मायावती के लिए २०२७ का विधानसभा चुनाव जीवन मरण का प्रश्न है. अगर इस बार भी बीएसपी कुछ हासिल नहीं कर पाई तो इतिहास बनने से इस पार्टी को कोई नहीं बचा पाएगा. जाहिर है कि ९ अक्टूबर को लखनऊ में होने वाली मेगा रैली बीएसपी के लिए इस बार निर्णायक होने वाली है.
लखनऊ : बहुजन समाज पार्टी ९ अक्टूबर को लखनऊ में अपने संस्थापक कांशीराम की पुण्यतिथि पर मेगा रैली का आयोजन कर रही है. रैली की तारीख ज्यों ज्यों नजदीक आ रही है समाजवादी पार्टी और कांग्रेस नेताओं की परेशानी बढ़ती नजर आ रही है. केवल कांग्रेस और सपा ही नहीं, सांसद चंद्रशेखर की पार्टी भीम ऑर्मी भी इस रैली की तोड़.निकालने में लग गई है. जिस पार्टी को उत्तर प्रदेश के राजनीतिक दल खत्म मान कर चल रहे थे, उस पार्टी की एक रैली को लेकर वही दल अचानक इस तरह असहज क्यों हो गए है ?
चार साल के अंतराल के बाद मायावती कांशीराम स्मारक स्थल पर यह रैली कर रहीं हैं. पार्टी के नेता और कार्यकर्ता हफ़्तों से इस रैली की तैयारी में जुटे हुए हैं. खासकर दलित, अल्पसंख्यक और पिछड़ी जातियों से जुड़ी आबादी को लखनऊ आने के लिए आमंत्रित किया जा रहा है. पार्टी इसे अपनी ताक़त का प्रदर्शन बताकर २०२७ के विधानसभा चुनाव से पहले यूपी की जनता और अपने विरोधी दलों के सामने अपनी ताकत का प्रदर्शन करना चाहती है. पार्टी का प्रदर्शन पिछले कई चुनावों में उतरने से पहले कार्यकर्ताओं को इस तरह का जोश दिलाया जा सके कि सत्ता उनसे दूर नहीं है. जाहिर है कि प्रतिद्वंद्वी पार्टियों के लिए यह सतर्क होने का समय समय है.
पिछली बार मायावती ने ऐसी रैली ९ अक्टूबर २०२१ को २०२२ विधानसभा चुनाव से पहले की थी. हालांकि, उसके बाद हुए चुनाव में बसपा सिर्फ़ एक सीट पर सिमट गई और उसका वोट शेयर भी घटकर १२. ८ % रह गया. ४०३ सीटों वाली विधानसभा में बसपा के सिर्फ़ एक विधायक उमाशंकर सिंह (बलिया) हैं. २०२४ लोकसभा चुनाव में भी पार्टी को करारा झटका लगा और वह खाता तक नहीं खोल सकी. जाहिर है कि अगला चुनाव पार्टी के लिए जीवन मरण का प्रश्न है. शायद यही कारण है कि बसपा ने रैली को ऐतिहासिक बनाने के लिए व्यापक तैयारी शुरू कर दी है.

२ लाख लोगों के शामिल होने की उम्मीद
इस रैली में लगभग २ लाख लोगों के शामिल होने की उम्मीद पक्ष कर रहा है. सोशल मीडिया X पर # 9_अक्टूबरचलोलखनऊ ट्रेंड कर रहा है, कार्यकर्ता इसे ‘विशाल रैली’ बता रहे हैं. इतना ही नहीं दूसरे दलों में जा चुके नेताओं की वापसी की बात भी चल रही है. पार्टी सुप्रीमो मायावती अपने भतीजे आकाश आनंद को फिर से लॉन्च करने की रणनीति पर भी काम कर रही हैं. माना जा रहा है कि इस रैली का लिटमस टेस्ट पंचायत चुनावों में कर लिया जाएगा. क्यों कि पंचायत चुनावों से पहले संगठन को मजबूत करने और बूथ स्तर तक कमेटियां गठित करने की तैयारी हो चुकी है.
अपनी जमीन बचाने के हर संभव कोशिश
बसपा का कोर वोट बैंक दलित (लगभग २२ % आबादी) है, लेकिन हाल के वर्षों में यह भाजपा और सपा की ओर खिसक गया है. कांग्रेस जिस तरह से अपने पुराने कोर वोट बैंक को फिर से पाने की जद्दोजहद में है उससे साफ है कि भविष्य में बीएसपी के वोट बैंक में वह भी सेंध लगाने वाली है.यही कारण है कि मायावती इस रैली जरिए अपनी जमीन बचाने के हर संभव पुरजोर कोशिश कर रही हैं. बसपा के पुनरुत्थान की कोशिश से साफ देखा जा रहा है कि बसपा के प्रतिद्वंद्वी दलों में दलित और अति पिछड़े वोटों के लिए सतर्कता बढ़ गई है. नगीना से सांसद चंद्रशेखर आज़ाद की आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) ने भी अपने कार्यकर्ताओं से कहा है कि वे यूपी के हर ज़िले, लखनऊ सहित, कांशीराम की मनाएं. पार्टी पहले से ही प्रबुद्ध सम्मेलन आयोजित कर रही है और बहुजन समाज को अपने बैनर तले जोड़ने की अपील कर रही है.

उदित राज ने मायावती पर हमला बोला.
इंडियन एक्सप्रेस लिखता है कि आजाद समाज पार्टी (कांशी राम) के प्रदेश उपाध्यक्ष सौरभ किशोर कहते हैं कि हमारी जिला इकाइयां हर जिले में एक जगह इकट्ठा होकर कांशीराम जी को याद करेंगी और बाद में लखनऊ में बड़ी बैठक के लिए समुदायों को संगठित किया जाएगा.दलित नेता और पूर्व सांसद उदित राज, जो ‘कन्फेडरेशन ऑफ दलित, ओबीसी, माइनॉरिटीज़ और आदिवासी ऑर्गनाइजेशन’ के अध्यक्ष हैं, ने कुछ दिन पहले लखनऊ में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मायावती पर हमला बोला. उन्होंने कहा कि मायावती का असली चेहरा अंबेडकर की बात करना लेकिन दिल में कमल रखना है.
उदित राज कहते हैं कि कांशीराम की पुण्यतिथि मनाना ज़रूरी है लेकिन ऐसे मौकों को मनुवादियों को फ़ायदा पहुंचाने के लिए इस्तेमाल करना समाज के साथ धोखा होगा. समाजवादी पार्टी भी मायावती की रैली को लेकर सतर्क है. समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता आजम खान जब से जेल से छूटकर छूटकर आएं हैं तब से चर्चा आम है कि वो 9 अक्तूबर को बीएसपी की रैली के दिन लखनऊ में पार्टी का दामन थाम सकते हैं. कहा जा रहा है कि समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष ने उनको 8 अक्तूबर तक का समय दिया है. इसी दिन अखिलेश यादव रामपुर में आजम खान के घर जाएंगे. जाहिर है कि मायावती की रैली से एक दिन पहले अखिलेश अगर आजम खान के घर जा रहे हैं तो इसका मतलब यही है कि किसी भी तरह आजम खान को बीएसपी में जाने से रोका जा सके.
X पर सपा समर्थकों ने बीएसपी रैली को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं.सपा समर्थक बार-बार कह रहे हैं कि यह केवल दिखावा है और बीएसपी का जनाधार खत्म हो गया है. एक सपा समर्थक लिखता है कि मायावती का समय खत्म, सपा ही दलितों की आवाज.जाहिर है कि यह बीएसपी के पुनरुत्थान से सपा की घबराहट को उजागर करता है।


