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मेडिटेशन (विपस्सना) के कारण बिना खाना खाये 9 दिन तक कैसे गुफा में जीवित रहें बच्चें !

मेडिटेशन (विपस्सना) के कारण बिना खाना खाये 9 दिन तक कैसे गुफा में जीवित रहें बच्चें !

जून 2018 की ये घटना है उस वक्त पूरी दुनिया करीब दो हफ्ते तक दम साधे बस एक खबर का इंतजार कर रही थी. थाईलैंड की गुफा में फंसे वो 13 लोग कैसे और कब ज़िंदा बाहर निकलेंगे? कहते हैं कि रूस में चल रहे फीफा वर्लडकप फुटबॉल मैच से कहीं ज्यादा नजर दुनिया भर के लोगों की इस गुफा पर थी. कई देशों की साझा कोशिशों के बाद बाद सभी बच्चे अब उस गुफा से बाहर आ गए. आपको बताते है कि आखिर ये बच्चे उस गुफा में फंसे कैसे. 17 दिन दिन तक गुफा में ज़िंदा कैसे रहे. क्या खाया-क्या पिया. और फिर किस तरह उन्हें मौत की गुफा से बाहर निकाला गया. भगवान बुद्ध द्वारा दुनिया को दी गई मेडिटेशन की अनुपम कला का ही ये नतीजा था की लगभग 9 दिन बिना खाये सिर्फ ध्यान के कारण ये बच्चें जीवित बच पाए।

थाईलैंड की वाइल्ड बोर्स अंडर-16 फुटबाल टीम ने तय किया था कि प्रैक्टिस मैच के बाद वो टैम लूंग गुफा देखने जाएंगे. मैच खत्म हुआ और टीम के 12 खिलाड़ी और उनके कोच तय प्रोग्राम के मुताबिक गुफा तक पहुंच गए. इसके बाद एक-एक कर सभी बच्चे करीब दस किलोमीटर लंबी गुफा में दाखिल होने लगते हैं. तब मौसम बिल्कुल साफ था. मगर इधर बच्चे गुफा में दाखिल होते हैं उधर मौसम का मिज़ाज अचानक बदल जाता है. बाहर के बिगड़े मौसम से बेखबर बच्चे गुफा में लगातार आगे बढ़ रहे थे. ऊबड़ खाबड़ सुरंग से होते हुए बच्चे अब तक गुफा में करीब 4 किमी अंदर तक जा चुके थे. और तभी ठीक उसी वक्त बाहर हो रही तेज बारिश का पानी गुफा में घुसना शुरू हो गई.और बच्चें गुफा में फंस गए. गुफा के अंदर फंसे बच्चों की उम्र 11 से 16 साल के बीच थी. उनके कोच 25 साल के.. ! ये सभी 23 जून को उस समय गुफा के अंदर गए थे, जब ये सूखा था. अंदर जाने के बाद भारी बारिश हुई, जिससे गुफा पानी से भर गया.अब बच्चों का निकलना नामुमकिन हो गया. बच्चें घर ना लौट आने के कारण बच्चों के घरवाले चिंतित. किसीसे कोई संपर्क नहीं, फ़ोन की रेंज नहीं. ऐसे में माता-पिता की कंप्लेंट के बाद बच्चों का सर्च ऑपरेशन शुरू हुआ.थाईलैंड की सरकार’ने दुनियाभर के एक्सपर्ट्स के मदत से बच्चों को निकालने की कोशिशे शुरू की. बच्चों की साइकिलें गुफा के मुहाने पर मिली थी. इसके अनुसार शोधकार्य प्रारंभ हुआ.

इस बीच अंडर-16 फुटबाल टीम इस गुफा को देखने के लिए गए थी. ज़ाहिर है उनके पास खाना-पानी नहीं था. और ऐसे में बिना खाए-पिए 9 दिन ज़िंदा रहना तकरीबन नामुमकिन. एक जुलाई से पहले ज़िंदा रहने के लिए बच्चों ने इस दौरान गुफा में सिर्फ पानी पिया. जब वो इस गुफा में आये थे तो वहां एक लड़के का बर्थडे मनाया गया था. और उनका छूटा हुआ स्नैक्स वहां मौजूद था. मगर ये स्नैक्स भी दो दिन में खत्म हो गया. इस दौरान इस फुटबाल टीम के कोच एकपोल ने कुछ भी खाने से इनकार कर दिया. ताकि बच्चों के लिए अधिक खाना बचाया जा सके. कोच को अंदाज़ा आ गया था कि वो किसी बड़ी मुसीबत में फंस गये है.

बचाव दल के अनुसार गुफा में फंसे बच्चों और उनके कोच ने गुफा के भीतर कोई ऐसी जगह तलाश ली थी जिससे वे बाढ़ के पानी की चपेट में आने से बच गये.

कोच एकपोल को पता था कि बिना खाने के बच्चे ज़्यादा दिन तक ज़िंदा नहीं रह पाएंगे और इस बात का कुछ अंदाज़ा नहीं लग पा रहा था कि वो यहां से कब निकलेंगे, लिहाज़ा कोच ने बच्चों को मेडिटेशन कराना शुरू कर दिया. एकपोल कोच बनने से पहले बुद्धिस्ट मॉन्क अर्थात भंतेजी थे. उन्हें मेडिटेशन और ऐसे हालात में ज़िंदा रहने की कला अवगत थी. भगवान बुद्ध की शिक्षाओं और उनके द्वारा सिखाई गयी विपस्सना विद्या का ही ये परिणाम था की लगातार 9 दिन तक ये बच्चें बिना खाना खाये जिन्दा थे. कोच ने बच्चों को शरीर की ऊर्जा बचाने के तरीके सिखाए. और गुफा में रहने के दौरान उनकी हिम्मत बढ़ाते रहे.

9वें दिन जब गोताखोर उन तक पहुंच गए तब नौ दिन बाद पहली बार उन्हें खाना और दवाएं मिलीं. बहरहाल, थाई सेना की मदद से इन बच्चों को बाहर निकाला गया. तमाम मुश्किलों को पार करते हुए 9 और 10 जुलाई 2018 को बच्चों को रेस्क्यू कराया.बच्चों के सुरक्षित बाहर निकलने के बाद तथा पर्याप्त इलाज के पश्चात् उन्हें श्रामणेर बनाया गया. और भगवान् बुद्ध की शिक्षाओं के अनुरूप बच्चों को मेडिटेशन सिखाकर उन्हें नई जिंदगी देने के लिए कोच एकपोल का विशेष सन्मान हुआ।

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