मध्य प्रदेश कफ सिरप मामले में सामने आया है कि महाराष्ट्र में १४ बच्चों का इलाज चल रहा है। ये बच्चे मध्य प्रदेश के हैं, जो कफ सिरप पीने के बाद बीमार पड़े। महाराष्ट्र के खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) ने तत्काल सार्वजनिक अलर्ट जारी किया और कोल्ड्रिफ सिरप की बिक्री, वितरण और उपयोग को तत्काल बैन लगा दिया है।
नागपुर : कोल्ड्रिफ कफ सिरप को लेकर विवाद जारी है। मध्य प्रदेश में ११ बच्चों की कफ सिरप पीने से मौत हुई। अब सामने आया है कि छिंदवाड़ा जिले के कम से कम १४ और बच्चे किडनी फेल होने के बाद नागपुर के सरकारी और निजी अस्पतालों में जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं। ये वे बच्चे हैं, जिन्हें प्रतिबंधित कफ सिरप कोल्ड्रिफ दिया गया था।
लैब रिपोर्ट में क्या
लैब रिपोर्ट ने पुष्टि की है कि जीएमसीएच-नागपुर में मरने वाले छह बच्चों को डायथिलीन ग्लाइकॉल (डीईजी) विषाक्तता के कारण गुर्दे की विफलता हुई थी। सिरप के नमूने 48.6% डीईजी से दूषित पाए गए, जो एक विषैला पदार्थ है जिसका उपयोग एंटीफ्रीज और ब्रेक द्रव में किया जाता है। शुरुआत में, इन मौतों को एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के मामले माना गया था, लेकिन खांसी और बुखार के इतिहास वाले रोगियों में शून्य मूत्र उत्पादन ने सरकारी डॉक्टरों के बीच चिंता पैदा कर दी।

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तीन बच्चे वेंटिलेटर पर नागपुर नगर निगम सभी चिकित्सकों को दिशानिर्देश जारी किया है। उन्होंने डॉक्टर्स से कफ सिरप, खासकर पांच साल से कम उम्र के बच्चों को न लिखने की सलाह दी है। महाराष्ट्र सरकार ने तमिलनाडु के कांचीपुरम में श्रीसन फार्मा की निर्मित कोल्ड्रिफ पर प्रतिबंध लगा दिया। जीएमसीएच के शिशु रोग विभाग के प्रमुख डॉ. मनीष तिवारी ने बताया कि तीन बच्चे वेंटिलेटर पर हैं, जबकि दो की हालत गंभीर है।
सरकारी अस्पतालों दिए ये निर्देश
स्वास्थ्य सेवाओं के उप निदेशक डॉ. शशिकांत शंभरकर ने बताया कि नागपुर के सरकारी और निजी अस्पतालों में फिलहाल १४ बच्चे भर्ती हैं। उन्होंने कहा कि हमने नागपुर के छह ज़िलों के सभी सरकारी अस्पतालों को यह सिरप न लिखने का निर्देश दिया है। हालांकि, हमारे किसी भी अस्पताल में कोल्ड्रिफ की आपूर्ति या स्टॉक नहीं था। नागपुर या विदर्भ ज़िलों के बच्चों में गुर्दे की विफलता का कोई मामला सामने नहीं आया है। विदर्भ के कुछ ज़िलों से हमें केवल कुछ छिटपुट एईएस के मामले मिले हैं, लेकिन वे कफ सिरप से संबंधित नहीं हैं।

बच्चों की हालत गंभीर
नेल्सन अस्पताल में मध्य प्रदेश के छह बच्चों का किडनी फेलियर का इलाज करने वाले बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. अनुपम बाहे ने बताया कि कोल्ड्रिफ के अलावा, उनके मरीज़ों को दो अन्य कफ सिरप भी दिए गए थे। उन्होंने कहा कि दो बच्चों को अलग-अलग स्थानीय ब्रांड के कफ सिरप दिए गए। बाद में दोनों को दूसरे अस्पतालों में स्थानांतरित कर दिया गया और उनकी हालत गंभीर बनी हुई है। एनएमसी अधिकारियों ने कहा कि निगरानी अभी भी जारी है।
सिरप बनाने वाली कंपनी में 39 तरह की गंभीर गड़बड़ियां
छिंदवाड़ा में बच्चों की मौत के मामले की जांच अब कई परतें खोल रही है। तमिलनाडु सरकार की जांच में साफ हो गया है कि कफ सिरप में इस्तेमाल किया गया प्रोपीलीन ग्लाइकॉल फार्मा ग्रेड का नहीं था। यानी वह इंडस्ट्रियल ग्रेड का था- जो दवा निर्माण में प्रतिबंधित है। इंडस्ट्रियल ग्रेड प्रोपीलीन ग्लाइकॉल सस्ता तो पड़ता है, लेकिन इसमें डायएथिलीन ग्लाइकॉल (डीईजी) और एथिलीन ग्लाइकॉल (ईजी) जैसे जहरीले रासायनिक तत्व मिल जाते हैं।
यही तत्व शरीर में पहुंचने पर किडनी, लीवर और नर्वस सिस्टम को नुकसान पहुंचाते हैं। बच्चों के मामले में ये असर जानलेवा हो सकता है। जिस सिरप से बच्चों की मौत हुई, उसमें 48% से अधिक डीईजी मिला था। आमतौर पर गैर फार्मा प्रोपीलीन ग्लाइकॉल का इस्तेमाल सौंदर्य प्रसाधन, प्लास्टिक, पेंट, गैर विषाक्त एंटी-फ्रीज में होता है। कोल्ड्रिफ सिरप बनाने वाली फर्म ‘श्रीसन फार्मास्यूटिकल ने इसे चोरी छिपे चेन्नई स्थित पार्क टाउन की सनराइज बायोटैक से खरीदा था।
तमिलनाडु सरकार की 44 पेज की जांच रिपोर्ट ‘भास्कर’ के पास मौजूद है। इसमंे बताया गया है कि कंपनी के पास प्रोपीलीन ग्लाइकॉल की खरीदी का बैच नंबर नहीं था। कंपनी ने इस बात का परीक्षण तक नहीं किया कि प्रोपीलीन ग्लाइकॉल में में डीईजी/ईजी उपस्थित है या नहीं।