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‘राम का नाम बदनाम मत करो’, लोकसभा में दिखा थरूर का शायराना अंदाज

‘राम का नाम बदनाम मत करो’, लोकसभा में दिखा थरूर का शायराना अंदाज

लोकसभा में मनरेगा की जगह नया कानून लाने के प्रस्ताव पर हंगामा हुआ। कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने बिल का विरोध किया और कहा कि गांधीजी का नाम हटाना राष्ट्रपिता के साथ अन्याय है। थरूर ने सदन में बिल पेश होने का विरोध करते हुए कहा कि गांधीजी का नाम हटाने का फैसला गलत है। केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लोकसभा में विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार एंड अजीविका मिशन (ग्रामीण) बिल 2025 पेश किया।

नई दिल्ली। लोकसभा में मंगलवार को उस समय जोरदार हंगामा हो गया जब केंद्र सरकार ने मनरेगा की जगह नया कानून लाने का प्रस्ताव रखा।

कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने भी इस बिल का कड़ा विरोध किया और इसे ‘बहुत अफसोसजनक और पीछे की ओर ले जाने वाला कदम’ बताया। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी का नाम हटाना राष्ट्रपिता के साथ अन्याय है।

थरूर ने सदन में बिल पेश होने का विरोध करते हुए कहा कि गांधीजी का नाम हटाने का फैसला गलत है। यह सिर्फ नाम बदलना नहीं बल्कि ग्रामीण रोजगार योजना की आत्मा और दार्शनिक आधार पर हमला है। उन्होंने गांधीजी के ‘राम राज्य’ के सपने का जिक्र किया और कहा कि यह कभी सिर्फ राजनीतिक कार्यक्रम नहीं था बल्कि गांवों को सशक्त बनाने और ग्राम स्वराज पर आधारित सामाजिक-आर्थिक योजना थी।

थरूर का तीखा हमला
तिरुवनंतपुरम से सांसद थरूर ने आगे कहा कि मनरेगा में गांधीजी का नाम रखना उनकी सोच से गहरा जुड़ाव दिखाता था। अब उनका नाम हटाना योजना से नैतिक दिशा और ऐतिहासिक वैधता छीनने जैसा है। उन्होंने बिल के नाम पर भी सवाल उठाया। नाम में दो भाषाओं का इस्तेमाल सिर्फ ‘जी राम जी’ बनाने के लिए किया गया है, जो संविधान के अनुच्छेद 348 का उल्लंघन लगता है।

थरूर ने कहा कि यह सब सुनकर बचपन की एक गाना याद आ गया। फिर उन्होंने सदन में गुनगुनाया – ‘राम का नाम बदनाम मत करो’। उनके इस अंदाज से सदन में कुछ पल के लिए सन्नाटा छा गया और फिर विपक्षी सांसदों ने तालियां बजाईं।

क्या आएगा बदलाव?

हालांकि, इस योजना में सबसे बड़ा और विवादित बदलाव फंडिंग पैटर्न को लेकर है. पहले जहां मनरेगा में केंद्र सरकार 90 प्रतिशत खर्च उठाती थी, वहीं अब VB–जी राम जी योजना में केंद्र का योगदान घटाकर 60 प्रतिशत करने का प्रस्ताव है और बाकी 40 प्रतिशत खर्च राज्य सरकारों को उठाना होगा. इससे राज्यों पर वित्तीय दबाव बढ़ने की आशंका जताई जा रही है. हालांकि, सरकार ने पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों को राहत देते हुए उनके लिए पुराना 90:10 का फॉर्मूला जारी रखने की बात कही है.

एक और बड़ा बदलाव तकनीक के इस्तेमाल को लेकर प्रस्तावित है. नए प्रारूप में एआई आधारित ऑडिट, जीपीएस मॉनिटरिंग और डिजिटल निगरानी जैसे प्रावधान शामिल किए गए हैं. सरकार का कहना है कि इससे फर्जीवाड़े पर लगाम लगेगी और फंड का सही इस्तेमाल सुनिश्चित होगा. लेकिन आलोचकों का मानना है कि इससे ग्रामीण मजदूरों की निजता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर असर पड़ सकता है, खासकर तब जब योजना के तहत काम करने वाले अधिकतर श्रमिक अनस्किल्ड और आर्थिक रूप से कमजोर पृष्ठभूमि से आते हैं.

क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स?

वरिष्ठ पत्रकार रुमान हाशमी का मानना है कि यह बदलाव सिर्फ नाम का नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक बड़ी रणनीति छिपी हो सकती है. उनके मुताबिक, किसी योजना का नाम बदलने के साथ उसके प्रचार, रीब्रांडिंग और नए सिस्टम पर करोड़ों रुपये खर्च होते हैं, इसलिए सरकार को साफ करना चाहिए कि इस बदलाव से जमीनी स्तर पर मजदूरों को क्या अतिरिक्त लाभ मिलेगा. वे यह भी सवाल उठाते हैं कि एआई और जीपीएस आधारित निगरानी कहीं श्रमिकों के लिए अतिरिक्त दबाव या नियंत्रण का माध्यम न बन जाए.

वर्तमान में करीब 8 करोड़ 30 लाख श्रमिक मनरेगा के तहत रोजगार पा रहे हैं. ऐसे में योजना के स्वरूप में इतना बड़ा बदलाव करने से पहले व्यापक राजनीतिक और सामाजिक सहमति बनाना जरूरी था. विपक्षी नेताओं, जिनमें प्रियंका गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे नाम शामिल हैं, का कहना है कि सरकार को इस विषय पर संसद के बाहर भी विस्तृत चर्चा करनी चाहिए थी.

कुल मिलाकर, मनरेगा से विकसित भारत–जी राम जी योजना तक का यह सफर सिर्फ एक नाम परिवर्तन नहीं लगता. इसमें रोजगार के दिनों की बढ़ोतरी, फंडिंग पैटर्न में बदलाव और तकनीकी निगरानी जैसे कई ऐसे तत्व शामिल हैं, जो ग्रामीण भारत की तस्वीर को बदल सकते हैं. सवाल यही है कि क्या यह बदलाव वास्तव में ग्रामीण मजदूरों की जिंदगी आसान बनाएगा या फिर यह सिर्फ एक नई नीति का नया नाम भर साबित होगा—इसका जवाब आने वाला वक्त ही देगा.

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