महामानव डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के महापरिनिर्वाण की हृदयविदारक खबर को रिक्शा में घूम-घूमकर साउंड सर्विस के माध्यम से पूरे नागपुर में भावुक होकर सुनाने वाले वरिष्ठ आंबेडकरी कार्यकर्ता दामू मोरे का सोमवार को निधन हो गया। वे 92 वर्ष के थे। मृत्यु से पूर्व उन्होंने देहदान का संकल्प किया था, जिसे उनके परिवार ने पूर्ण करते हुए मेडिकल कॉलेज को देहदान किया। उनके पीछे पत्नी, एक बेटा और एक बड़ा परिवार है।
- दामू मोरे का जन्म एक आंबेडकरी परिवार में हुआ था। उनके परिवार का व्यवसाय साउंड सर्विस था। उस दौर में ‘मोरे साउंड सर्विस’ नागपुर में एक प्रसिद्ध नाम था। जब 6 दिसंबर 1956 को डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर का महापरिनिर्वाण हुआ, तब दामू केवल 12 वर्ष के थे। दुकान में काम करते समय उन्हें यह दुखद समाचार मिला – ‘बाबासाहेब नहीं रहे।’परिवार के बड़े लोगों ने अपने व्यक्तिगत शोक को किनारे रख, यह जिम्मेदारी दामू पर डाली कि यह खबर पूरे शहर में पहुंचाई जाए। उस दिन दामू एक रिक्शा में बैठकर, हाथ में माइक लेकर, गली-गली यह दर्दनाक खबर सुना रहा था – एक ऐसा दृश्य जिसे कोई नहीं भूल पाया।
- लोगों की आंखों में आंसू आ गए, कुछ को विश्वास नहीं हुआ और उन्होंने बच्चे पर गुस्सा निकाला, कुछ लोग रोते हुए पीछे दौड़ पड़े – लेकिन उस माइक के पीछे केवल एक बच्चा नहीं, बल्कि एक सच, एक कर्तव्य और एक गहन वेदना थी। दामू मोरे अपने जीवन में इस घटना को अक्सर याद करते थे।
इंदिरा गांधी ने कहा – ‘फिर कोई टेंशन नहीं’
दामू मोरे के कार्य की गूंज सिर्फ आम जनता तक नहीं, बल्कि राजनेताओं तक भी पहुंची थी। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री वसंतराव नाईक जब यवतमाल के पुसद से चुनाव लड़ रहे थे, तब वहां तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सभा आयोजित हुई थी। इस सभा की ध्वनि व्यवस्था मोरे साउंड सर्विस के जिम्मे थी।
सभा से पहले इंदिरा गांधी ने पूछा – ‘ध्वनि व्यवस्था किसकी है?’ वसंतराव नाईक ने जवाब दिया – ‘नागपुर के मोरे की।‘ यह सुनकर इंदिरा गांधी मुस्कुराई और बोलीं – ‘तो फिर कोई टेंशन नहीं।‘

लता मंगेशकर का भी था भरोसा
एक बार नागपुर में एक कार्यक्रम के दौरान हुई अव्यवस्था के बाद गानकोकिला लता मंगेशकर ने वर्षों तक नागपुर में कार्यक्रम करना बंद कर दिया था। लेकिन वर्षों बाद जब मंगेशकर परिवार का सत्कार नागपुर में तय हुआ, तो आयोजन को लेकर लता दीदी ने खुद सभी जानकारियाँ लीं।
जब उन्होंने पूछा – “ध्वनि व्यवस्था किसकी है?” और जवाब मिला – “मोरे एंड कंपनी”, तो लता दीदी ने तुरंत कहा –’अच्छा, दामू है? तो फिर कोई हर्ज नहीं।’ इस घटना का उल्लेख नागपुर के वरिष्ठ रंगकर्मी भागवत तिवारी ने भी किया है।
दामू मोरे का जीवन एक साउंड सर्विस ऑपरेटर का जीवन होने के साथ-साथ एक समर्पण, संवेदना और सामाजिक चेतना का प्रतीक था। पोद्दारेश्वर मंदिर की रामनवमी यात्रा हो या दीक्षाभूमि का धम्मचक्र परिवर्तन दिन। हर बड़े कार्यक्रम में उनकी साउंड सर्विस एक अनिवार्य हिस्सा बन चुकी थी। उनका जीवन एक प्रेरणा है, कि कैसे एक बालक अपनी भावनाओं को कर्तव्य में बदलते हुए पूरे समाज की आवाज बन सकता है। उनकी अंतिम इच्छा ‘देहदान’ भी इसी समाजसेवा की भावना का अंतिम परिचय थी। दामू मोरे को भावपूर्ण श्रद्धांजलि।उनकी आवाज अब खामोश है, लेकिन उनके कार्य और संवेदनशीलता की गूंज हमेशा गूंजती रहेगी।