डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर द्वारा दी धम्म दीक्षा के स्वाभिमान बहाल करने वाले ऐतिहासिक क्षण को याद करते हुए मंगलवार को लाखों अनुयायियों ने पवित्र दीक्षाभूमि पहुंचकर उनके स्मारक पर श्रद्धांजलि दी। श्वेत वस्त्रों में सजे धम्मबांधवों के कारण दीक्षाभूमि परिसर नीले पक्षियों की भीड़ से भर उठा। यह परिसर पंचशील और नीले झंडों के साथ, शाम के तांबे जैसी रोशनी में नहाया हुआ दिख रहा था, जहां अनुयायियों ने धम्म क्रांति को अभिवादन किया। नीली टोपियों में समता सैनिक दल की महिलाओं की परेड आकर्षण का केंद्र बनी।
नागपुर : करुणा, समता और प्रज्ञा का प्रतीक दीक्षाभूमि मंगलवार को एक बार फिर धम्ममय वातावरण में परिवर्तित हो गई। इस पवित्र स्थल पर आयोजित बुद्ध वंदना कार्यक्रम में बड़ी संख्या में अनुयायियों ने भाग लेकर बुद्ध, धम्म और संघ के प्रति अपनी निष्ठा प्रकट की। इस अवसर पर भिक्षुसंघ और भिक्षुणी संघ की उपस्थिति ने समारोह को और भी आध्यात्मिक और प्रभावशाली बनाया।
भदंत आर्य नागार्जुन सुरेई ससाई की अध्यक्षता में संपन्न इस कार्यक्रम में भगवा वस्त्रधारी भिक्षु और भिक्षुणियों ने बुद्ध और बाबासाहेब आंबेडकर की प्रतिमाओं पर पुष्पांजलि अर्पित कर श्रद्धांजलि दी। इस अवसर पर उपस्थित जनसमूह ने त्रिशरण और पंचशील ग्रहण कर बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों को अपनाने का संकल्प लिया।
समता सैनिक दल के कार्यकर्ता नीली टोपी पहनकर सुरक्षा व्यवस्था संभाल रहे थे। दीक्षाभूमि परिसर में हर तरफ मंगल मैत्री का वातावरण दिखाई दे रहा था। बोधिवृक्ष की छांव में कवि वामनदादा कर्डक के गीत ‘बुद्धाकडे जनता वळे, भीमा तुझ्या जन्मामुळे…’ के बाद, वर्तमान स्थिति का आकलन करने वाला और कार्यकर्ताओं को लड़ने की प्रेरणा देने वाला क्रांतिनाद भी गूंज रहा था। बौद्ध भंते मंगल कामनाएं कर रहे थे। इस मंगल मैत्री के माध्यम से ही भारत बुद्धमय हो सकेगा, ऐसा विश्वास व्यक्त करते हुए बुद्ध धम्म और संघ वंदना के स्वर चारों ओर सुनाई दे रहे थे।
पुरस्तक,अस्थिकलश पर विशेष जोर
दीक्षाभूमि पर बड़े पैमाने पर किताबों की दुकानें सजी थीं। किताबों की दुकानों के साथ ही यहां बाबासाहेब और बुद्ध के जीवन संघर्ष का इतिहास गीत-संगीत के माध्यम से बताने वाली सीडी, डीवीडी, मूर्तियां और तस्वीरों की भी भीड़ थी। अशोक विजयादशमी की तुलना में, नागपुर के अनुयायियों ने अपने उद्धारकर्ता के अस्थिकलश को वंदन करने के लिए १४ अक्टूबर को दीक्षाभूमि पर अधिक भीड़ की। अस्थिकलश के दर्शन के लिए अनुयायी देर रात तक आते रहे। आंदोलनों के कार्यकर्ता, गायक, या वादक—सभी की कैसेटों से डॉ. अंबेडकर के कृतित्व पर काव्य क्रांति का नाद जारी रहा।
‘प्रतिक्रांति’ से मुकाबला करने का आह्वान
दीक्षाभूमि परिसर में समता सैनिक दल द्वारा एक चर्चा सत्र का आयोजन किया गया। चर्चा का मुख्य बिंदु यह था कि 1956 की बाबासाहेब की धम्म दीक्षा समाज के लिए एक क्रांति थी, जिसने नैतिकता और वैज्ञानिकता पर आधारित धम्म का मार्ग प्रशस्त किया। इससे भिक्खू संघ का निर्माण हुआ, लेकिन धम्म प्रसार का काम अपेक्षित स्तर पर नहीं हो पाया। वक्ताओं ने कहा कि बाबासाहेब का भारत को बुद्धमय बनाने का सपना अभी भी अनुयायियों की आंखों में है। वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि इस सपने को पूरा करते समय, 69 वर्षों के बाद, अब अंबेडकरी समाज के सामने एक बड़ी ‘प्रतिक्रांति’ खड़ी हो गई है। अब इस प्रतिक्रांति का सामना करने का समय आ गया है। इस चर्चा सत्र में राष्ट्रीय संगठक सुनील सारिपुत्त सहित कई अन्य लोगों ने अपने विचार व्यक्त किए।
दीक्षाभूमि का ऐतिहासिक महत्व
१४ अक्टूबर १९५६ का दिन भारतीय इतिहास में सामाजिक समानता और परिवर्तन के प्रतीक के रूप में दर्ज है। इसी भूमि पर डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने महास्थवीर चंद्रमणी के सान्निध्य में बौद्ध धर्म स्वीकार कर सामाजिक भेदभाव और असमानता के खिलाफ अपने आंदोलन को नई दिशा दी। इस घटना ने पूरे देश में समानता और बंधुत्व की भावना को मजबूत किया।
समाज के विभिन्न वर्गों के लोग, विशेषकर दलित और पिछड़े वर्ग, आज भी इस दिन को यादगार रूप में मनाते हैं और इसे सामाजिक जागरूकता के रूप में देखते हैं। दीक्षाभूमि केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन और समानता का प्रतीक बन चुकी है।
भिक्षुसंघ और भिक्षुणी संघ की उपस्थिति
भदंत आर्य नागार्जुन ससाई और अन्य प्रमुख भिक्षु-भिक्षुणियों की उपस्थिति ने कार्यक्रम को अत्यधिक आध्यात्मिक वातावरण प्रदान किया। उन्होंने उपस्थित लोगों को धम्म का पालन और जीवन में करुणा, समानता तथा प्रज्ञा के मार्ग पर चलने का संदेश दिया।
इस अवसर पर उपस्थित अनुयायियों ने बुद्ध वंदना के दौरान शांति, करुणा और आत्म-नियंत्रण के सिद्धांतों का पालन करने का संकल्प लिया। भगवा वस्त्रधारी संघ के सदस्य भिक्षु-भिक्षुणियों ने अपने प्रवचनों में सामाजिक बंधुत्व और समता का संदेश दिया।
कार्यक्रम की रूपरेखा और आयोजन
दीक्षाभूमि परिसर में आयोजित कार्यक्रम में संविधान चौक और विमानतल परिसर सहित विभिन्न स्थानों पर श्रद्धालुओं द्वारा बाबा साहेब आंबेडकर की मूर्तियों पर पुष्प अर्पित किए गए। आयोजन समिति ने लोगों के लिए त्रिशरण और पंचशील ग्रहण करने की व्यवस्था की, जिससे प्रत्येक व्यक्ति बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों को समझ सके और उन्हें जीवन में अपनाने का संकल्प ले सके। इस प्रकार दीक्षाभूमि ने न केवल धार्मिक कार्यक्रमों का मंच प्रदान किया, बल्कि सामाजिक जागरूकता और समानता के संदेश को भी आगे बढ़ाया।