रतिपक्ष का खुद का जिला धर्मांतरण मामलों से जूझ रहा है, फिर भी दिल्ली के इशारे पर विरोध कर रहे हैं. यह राजनीति नहीं, प्रदेश की जरूरत है. यह कानून झारखंड, कर्नाटक, गुजरात और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में पहले से लागू है. राजस्थान में २००६-०८ में ऐसे प्रयास विफल हो चुके थे. बेढ़म ने जोर दिया कि आदिवासी क्षेत्रों में आर्थिक प्रलोभन से हो रहे धर्मांतरण रोकने के लिए यह आवश्यक है. दर्जनों मामले, खासकर विवाह से जुड़े, सामने आ चुके हैं.


राज्यपाल की मंजूरी के बाद विधि विभाग ने इसकी अधिसूचना भी जारी कर दी। ऐसे में अब यह कानून का रूप ले चुका है। अधिसूचना जारी होने के साथ ही यह कानून लागू भी हो गया है। अब जबरन धर्म परिवर्तन कराने पर दोषी व्यक्तियों और दोषी संस्थाओं के पदाधिकारियों को १४ साल की सजा हो सकेगी। इससे पहले २००६ और २००८ में भी धर्म परिवर्तन विरोधी कानून बनाने के प्रयास हुए थे, लेकिन वे कानून का रूप नहीं ले सके। इसे पिछले प्रयासों की तुलना में कहीं अधिक सख्त माना जा रहा है।

इस कानून के तहत किसी भी व्यक्ति द्वारा जबरन, लालच या धोखे से धर्म परिवर्तन कराने पर आजीवन कारावास की सजा और ५० लाख रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकेगा. इसके अलावा, धर्म परिवर्तन से जुड़े सभी अपराध गैर-जमानती होंगे, यानी आरोपी को आसानी से जमानत नहीं मिलेगी. ऐसे मामलों की सुनवाई सेशन कोर्ट में होगी ताकि सख्त और तेज कार्रवाई हो सके.

बिल को लेकर ईसाई समुदाय में गहरी नाराजगी है और समुदाय इसे वापस लेने की मांग कर रहा है। बीते सप्ताह जयपुर में हुए विरोध प्रदर्शन का आयोजन ‘कोऑर्डिनेशन अगेंस्ट द रिलिजियस कन्वर्जन बिल,२०२५ ‘ के बैनर तले किया गया, जिसमें २० से अधिक संगठन शामिल हुए। प्रदर्शनकारियों ने राज्यपाल हरिभाऊ बगड़े से इस विधेयक पर अपनी सहमति नहीं देने का आग्रह किया। साथ ही, उन्होंने मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा से प्रार्थना सभाओं को अपराध की श्रेणी से बाहर करने और ईसाइयों को निशाना बनाने वाली बजरंग दल जैसी समूहों की नफरत फैलाने वाली मुहिम के खिलाफ कार्रवाई की मांग की।

नाबालिग, महिला, एससी, एसटी और विशेष योग्यजन को कपटपूर्ण तरीके से धर्म परिवर्तन कराने पर न्यूनतम १० साल से लेकर २० साल तक की जेल और १० लाख का जुर्माना होगा।

क्या है यह विधेयक?

राजस्थान धार्मिक परिवर्तन विधेयक ९ सितंबर २०२५ को विधानसभा में पारित हुआ। अब यह राज्यपाल की मंजूरी का इंतजार कर रहा है।सरकार का कहना है कि इसका मकसद बलपूर्वक, धोखे से या गलत तरीके से किए जाने वाले धर्म परिवर्तनों पर रोक लगाना है।

राज्य सरकार का तर्क है कि यह विधेयक जबरन धर्मांतरण को रोकने और ‘लव जिहाद’ जैसी प्रथाओं से संवेदनशील वर्गों की रक्षा करने के लिए आवश्यक है। वरिष्ठ पत्रकार सनी सेबास्टियन के अनुसार, राजस्थान धर्म परिवर्तन पर कानून बनाने वाला भारत का १३ वां राज्य बन गया है और दंड के मामले में यह अपनी तरह का सबसे सख्त कानून है।

यह विधेयक कथित झूठे बहलावे, बलपूर्वक या धोखाधड़ी से किए जाने वाले धार्मिक परिवर्तनों पर प्रतिबंध लगाता है। इसमें यह साबित करने का दायित्व उस व्यक्ति पर डाल दिया गया है जिसने धर्म परिवर्तन करवाया है, कि यह कानूनी था। विधेयक में अवैध धर्म परिवर्तन के लिए दंड का प्रावधान किया गया है:

सामान्य परिवर्तन: ७ से १४ वर्ष की कैद और ५ लाख रुपये का जुर्माना।

नाबालिग या महिला का परिवर्तन: १० से २० वर्ष की कैद और १० लाख रुपये का जुर्माना।

सामूहिक परिवर्तन: २० वर्ष से आजीवन कारावास और २५ लाख रुपये का जुर्माना।

धर्म परिवर्तन के लिए विदेशी धन प्राप्त करना: १० से २० वर्ष की कैद और २० लाख रुपये का जुर्माना।

संबंधित संस्थाओं का लाइसेंस रद्द किया जा सकता है, उनकी संपत्ति जब्त की जा सकती है और उन पर १ करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है।

स्वैच्छिक परिवर्तन की प्रक्रिया और आलोचना

विधेयक के तहत स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन करने वाले व्यक्ति को जिला मजिस्ट्रेट (DM) को ९० दिन पहले सूचित करना होगा, जबकि धर्म परिवर्तन कराने वाले व्यक्ति को ६० दिन पहले सूचना देनी होगी। जिला मजिस्ट्रेट द्वारा इन सूचनाओं को सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करना अनिवार्य है, जिसके कारण निजता के अधिकार को लेकर चिंताएं उठ रही हैं।

आलोचकों का कहना है कि विधेयक में ‘पैतृक धर्म’ में वापस लौटने वालों को छूट देना, ‘घर वापसी’ अभियान को बढ़ावा देने जैसा है। साथ ही, केवल अवैध धर्म परिवर्तन के उद्देश्य से किए गए विवाहों को अमान्य घोषित किया जा सकता है।

विधेयक का हो रहा विरोध

जमात-ए-इस्लामी हिंद के राज्य अध्यक्ष मुहम्मद नजीमुद्दीन ने इस विधेयक को एक ‘काला कानून’ बताते हुए कहा कि यह असंवैधानिक है और संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। उन्होंने इसके निरस्त किए जाने की मांग की। प्रदर्शनकारियों ने विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के सदस्यों द्वारा प्रार्थना सभाओं पर किए गए बार-बार के हमलों की निंदा की और पादरियों व भक्तों के खिलाफ मामले दर्ज करने के लिए पुलिस की आलोचना की। प्रताप नगर थाना में दर्ज एफआईआर नंबर 0783/2025 में तत्काल कार्रवाई की मांग की गई।

इस अवसर पर पास्टर विजयपाल सिंह और जयपुर डायोसिस के विकार जनरल फादर एडवर्ड ओलिवेरा ने भी अपने विचार रखे। बिशप एमेरिटस ओसवाल्ड लुईस तथा बौद्ध एवं अन्य धार्मिक समुदायों के प्रतिनिधि भी मौजूद रहे। सभा में यह एकमत संकल्प लिया गया कि विधेयक वापस लिए जाने तक उनका राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शन जारी रहेगा।

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