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बाबासाहब आंबेडकर के लढवय्ये जनता की दास्ताँ बताता काव्यसंग्रह है मुक्तिमुल्य,राहुल वानखेड़े के काव्यसंग्रह का प्रकाशन

बाबासाहब आंबेडकर के लढवय्ये जनता की दास्ताँ बताता काव्यसंग्रह है मुक्तिमुल्य,राहुल वानखेड़े के काव्यसंग्रह का प्रकाशन

नागपुर : राहुल वानखेड़े द्वारा लिखित कवितासंग्रह मुक्तिमुल्य का प्रकाशन कार्यक्रम आज विदर्भा हिंदी साहित्य सम्मलेन के मधुरंम सभागृह में सम्पन्न हुआ। इससे पूर्व व्यवस्था विध्वंस यह कवितासंग्रह १९९६ में तथा सूर्यबीज कवितासंग्रह २०१४ में प्रकाशित हुआ. पेशे से इंजीनियर होने के बावजूद अपने शौक और सामाजिक परिस्थितियों की वहज से दिल में आनेवाले शब्दों को कागज़ पर उतारकर अब तक ३ काव्यसंग्रह समाज को अर्पित करने का काम राहुल वानखेड़े ने किया है। राजनितिक लोकतंत्र होने के बावजूद देश में अब तक सामाजिक लोकतंत्र प्रस्थापित नहीं हो सका है और जब तक यह सामाजिक लोकतंत्र प्रस्थापित नहीं हो जाता तब तक मुक्तिमुल्य का संघर्ष जारी रहेगा ऐसा मत राहुल दहेकर ने व्यक्त किया।

भक्तांची गर्दी रस्तोरस्ती
गांवा गावात सत्ताधीशांची मस्ती
पवित्र गायीचे मुत्रमल
संविधान एक शब्द छल …

मुक्तिमुल्य की कविताये पढ़कर बहुजन क्रांति के पुराने दिन याद आ गए ऐसा मत कवी एवम सामाजिक सुधारक सुदाम सोनुले ने व्यक्त किये।डॉ बाबासाहब आंबेडकर से प्रेरणा लेकर समाज उत्थान के लिए वर्त्तमान में हमारे सामने अनेक चुनौतियां है. राहुल वानखेड़े की कविताएं सिर्फ कविता न होकर एक विचार हैं, ऐसा भी उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा.

मुक्ति की बाते हम सभी करते है मगर इसके लिए हम क्या मूल्य चुकाने की तैयारी रखते है यह बात अत्यंत महत्वपूर्ण है ऐसा मत ज्ञानेश वाकुड़कर इन्होने व्यक्त किया. फुले – शाहू – आंबेडकर इनके विचार हमारी सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के लिए एक दवाई का काम करते है, मगर इसको इस्तेमाल करने के लिए जो कीमत चुकानी पड़ेगी क्या उसके लिए हम वाकई तैयार है? यह सोचने की बात है ऐसा मत भी उन्होंने व्यक्त किया. राहुल वानखेड़े एक मिशनरी व्यक्ति है इसलिए उनकी कविताओं की तरफ कविता की तरह नहीं अपितु शब्दों में छिपी उनकी व्यथा और समाज कल्याण के लिए कुछ कर गुजरने की उनकी जद्दोजेहद की तरह देखा जाना चाहिए। मुक्तिमुल्य में दर्जेदार कविताओं की प्रशंसा करते हुए ज्ञानेश वाकुड़कर ने अपने शब्दों में कुछ इस तरह कहा कि

वार झाले तरी झेलले पाहिजे
दुःख डोळ्या मधे पेलले पाहिजे
हे जगाला नाही मी तुला सांगतो
एकदा तू खरे बोलले पाहिजे

इस कार्यक्रम की अध्यक्षता एड. रमेश शंभरकर ने की, अध्यक्षीय भाषण में उन्होंने कहा की राहुल वानखेड़े की कविताये आज के भयावह और षडयंत्रकारी वातावरण पर आघात करती है.वंचित वर्ग का सैकड़ो वर्षो से असमानता के विरुद्ध चल रहे संघर्ष में कुछ लोग स्वार्थी निकल जाए तो अचरज की बात नहीं, मगर ऐसे लोगों को पीछे छोड़कर अपनी अधिकारों की लड़ाई में बढ़-चढ़कर भाग लेने का जज़्बा अम्बेडकरी समाज में है जिसका जिक्र भी बखुबी इस कविता संग्रह में किया गया है। कार्यक्रम में प्रा . वाकुलकर ,राहुल दहेकर, भीमराव वैद्य, जावेद पाशा जैसे मान्यवर उपस्थित थे. कार्यक्रम के दौरान राहुल वानखेड़े ने भी अपनी एक कविता प्रस्तुत की और अशोक जाम्भुलकर ने कार्यक्रम संचालन किया.

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