प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के लिए मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना को लॉन्च कर दिया है. 75 लाख महिलाओं के बैंक खातों में सीधे 10000 रुपए भेजे गए हैं. इस पहल के जरिए महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना और स्व-रोजगार व आजीविका के अवसरों के माध्यम से महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देना है. मगर वास्तव में इसके जरिये एक बड़ा समीकरण साधा जा रहा है.
पटना : बिहार विधानसभा चुनाव जल्द होने जा रहे हैं। सरकार महिलाओं पर इसलिए ध्यान केंद्रित किए हुए है क्योंकि सूबे में महिलाओं की जनसंख्या लगभग 48 फीसदी है. उनका एक बड़ा तबका पिछले कुछ चुनावों से एनडीए के पक्ष में वोट करता आया है. यही वजह है कि अब महिलाओं के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना का शुभारंभ किया. इस दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मुख्य अतिथि थे.
शुरू की गई इस योजना के जरिए बिहार की 75 लाख महिलाओं के बैंक खातों में सीधे 10000 रुपए भेजे गए हैं. ऐसा एनडीए का कहना है. इससे सूबे के खजाने से 7500 करोड़ रुपए खर्च किए गए. केंद्र का कहना है कि बिहार सरकार की इस पहल के जरिए महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना और स्व-रोजगार व आजीविका के अवसरों के माध्यम से महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देना है.

प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) के मुताबिक, इसके तहत राज्य के हर परिवार की एक महिला को वित्तीय सहायता दी जाएगी, जिससे वे अपनी पसंद का रोजगार या आजीविका गतिविधियां शुरू कर सकेंगी. उन्हें 10000 रुपए का प्रारंभिक अनुदान दिया गया है. इसके बाद के चरणों में 2 लाख रुपए तक की अतिरिक्त वित्तीय सहायता मिलने की संभावना है. जिन महिलाओं को रकम भेजी गई है वे अपनी पसंद के क्षेत्रों में काम कर सकती हैं. इसमें कृषि, पशुपालन, हस्तशिल्प, सिलाई, बुनाई और अन्य लघु उद्योग शामिल हैं.
पीएमओ के मुताबिक, मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना कम्युनिटी संचालित होगी और इसमें फाइनेंशियल सपोर्ट के साथ-साथ स्वयं सहायता समूहों से जुड़े सामुदायिक संसाधन लोग उनके प्रयासों को समर्थन देने के लिए प्रशिक्षण देंगे. महिलाओं द्वारा निर्मित वस्तुओ की बिक्री बढ़ाने लिए राज्य में ग्रामीण हाट-बाजारों का विकास किया जाएगा.
डीबीटी के जरिए भेजे १० हजार रूपए
मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना में १० हजार रुपए पाने वाली हर लाभार्थी को प्रत्यक्ष लाभ अंतरण यानी डीबीटी के जरिए पैसा भेजा गया. ये रकम डायरेक्ट उनके बैंक अकाउंट में ट्रांसफर की गई है. दरअसल, डीबीटी भारत सरकार की ओर से २०१३ में शुरू की गई एक पहल है जिसका उद्देश्य कल्याणकारी भुगतानों और सब्सिडी को सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में ट्रांसफर करना है. इससे उनको दिए गए लाभों का पूरी डिटेल उनके बैंक खातों में दर्ज होती है, जिससे पारदर्शिता बढ़ती है और भ्रष्टाचार कम होता है. साथ ही साथ प्रशासनिक खर्च में कमी आती है और लाभार्थियों को समय पर लाभ मिलता है.

महिलाओं को आकर्षित करने की साजिश है यह योजना
पीएम मोदी और नीतीश की जोड़ी पिछले कुछ विधानसभा चुनाव के जीत के पैटर्न को देखकर आगे बढ़ रही है. मध्य प्रदेश में बीजेपी की सरकार ने चुनाव से पहले लाडली बहना योजना को लॉन्च किया. इस योजना के तहत पात्र महिलाओं को 1000 रुपए की महीने वित्तीय सहायता दी, जिसे धीरे-धीरे बढ़ाकर २०२८ तक ३००० रुपए प्रतिमाह करने का दावा किया गया है.
इसी तरह महाराष्ट्र में भी लाडली बहन योजना यानी मुख्यमंत्री माझी लाडकी बहिण योजना को लॉन्च किया गया, जिसके जरिए पात्र महिलाओं को हर महीने १५०० की आर्थिक मदद दी जाती है. चुनावी विश्लेषकों का कहना है कि चुनावों से पहले बीजेपी और उसके घटक दलों की ओर से की गई इन घोषणाओं से उसे फायदा हुआ है. यही वजह है कि एनडीए के घटक दल महिलाओं को पुरुषों की तुलना में ज्यादा तरजीह दे रहे हैं.
भीख नहीं नौकरी चाहिए
बेरोज़गार युवक और युवतियों ने इस योजना को साजिश करार दिया है. पैसों का बंटवारा करने के बजाय सरकार बेरोज़गारों को रोज़गार मुहैया करवाए ऐसी मांग की जा रही है. हर घर की एक महिला को १० हजार रुपये देने लाभ होगा ? यह सवाल भी पूछा जा रहा है. चुनाव में अपना वोट बैंक बढ़ने के लिए सर्कार द्वारा चली गयी यह एक चल मात्रा है, जो बिहार में कामयाब नहीं होगी ऐसा मत मंजीत घोषी ने व्यक्त किया है.