डॉ बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर ने ऐसा एक सपना देखा था- एक ऐसे भारत का, जहां शिक्षा हर उस इंसान तक पहुंचे, जिसे समाज ने हाशिए पर धकेल दिया। और इसके लिए ८ जुलाई १९४५ में पीपल्स एज्युकेशन सोसाइटी (PES) की स्थापना की| अशिक्षा का अंधेरा मिटाकर सभी के लिए शिक्षा की रोशनी बिखेरने का काम इस संस्था के माध्यम से हुया है।
लेकिन समय की मार ऐसी पड़ी कि PES की कुछ इमारतें जर्जर हो गईं। दीवारें दरकने लगीं, और बाबासाहेब का सपना धूल में सना नजर आने लगा। कॉलेजों की पुरानी इमारतें नई पीढ़ी को आकर्षित करने में कमजोर पड़ने लगीं। किताबों की धूल और टूटी बेंचों के बीच वो क्रांति धीमी पड़ती दिखी, जो बाबासाहेब ने शुरू की थी। लेकिन आज, सामाजिक न्याय विभाग महाराष्ट्र सरकार ने एक ऐसा कदम उठाया है, जो सिर्फ ईंट-गारे की मरम्मत नहीं, बल्कि उस सपने की बहाली है। PES की मुंबई और संभाजीनगर कॉलेज और स्कूल्स और 2 छात्रावासों के जीर्णोद्धार के लिए 500 करोड़ रुपये की मंजूरी ये सिर्फ फंडिंग नहीं, बल्कि बाबासाहेब के विजन को फिर से जीवंत करने की प्रतिबद्धता है।
- इस ऐतिहासिक फैसले के लिए महाराष्ट्र सरकार को सलाम। CM देवेंद्र फडणवीस, सामाजिक न्याय मंत्री संजय सिरसाट की तारीफ बनती है। इस पूरी योजना की बनाने वाले है — डॉ. हर्षदीप कांबले, सामाजिक न्याय विभाग के प्रिंसिपल सेक्रेटरी । एक ऐसा शख्स, जिसने बाबासाहेब की विरासत को फिर से सजाने का जिम्मा उठाया। ये सिर्फ एक अफसर का काम नहीं, ये एक मिशन है। एक ऐसा मिशन, जो बाबासाहेब ने शुरू किया था—शिक्षा के जरिए सामाजिक न्याय का मिशन। समाज की तरफ से डॉ. कांबले को सलाम। साधुवाद। और अनंत शुभकामनाएँ।
- डॉ. हर्षदीप कांबले का जज्बा बताता है कि IAS जैसे पद पर बैठकर भी सामाजिक न्याय को जिंदगी का मकसद बनाया जा सकता है। PES को फंडिंग जैसी योजनाएँ उनके दूरदर्शी सोच का सबूत हैं। जब वो संभाजी नगर में कमिश्नर थे, तब उन्होंने डॉ. आंबेडकर अपेक्षित बुद्धिस्ट सेमिनरी बनवाकर समाज को एक सांस्कृतिक धरोहर दी।

उस दौर में, जब दलित, शोषित, और वंचित वर्गों के लिए स्कूल का दरवाजा देखना भी सपना था, बाबासाहेब ने PES की नींव रखी। सिद्धार्थ कॉलेज ऑफ आर्ट्स, साइंस एंड कॉमर्स (मुंबई), मिलिंद कॉलेज (छत्रपती संभाजीनगर), नाइट कॉलेजेस जो कामकाजी छात्रों को रात में पढ़ने का मौका देते हैं, और गरीब बच्चों के लिए छात्रावास—ये सिर्फ इमारतें नहीं थीं। ये सामाजिक क्रांति की प्रयोगशालाएँ थीं। इन संस्थाओं ने लाखों युवाओं को डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर, जज, और अफसर बनाया। जाति, धर्म, और वर्ग की दीवारें तोड़कर PES ने शिक्षा को हर उस इंसान तक पहुँचाया, जिसे समाज ने किनारे कर दिया था।

डॉ. हर्षदीप कांबले जैसे लोग हमें यकीन दिलाते हैं कि बाबासाहेब का सपना अभी जिंदा है। ये सिर्फ एक संस्था की कहानी नहीं, ये उस भारत की कहानी है, जो बाबासाहेब ने देखा था—एक ऐसा भारत, जहाँ हर इंसान को उसका हक मिले, उसकी आवाज सुनी जाए, और उसका सिर हमेशा ऊँचा रहे
और हाँ, डॉ. हर्षदीप कांबले आप जहाँ जाते हैं, वहाँ बदलाव की लकीर खींच देते हैं जैसे की इंडस्ट्री डिपार्टमेंट में रिकॉर्ड-ब्रेकिंग विदेशी निवेश। वो ख़ुद बाबासाहेब अंबेडकर के विचारों से अत्यंत प्रभावित है और उनको अपना आदर्श मानते है । आप सिर्फ एक अफसर नहीं, बदलाव का चेहरा हैं। बाबासाहेब ने बोला था की हमारे लोगो ने पॉलिसी बनाने वाली जगह क़ाबिज़ करके समाज के उपयुक्त काम करना चाहिए । डॉ हर्षदीप कांबले इसका एक प्रेरणादायी उदाहरण है। आपको आदरपूर्वक जयभीम ।