चीफ जस्टिस बीआर गवई पर जूता फेंकने वाले वकील राकेश किशोर कुमार ने अपनी बात रखी है। उन्होंने कहा- CJI के भगवान विष्णु पर दिए बयान से मैं आहत हूं। उनके एक्शन (टिप्पणी) पर ये मेरा रिएक्शन था। मैं नशे में नहीं था। जो हुआ, मुझे उसका अफसोस नहीं, किसी का डर भी नहीं है।
उन्होंने कहा- यही चीफ जस्टिस बहुत सारे धर्मों के खिलाफ, दूसरे समुदाय के लोगों के खिलाफ केस आता है तो बड़े-बड़े स्टेप लेते हैं। उदाहरण के लिए- हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर विशेष समुदाय का कब्जा है, सुप्रीम कोर्ट ने उस पर तीन साल पहले स्टे लगाया, जो आज तक लगा हुआ है।
मुख्य न्यायाधीश के फैसले से आहत
चीफ जस्टिस बीआर गवई पर सुप्रीम कोर्ट में जूता फेंकने वाले वकील राकेश किशोर ने कहा कि उन्हें अपने किए पर कोई अफसोस नहीं है. उन्होंने कहा जो मैने किया वो सिर्फ एक्शन का रिएक्शन था. वकील ने बताया कि वह १६ सितंबर को दिए गए मुख्य न्यायाधीश के फैसले से आहत था. १६ सितंबर को बीआर गवई ने मध्य प्रदेश के खजुराहो के जवारी मंदिर में भगवान विष्णु की सिर कटी मूर्ति की पुनर्स्थापना से संबंधित याचिका को खारिज कर दिया था। राकेश किशोर ने कहा कि जब हमारे सनातन धर्म से जुड़ा कोई मामला आता है, तो सर्वोच्च न्यायालय ऐसे आदेश देता है. उन्होंने कहा कि कोर्ट याचिकाकर्ता को राहत न दें, लेकिन उसका मजाक भी न उड़ाएं.
उन्होंने कहा मेरा यह कदम नशे में उठाया हुआ नहीं था बल्कि न्यायलय के फैसले से मुझे चोट लगी थी,” साथ ही उन्होंने कहा कि मैं डरा हुआ नहीं हूं. जो हुआ उसका मुझे कोई पछतावा नहीं है. इसके अलावा उन्होंने दावा किया कि सनातन धर्म पर अदालत भेदभाव करती है और इसके लिए उन्होंने नूपुर शर्मा का भी उदाहरण दिया.
CJI
The uncivilised behaviour of a member of the Supreme Court Bar must be publicly condemned by one and all since it is affront to the majesty of the court
The silence of the PM , the Home Minister and the Law Minister is to say the least surprising
नूपुर शर्मा के खिलाफ एक्शन होता है, लेकिन जब सनातन का मामला आता है तो…
राकेश किशोर ने कहा कि यही चीफ जस्टिस जब किसी और धर्म का मामला आता है, तो बड़े-बड़े स्टेटमेंट देते हैं. उदाहरण के तौर पर उन्होंने कहा कि हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर एक विशेष समुदाय का कब्जा है, जब उसको हटाने की कोशिश की गई तो सुप्रीम कोर्ट ने स्टे लगा दिया और वह स्टे अभी तक लगा हुआ है.उन्होंने आगे कहा कि ऐसे ही नुपुर शर्मा का मामला आया तो कोर्ट ने कहा कि आपने माहौल खराब कर दिया. लेकिन जब सनातन धर्म का मामला आता है, तो ये सुप्रीम कोर्ट कुछ नहीं करती है. इससे में आहत हूं.
सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस बी आर गवई की ओर जूता फेंकने का प्रयास निंदनीय है लेकिन सरकार को इसकी गंभीरता समझ आने में इतना वक्त क्यों लगा? वरिष्ठ वकील पिल सिब्बल @KapilSibal पौने छह बजे सवाल कर चुके थे कि इस घटना पर प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और कानून मंत्री क्यों चुप हैं? क़ानून…
जूता निकालने की घटना का संबंध जातिगत और सामंती पृष्ठभूमि से है : रविश कुमार
रविश कुमार ने x पर अपनी पोस्ट में लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस बी आर गवई की ओर जूता फेंकने का प्रयास निंदनीय है लेकिन सरकार को इसकी गंभीरता समझ आने में इतना वक्त क्यों लगा ? वरिष्ठ वकील पिल सिब्बल पौने छह बजे सवाल कर चुके थे कि इस घटना पर प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और कानून मंत्री क्यों चुप हैं? क़ानून मंत्री को सूचना मिलते ही निंदा करनी चाहिए थी। दोपहर तक कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, सोनिया गांधी से लेकर केरला और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने इसकी कड़ी निंदा कर दी थी। क्या सरकार को इस घटना की गंभीरता समझने में इतना वक्त लग गया? इतनी देर तक क्या गुणा भाग हो रहा था? कई दिनों से चीफ जस्टिस बी आर गवई के ख़िलाफ़ गोदी ऐंकरों के कार्यक्रम से लेकर सोशल मीडिया में अनाप शनाप बातें की जा रही थीं। उन सबको नज़रअंदाज़ किया गया। यह बेहद अफसोसनाक है कि ऐसी घटना हुई है। क्या किसी और के साथ ऐसी उदारता दिखाई जाती? क्या इसलिए सरकार ने इतना वक्त लिया क्योंकि जूता उछालने वाला सनातन का नारा लगा रहा था? बार संघ ने अच्छा किया समय रहते एक्शन लिया लेकिन जजों से लेकर सभी को इस पर बोलना चाहिए। यह रैंडम घटना नहीं है। जूता निकालने वाले का अधिकार बोध कहां से आया है? जूता निकालने की घटना का संबंध जातिगत और सामंती पृष्ठभूमि से है। आज डॉ अंबेडकर होते तो राष्ट्रीय उपवास पर चले गए होते। गांधी होते तो सबके बदले ख़ुद प्रायश्चित कर रहे होते। यह घटना संस्थाओं के ख़त्म होने के बाद इन्हें कुछ नहीं समझने के दुस्साहस का प्रदर्शन करती है।