लखनऊ में ऑनलाइन गेम फ्री फायर के जाल में फंसकर किसान के इकलौते बेटे ने लाखों रुपये गंवा दिए। ऑनलाइन गेम में लाखों रुपये की रकम हारने के बाद यश ने जान दे दी। 10 माह से लगातार ट्रांजेक्शन हो रहे थे।
लखनऊ : मोहनलालगंज में फिर एक बच्चा ऑनलाइन गेम के जाल में फसकर अपना आंगन सूना कर गया। परिवार को जिंदगीभर का सदमा दे गया। साइबर जालसाजों ने उसकी मासूमियत को ऐसा छला कि उसे जान देने के लिए मजबूर होना पड़ा। मासूम यश की मौत से उसका गांव ही नहीं, पूरा जिला सदमे में है।
पोस्टमार्टम के बाद मंगलवार शाम को उसका शव गांव पहुंचा तो हर कोई आखिरी बार उसे दुलारने के लिए टूट पड़ा। बेबस पिता इकलौते बेटे के शव को एकटक निहारते रहे। मां विमला की हालत बयां करने के लिए शब्द हल्के पड़ रहे हैं।

ऐसे मिली जानकारी
ऑनलाइन गेम फ्री फायर के जाल में फंसकर धनुवासाड़ गांव के किसान सुरेश कुमार यादव के इकलौते कक्षा ६ वी में पढ़नेवाले १२ वर्षीय बेटे यश ने 14 लाख रुपये गंवा दिए थे। सोमवार को सुरेश पत्नी का इलाज और बच्चों की फीस भरने के लिए बैंक से रुपये निकालने गए तो पता चला कि खाता खाली है।
वापस आकर उन्होंने घरवालों को इसकी जानकारी दी। यश को जब पता चला कि पिता को रुपयों के बारे में जानकारी हो गई है तो उसने डरकर घर में फंदा लगाकर जान दे दी। सुरेश ने एक बीघा जमीन बेचकर रुपये बैंक में जमा किए थे।
कल से मैं स्कूल न आऊंगा
सोमवार को स्कूल से निकलते वक्त यश काफी उदास था। दोस्तों के पूछने पर उसने कहा था कि हो सकता है कि कल से मैं स्कूल न आ पाऊं। दोस्तों ने उसकी बात को मजाक समझकर टाल दिया था। यश के दोस्तों का कहना है कि अगर उन्हें पता होता कि उनका दोस्त जान दे देगा तो उसके घरवालों को पूरे मामले की जानकारी दे देते।

10 माह से लगातार हो रहे थे ट्रांजेक्शन
एसीपी रजनीश वर्मा ने बताया कि बैंक की ओर भी छानबीन जारी है. अब तक यह सामने आया है कि 10 माह से लगातार सुरेश के खाते से ऑनलाइन लेनदेन हो रहा था। शायद यह ऑनलाइन गेम में लगाई गई रकम का ही लेनदेन है। कई बार खाते में रकम आई भी है।
ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा है कि यश को गेम में जीतने पर ये रकम भेजी गई थी। कई बिंदुओं पर छानबीन की जा रही है। सूत्रों का कहना है कि कुछ माह पहले खाते से बड़ी रकम कटने का मेसेज फोन पर आया था। परिवार ने इस पर चर्चा की थी। इस दौरान यश ने उन्हें फेक मेसेज की बात कहकर गुमराह कर दिया था। सुरेश ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया। इसके बाद भी लगातार ट्रांजेक्शन होते रहे। सोमवार को सुरेश को जब खाते में रुपये नहीं होने की जानकारी हुई थी तो उन्होंने यश को ट्यूशन पढ़ाने वाले टीचर से संपर्क किया था। टीचर को पूरी बात बताई थी। ट्यूशन में ही यश को पता चला था कि पिता को मामले की जानकारी हो गई है। उसने घर जाकर डर के मारे फंदा लगा लिया।

बैंक भी नहीं रख पाया नजर
इस प्रकरण पर बतौर जानकार ऑल इंडिया ओवरसीज बैंक इम्प्लाइज यूनियन के पूर्व उपाध्यक्ष यूपी दुबे बताते हैं कि जब कोई ट्रांजेक्शन बैंक के जरिये क्रेडिट या डेबिट होता है, तब उसे फौरन ट्रैक कर लिया जाता है। मोबाइल के जरिये होने वाले ट्रांजेक्शन के बारे में बैंक तब पता लगाता है, जब कोई अप्रत्याशित लेनदेन की शिकायत करे। मोबाइल ट्रांजेक्शन से बैंक का कोई लेनादेना नहीं होता है। अगर बैंक से कोई आरटीजीएस कराया गया, जो कहीं किसी और को पहुंचा या अप्रत्याशित लेनदेन हुआ तो बैंक की पूरी जिम्मेदारी बनती है। गड़बड़ी होती है तो वसूली की जिम्मेदारी बैंक की ही होती है। मोबाइल बैंकिंग में शिकायत के बाद ही कार्रवाई होती है।