पूर्व राष्ट्रपति गुरुवार को नागपुर में आरएसएस के परंपरागत विजयादशमी समारोह को संबोधित कर रहे थे। संघ के 100 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर वह इस समारोह में मुख्य अतिथि थे। स्वयं अनुसूचित जाति से आने वाले पूर्व राष्ट्रपति ने वर्ष 2001 में लाल किला परिसर में आयोजित ‘दलित संगम रैली’ का उल्लेख किया।
उन्होंने कहा कि उस समय मैं अनुसूचित जाति मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष था। तब अटल जी देश के प्रधानमंत्री थे। देश में बहुत से लोग संघ परिवार तथा अटल जी पर दलित विरोधी होने का दुष्प्रचार करते रहते थे। उस रैली को संबोधित करते हुए अटल जी ने उद्घोष किया था कि हमारी सरकार दलितों, पिछड़ों और गरीबों की भलाई के लिए बनी है। हमारी सरकार मनुस्मृति के आधार पर नहीं, बल्कि भीम स्मृति के आधार पर काम करेगी। भीम स्मृति अर्थात भारत का संविधान। उन्होंने यह भी कहा कि हम भीमवादी हैं, अर्थात आंबेडकरवादी हैं।
नागपुर : पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद नागपुर में आयोजित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के विजयादशमी समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद रहे. शहर पहुंचने के बाद वह दीक्षाभूमि गए जहां संविधान निर्माता डॉ. बीआर आंबेडकर ने 1956 में बौद्ध धर्म अपनाया था। पूर्व राष्ट्रपति ने दीक्षाभूमि पर प्रार्थना की। उन्होंने आरएसएस स्थापना दिवस पर जातिवाद और छुआछूत को न मानने वाले आरएसएस का जिक्र किया। हेडगेवार और आंबेडकर के विचारों में राष्ट्रवाद और देश की चिंता की तुलना भी इस वक़्त वह कर गए. रामनाथ कोविंद अपने भाषण में बीजेपी के लिए गुप्त संदेश देने का काम कर गए।

‘आरएसएस में जातिवाद नहीं’
रामनाथ कोविंद ने अपने भाषण में कहा कि बीते कुछ समय से आरएसएस के खिलाफ अफवाह उड़ाई जा रही है कि यहां दलितों को तवज्जो नहीं दी जाती. मगर इस बात का खंडन करते हुए रामनाथ कोविंद ने अपने पूरे भाषण में यह जिक्र किया कि आरएसएस ने जातिवाद को खत्म किया है और हिंदुत्व को बढ़ावा दिया है, रामनाथ कोविंद के भाषण की हर एक लाइन इसी पर केंद्रित थी।
Dr.आंबेडकर और जाति का जिक्र
रामनाथ कोविंद ने डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार और डॉ. भीमराव आंबेडकर का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि दोनों का मेरे जीवन निर्माण में अहम रोल रहा है। उन्होंनें कहा कि दोनों ने राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समरता की बात की। उन्होंने कहा कि आंबेडकर के संविधान में निहित सामाजिक न्याय की व्यवस्था के चलते ही मेरे जैसे सामान्य व्यक्ति देश के सर्वोच्च पद पर पहुंच सका। रामनाथ कोविंद का भाषण दलितों पर केंद्रित रहा।

छुआछूत का जिक्र
पूर्व राष्ट्रपति ने छुआछूत की भी बात की। उन्होंने कहा कि संघ में ऊंच-नीच या छुआछूत नहीं है। यहां जाति नहीं चलती, यहां सब एक समान हैं। बहुत सारे लोगों को यह नहीं पता है। पूर्व राष्ट्रपति ने आरएसएस के कार्यों की जमकर तारीफ की। उन्होंने मोहन भागवत को एक दूरदर्शी सामाजिक वैज्ञानिक बताया। उन्होंने कहा कि मैं एक सामान्य संघ का सदस्य रहा हूं। उन्होंने हर वर्ग को संघ से जोड़े जाने की तारीफ की। रामनाथ कोविंद ने कहा कि देश धर्म का पक्षधर रहा है। तमाम संगठन बनते हैं और 100 वर्षों के अंतराल में खत्म हो जाते हैं लेकिन राष्ट्रीय स्वयं संघ इन सौ वर्षों में और विशाल बना है।
बंटेंगे तो..
पूर्व राष्ट्रपति ने डिवाइड एंड रूल्स पर भी बात की। उन्होंने कहा कि अगर हम बंटे तो हमारे लिए ठीक नहीं होगा। हमें एक रहना है। उन्होंने कहा कि आंबेडकर ने कहा था कि हम पहले भी भारतीय है और बाद में भी भारतीय हैं। संत तुकाराम, बिरसामुंडा, संत रविदास, संत रैदास का भी रामनाथ कोविंद ने जिक्र किया।
संघ हमेशा समाज सुधार में काम करता रहा है। उन्होंने कहा किअभी भी, समाज के बहुत से लोगों को यह जानकारी नहीं है कि संघ में किसी भी प्रकार की अस्पृश्यता और जातिगत भेद-भाव नहीं होता है। मैं समझता हूं कि समाज के अनेक वर्गों में संघ से जुड़ी निराधार भ्रांतियों को दूर करने की जरूरत है।

मनुस्मृति नही ‘भीम स्मृति’
रामनाथ कोविंद ने कहा कि 2001 में लाल किले के परिसर में आयोजित ‘दलित संगम रैली’ का मैं उल्लेख करना चाहूंगा। उस समय मैं अनुसूचित जाति मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष था। अटल जी प्रधानमंत्री थे। देश में बहुत से लोग संघ परिवार तथा अटल को दलित विरोधी होने का दुष्प्रचार करते रहे हैं। उस रैली को संबोधित करते हुए अटल जी ने उद्घोष किया था कि ‘हमारी सरकार दलितों, पिछड़ों और गरीबों की भलाई के लिए बनी है। … हमारी सरकार मनुस्मृति के आधार पर नहीं बल्कि ‘भीम स्मृति’ के आधार पर काम करेगी। ‘भीम स्मृति’ अर्थात ‘भारत का संविधान’। उन्होंने यह भी कहा कि हम भीमवादी हैं, अर्थात आंबेडकर-वादी हैं।’ अटल जी तथा संघ की विचारधारा के प्रति समाज के इस वर्ग में जो दुष्प्रचार प्रसारित किया जा रहा था, उसे दूर करने में उनके उस सम्बोधन की ऐतिहासिक भूमिका रही है। संघ वस्तुतः सामाजिक एकता और सुधार का प्रबल पक्षधर रहा है और इस दिशा में सदैव सक्रिय भी रहा है।
रामनाथ कोविंद ने कहा कि 25 नवंबर, 1949 को बाबासाहब ने संविधान सभा में दिए गए अपने ऐतिहासिक सम्बोधन में कुछ चिंताएं व्यक्त की थीं जो मुझे संघ की चिंताओं और चिंतन में भी दिखाई पड़ती हैं। बाबासाहब ने अपनी इतिहास-दृष्टि से जो सामाजिक कमजोरी संविधान-सभा के सामने प्रस्तुत की थी। यानी जहां एकता है, वहां अस्मिता है। जहां विभाजन है, वहां पतन है। डॉक्टर हेडगेवार भी कहते थे कि विदेशियों ने हमें प्रताड़ित करने के लिए हमारे ही भाइयों के हाथों में लाठी पकड़ा दी। हम असंगठित और विभाजित रहे।
स्वाधीनता के पूर्व के राजनीतिक परिदृश्य में सांप्रदायिक विभाजन की भावना को भड़काने वाले अनेक तत्व सक्रिय थे। लोगों में सांप्रदायिकता से ऊपर उठकर राष्ट्र-प्रेम को प्राथमिकता देने का संदेश प्रसारित करने के लिए बाबासाहब के समकालीन, अनेक प्रबुद्ध व्यक्तियों का मानना था कि जनता के बीच हम सबको यह कहना चाहिए कि सबसे पहले हम भारतीय हैं।