महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में १ जनवरी से ३१ अगस्त २०२५ तक १२१४ किसानों ने आत्महत्या की. सरकार ने मामलों में मुआवजा दिया है, पर 208 मामले लंबित हैं. बीड और नांदेड़ जिले सबसे अधिक प्रभावित हैं. जलवायु परिवर्तन, सूखा, और सिंचाई की कमी प्रमुख कारण बताये जा रहे है.मगर सरकार और प्रशासन के तमाम दावों के बावजूद, किसानों की जिंदगी बचाने के प्रयास अभी भी नाकाफी साबित हो रहे हैं.इसलिए विपक्ष लगातार सरकार से सवाल कर रहा है
मराठवाड़ा: क्षेत्र में किसानों की आत्महत्या की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं. १ जनवरी २०२५ से ३१ अगस्त २०२५ तक कुल १२१४ किसानों की आत्महत्या दर्ज की गई है. इसमें से ७६२ मामलों की जांच पूरी कर मुआवजा प्रक्रिया शुरू की गई है, जबकि २०८ मामले लंबित हैं. अब तक पीड़ित परिवारों को लगभग 762 लाख रुपये की मदद वितरित की गई है.किसानों के आत्महत्या के सबसे अधिक मामले बीड (172) और नांदेड़ (104) जिलों से आए हैं. केवल जालना और लातूर जिलों में बड़ी संख्या में प्रकरण अभी भी लंबित हैं. अगस्त महीने में मामलों की संख्या में अचानक गिरावट दर्ज की गई, लेकिन लंबित प्रकरणों का आंकड़ा बढ़ा है.

पूरी तरह से खेती पर निर्भर हैं किसान
विश्लेषकों का कहना है कि इनमें से ज्यादातर किसान पूरी तरह से कृषि पर निर्भर परिवारों से हैं, जिनके पास आय का कोई वैकल्पिक स्रोत नहीं है. ऐसे में जब फसलें खराब हो जाती हैं, तो वे आत्महत्या का रास्ता अपनाते हैं. हाल ही में तब विवाद खड़ा हो गया जब महाराष्ट्र के कृषि मंत्री माणिकराव कोकाटे ने टिप्पणी की कि किसान माफी की उम्मीद में जानबूझकर फसल ऋण नहीं चुकाते हैं. उन्होंने सरकारी समर्थन के बावजूद किसानों पर अपने खेतों में निवेश नहीं करने का आरोप लगाया. हालांकि बाद में कोकाटे ने माफी मांगी, लेकिन मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस और उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने उनकी असंवेदनशीलता के लिए उन्हें फटकार लगाई.
जलवायु परिवर्तन से बदल रहा मौसम
हाल के वर्षों में इस क्षेत्र को जलवायु परिवर्तन का सामना करना पड़ा है, जिसमें बार-बार सूखा, बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि शामिल है. इसके अलावा पानी की कमी के साथ, “अर्ध-शुष्क परिस्थितियां और अपर्याप्त सिंचाई किसानों को अनियमित मानसून की दया पर छोड़ देती है. भूजल की कमी ने संकट को और बढ़ा दिया है, अब 700 से 1,000 फीट गहरे बोरवेल खोदे जा रहे हैं, जिससे सिंचाई की लागत काफी बढ़ गई है. २०१५ में, मंजारा जैसे प्रमुख जलाशयों में शून्य भंडारण था. परिणामस्वरूप, कई किसान गन्ना काटने या शहरों में मजदूरी करने के लिए पलायन कर गए हैं, जिससे परिवार और स्थानीय अर्थव्यवस्थाएं अस्त-व्यस्त हो गई हैं.
विपक्ष लगातार सरकार से पूछ रहा सवाल
सरकार और प्रशासन के तमाम दावों के बावजूद, किसानों की जिंदगी बचाने के प्रयास अभी भी नाकाफी साबित हो रहे हैं. हर महीने किसानों की आत्महत्याएं निरंतर हो रही है, १२०० से ज्यादा किसानो का जान दे देना एक गंभीरता का विषय है , इसलिए विपक्ष लगातार सरकार से सवाल कर रहा है. राहुल गांधी ने मोदी सरकार से किसानों की आय दोगुनी करने वाले वायदे पर तीखा हमला किया है.


