स्वामी प्रसाद मौर्य ने मायावती को समर्थन का प्रस्ताव दिया है, बशर्ते वह बाबासाहेब के मिशन पर चलें. मौर्य का यह कदम २०२७ के चुनावों से पहले दलित वोट बैंक को एकजुट करने की रणनीति माना जा रहा है. साथ ही उन्होंने धार्मिक नेताओं पर भी निशाना साधा है.
लखनऊ. उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपनी सियासी साख वापस पाने में जुटे पूर्व कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य एक बार फिर बसपा में वापसी के संकेत दे रहे हैं. वाराणसी पहुंचे स्वामी प्रसाद मौर्या ने जहां एक तरफ स्वामी रामभद्राचार्य, बागेश्वर धाम के बाबा धीरेंद्र शास्त्री और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव पर हमला बोला हैं वहीँ उन्होंने संकेत दिए है की अगर मायावती बाबा साहेब के मिशन पर आगे बढ़ती हैं तो उनसे हाथ मिलाने में उन्हें कोई आपत्ति नहीं हैं.
बसपा से हाथ मिलाने के संकेत
स्वामी प्रसाद मौर्य २०१७ में बसपा छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए थे. उसके बाद २०२२ के विधानसभा चुनाव में उन्होंने बीजेपी छोड़कर समाजवादी पार्टी में शामिल हुए. लेकिन रामचरितमानस विवाद के बाद उन्होंने समाजवादी पार्टी छोड़कर अपनी पार्टी बना ली. अब वे लोक मोर्चा गठबंधन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य लगातार दलितों से जुड़े मुद्देा पर बोलते हैं , ऐसे में अगर उन्हें बसपा का साथ मिलता है तो २०२७ के चुनाव में वह तीसरे विकल्प के तौर पर उभर सकते हैं. हालांकि, मायावती अपने पुराने नेताओं की वापसी पर फोकस कर रही हैं, लेकिन उन्होंने किसी भी गठबंधन का हिस्सा बनने से इंकार कर दिया है.

साधुओं पर साधा निशाना
वाराणसी में स्वमी प्रसाद मौर्या ने कहा कि स्वामी रामभद्राचार्य की वेशभूषा संतों की है मगर भाषा “अश्लील ” है . उन्होंने आरोप लगाया कि रामभद्राचार्य ओछी हरकतें कर रहे हैं. इसी तरह, बागेश्वर धाम के बाबा धीरेंद्र शास्त्री को “ढोंगी पाखंडी” करार देते हुए मौर्य ने कहा कि ये बाबा वेश में देश को बांटने का काम कर रहे हैं.
बीएसपी वापसी की चाल या वोट बैंक मजबूती?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मौर्य की यह बयानबाजी २०२७ के विधानसभा चुनावों से पहले दलित वोट बैंक को एकजुट करने की रणनीति का हिस्सा है.२०१७ में बीएसपी छोड़ने के बाद मौर्य ने बीजेपी और एसपी में दलित नेतृत्व का दावा किया था, लेकिन पार्टी में उनकी भूमिका सीमित रही. अब, जब एसपी में अखिलेश यादव का वर्चस्व है, मौर्य बीएसपी की ओर लौटने की कोशिश कर रहे हैं. “मायावती के प्रति नरमी और धार्मिक नेताओं पर हमला दलित समाज में आंबेडकरवादी छवि मजबूत करने का प्रयास है.”मौर्य का राजनीतिक सफर उतार-चढ़ाव भरा रहा है. वे पहले बीजेपी में थे, फिर एसपी में शामिल हुए, और अब एसपी से नाराज हैं. उनकी बयानबाजी से साफ है कि वे खुद को दलित-बहुजन आंदोलन का चेहरा बनाना चाहते हैं. लेकिन क्या मायावती उन्हें तवज्जो देंगी इस पर सब की नज़र लगी हुयी है.


