Awaaz India Tv

क्या सोशल मिडिया बैन है नेपाल आंदोलन का मुख्य कारण ?

क्या सोशल मिडिया बैन है नेपाल आंदोलन का मुख्य कारण ?

जिस समय दक्षिण एशिया पहले ही राजनितिक उथल पुथल के दौर से गुज़र रहा है, उस समय नेपाल में भड़की हिंसा इस मुकाम पर जा पहुंची की केवल ३६ घंटो के भीतर वहाँ के प्रधानमंत्री को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा. सड़क पर उतरे लगभग ४० से ५० हजार विद्यार्थियों के दिल का आक्रोश इतना बढ़ गया की केवल कुछ ही घंटो में उसने नेपाल की सियासत में भूचाल लाने का काम कर दिया… आखिर ऐसा क्या हो गया की १४ वर्ष से लेकर ३० वर्ष और उससे भी ज्यादा उम्र के युवा इतने आक्रामक हो गए की पूरी दुनिया का ध्यान नेपाल की तरफ हो लिया.

सोशल मिडिया पर लगा बैन
कहने को तो नेपाल की सरकार ने सोशल मिडिया जैसे की फेसबुक ,ट्विटर,और अन्य माध्यमों को बैन कर दिया और इसलिए युवाओं का गुस्सा फुट गया। बैन का कारण यह था की बाईट कुछ समय से वहां के सोशल मीडिया पर नेताओं के परिवारवाद और सामान्य जनता की परेशानी को दर्शाने वाले कई वीडियो वायरल हो रहे थे.. इन वीडियोज में सोशल मीडिया पर NepoKid ट्रेंड करता रहा. इसमें युवाओं ने नेताओं के बच्चों की ऐशो-आराम वाली जिंदगी की तस्वीरें और वीडियो शेयर किए. महंगी कारें, ब्रांडेड कपड़े, विदेशों की पढ़ाई और छुट्टियां. तुलना की गई आम युवाओं से, जिन्हें बेरोजगारी और संघर्ष का सामना करना पड़ता है. नेपाल में जो आंदोलन चल रहा है, वो सिर्फ सोशल मीडिया बैन का विरोध नहीं है. यह गुस्सा उस असमानता, भ्रष्टाचार और परिवारवाद के खिलाफ है जिसने सालों से नेपाल को जकड़ रखा है.

परिवारवाद और राजनितिक अस्थिरता

नेपाल में बढ़ रही समस्या का कारण राजनितिक अस्थिरता भी है. पिछले 17 सालों में नेपाल में 14 सरकारें बदली हैं यानी लगभग हर साल नया प्रधानमंत्री बना है. शीर्ष पर बैठे नेताओं से लेकर काम करनेवाले कर्मचारियों तक सभी भ्रष्टाचार के आरोप में लिप्त है. मौजूदा प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली, पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा, पुष्प कमल दहल प्रचंड, बाबूराम भट्टराई लगभग सभी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं. तो दूसरी तरफ बेरोज़गारी अपनी चरम पर पहुंच चुकी है। नेपाल की प्रति व्यक्ति आय सिर्फ करीब 1,300 डॉलर सालाना है. नौकरी और अवसरों की कमी इतनी है कि करीब 10% नेपाली युवा रोज़गार के लिए विदेश जाते हैं. इन हालातों में जब आम नौजवान संघर्ष करता है और नेताओं के बच्चे विदेशों में पढ़ाई करते और लग्ज़री गाड़ियाँ चलाते दिखते हैं, तो गुस्सा फूटना लाजमी है. , गाँव-गाँव तक यही रिवाज हो चूका है। नेता अपने रिश्तेदारों को नौकरी और पद दिलाते हैं. इससे आम जनता का भरोसा पूरी तरह हिल चुका है. नेपाल की राजनीति एक तरह का बिज़नेस मॉडल बन गई है. नेता चुनाव जीतकर सत्ता में आते हैं, सत्ता से पैसा और पद लेते हैं और अपने परिवार को आगे बढ़ाते हैं.

नेपाल में जब राजशाही से फेडरल डेमोक्रेटिक रिपब्लिक की ओर कदम बढ़ा, तो जनता को उम्मीद थी कि असमानता खत्म होगी, मेरिट का दौर आएगा और नेताओं का परिवारवाद मिटेगा. लेकिन हकीकत उलटी साबित हुई. आज हालात ऐसे हैं कि पैरवी और रिश्तेदारी राजनीति के हर स्तर पर हावी है. मिसाल के तौर पर, जब के.पी. ओली की साली डॉ. अंजन शक्य को नेशनल असेंबली का सदस्य बनाने की सिफारिश की और राष्ट्रपति ने संविधान की धारा 86(2) के तहत उनकी नियुक्ति भी कर दी. इससे पहले डॉ. शक्य को इज़राइल का राजदूत भी बनाया जा चुका है. इस नियुक्ति पर सवाल उठे कि क्या ये योग्यता थी या फिर सिर्फ राजनीतिक नजदीकी? इसी तरह, हाल ही में ऑस्ट्रेलिया, कतर, बांग्लादेश और स्पेन के लिए राजदूत चुने गए लोगों पर भी गंभीर सवाल उठे, क्योंकि उनमें से कई नेताओं के रिश्तेदार या भरोसेमंद साथी थे, जबकि काबिल लोग दरकिनार कर दिए गए. महेश दहाल को ऑस्ट्रेलिया का राजदूत बनाया गया, जो माओवादी नेता प्रचंड (पुष्प कमल दहाल) के करीबी रिश्तेदार बताए जाते हैं.

अंतर्राष्ट्रीय परिस्थिति

नेपाल की परिस्थिति को अगर आंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष से देखे तो हम पाते हैं कि अमेरिका की नज़र दक्षिण एशिया के देशों पर है। SCO की बैठक में नेपाल पहले ही शामिल हो चूका है तो दूसरी तरफ भारत भी SCO की बैठक में शामिल हो चूका है. SCO और ब्रिक्स में अमेरिका की मौजूदगी कही भी नहीं है. भूतकाल पर अगर हम एक नज़र डाले तो , वर्ष २०२२ में जो बांग्ला देश में हुआ और तत्पश्चात श्रीलंका में जो हुआ उसमें एक समानता है.. देश में फैली आर्थिक असमानता, उदंड नेता,गुलाम कर्मचारी, और अहंकारी सरकार द्वारा जनता की आवाज़ को दबाने का अत्याचारी प्रयास..दक्षिण एशिया में एक क बाद एक देश में फ़ैल रही अशांतता और जनता में बढ़ते आक्रोश की डोर कही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जाकर तो नहीं जुड़ती ? इसपर भी विचार होना आवश्यक है.

हालात अब भी बेकाबू

देश के युवाओं को काबू में लाने के लिए आंदोलन को दबाने के प्रयास भी हो रहे हैं। इस दौरान पुलिस ने गोलियाँ चलायी और २२ युवाओं की मौत हो चुकी है। ४०० से ज्यादा लोग घायल हो गए। जहा परिस्थिति को काबू में लाने का प्रयास होना था वह परिस्थिति और ज्यादा बेकाबू हो गई। हालात इतने बिगड़े कि मंगलवार रात से ही पूरे देश की कमान नेपाली सेना ने अपने हाथ में ले ली है.इस बीच बड़ी खबर ये आ रही है कि पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली इस्तीफे के बाद देश छोड़कर दुबई भाग गए हैं. एक नेपाली एयर होस्टेस ने एयरपोर्ट से वीडियो शेयर करते हुए दावा किया है कि ओली काठमांडू से दुबई रवाना हो गए. यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है और प्रदर्शनकारियों के गुस्से को और भड़का रहा है. हिंसक प्रदर्शन रोकने के लिए सेना ने मंगलवार रात से पूरे देश का कंट्रोल अपने हाथ में ले लिया है..

पूर्व प्रधानमंत्रियों के घरों पर हमला

सिर्फ ओली ही नहीं, बल्कि आंदोलनकारियों ने तीन और पूर्व प्रधानमंत्रियों को भी निशाना बनाया. शेर बहादुर देउबा, झालानाथ खनाल और पुष्पकमल दहल प्रचंड के घरों में आग लगा दी गई. पूर्व पीएम खनाल की पत्नी राजलक्ष्मी चित्रकार आग में गंभीर रूप से झुलस गईं और बाद में अस्पताल में उनकी मौत हो गई. वहीं, शेर बहादुर देउबा को प्रदर्शनकारियों ने घर में घुसकर पीटा और वित्त मंत्री विष्णु पौडेल को सरेआम दौड़ा-दौड़ाकर मारा.

नेपाल आर्मी चीफ जनरल अशोक राज सिग्देल ने जनता से संयम बरतने की अपील की
नेपाल में आज तीसरे दिन भी हालात गंभीर है. प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के इस्तीफे के बाद भी विरोध थमने का नाम नहीं ले रहा है. प्रदर्शनकारी युवा संसद भंग करने और नागरिक नेतृत्व वाली सरकार की मांग पर अड़े हैं. हालात बिगड़ने पर सेना ने सीधे हस्तक्षेप किया है. नेपाल आर्मी चीफ जनरल अशोक राज सिग्देल ने जनता से संयम बरतने और संपत्तियों की रक्षा करने की अपील की है.

भारत के लिए सबक
लोकतांत्रिक पद्धति से निर्वाचित सरकार जब हूकूमशाह बनने का प्रयास कर जनता का दमन करने पर उतारू हो जाए, तो उसकी क्या परिणीति होती है उसका एक जिवंत उदाहरण एक बार फिर दुनिया के सामने आया है। क्या उम्मीद की जा सकती है की दक्षिण एशिया के देशो में फ़ैल रही इस आग की चिंगारियों से भारत देश बचा रहे ? क्योकि दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश की अशांत जनता के आक्रोश को शांत करना आसान नहीं होगा ,इसका अंदेशा यहाँ की सरकार को होना चाहिए।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *