डेढ़ हज़ार वर्ष पूर्व भारत में देवालयों या तीर्थक्षेत्रों की बनिस्बत शिक्षा संस्कृति को ही अधिक महत्व दिया जाता रहा है। इसलिए विक्रमशिला विश्वविद्यालय (मगध-बिहार ) नालंदा विश्वविद्यालय (बिहार), तक्षशिला विश्वविद्यालय (रावलपिंडी -पाकिस्तान), उदांतपुरी विश्वविद्यालय (बिहार , पाल राजवंश), सोमपुरा विश्वविद्यालय (बांग्लादेश) जगद्दाला विश्वविद्यालय (बांग्लादेश) वल्लभी विश्वविद्यालय (गुजरात ), कान्हेरी विश्वविद्यालय (महाराष्ट्र), इस तरह के ख्यातनाम विश्वविद्यालय एक समय भारत खंड में खड़े किये गये थे। दक्षिण भारत में अनेक बौद्ध विहार तो छोटे शैक्षणिक केंद्र ही हुआ करते थे। सैकड़ों शिक्षक इन विश्वविद्यालयों तथा विहारों में ज्ञानार्जन का कार्य किया करते थे।
एशिया खंड के अनेक देशों से विद्यार्थी यहाँ शिक्षा प्राप्त करने आते थे। ये बौद्ध शिक्षण संस्थाएं प्रायः सभी के लिए खुली थीं। किसी भी तरह का भेदभाव न रखते हुए इन शिक्षण संस्थाओं में आसानी से प्रवेश मिल जाता था। ब्राह्मणी गुरूकुल पद्धति की तरह यहाँ एक ही गुरू का वर्चस्व नहीं होता था। इस कारण इन शिक्षण संस्थानों का व्यापक विस्तार हुआ। त्रिपिटक के अलावा यहाँ तर्कशास्त्र (हेतुविद्या), व्याकरण और तत्वज्ञान (शब्द विद्या) औषधि उपचार की शिक्षा (चिकित्सा शास्त्र) इसी तरह ऐसे अनेक विषय पढ़ाये जाते थे। प्रज्ञा का विकास बौद्ध शिक्षा पद्धति का मूल तत्व था। इसलिए अनेक भारतीय बौद्धों ने सबसे अधिक विद्वतापूर्ण ग्रंथ लिखे, ये एक प्रामाणिक सत्य है।
इसी परंपरा का निर्वाह करते हुए भारत के पूर्वोत्तर भाग के सिक्किम राज्य में बौद्ध विश्वविद्यालय की ‘आधारशिला’ रखी गयी है। इस आशय का प्रस्ताव हाल ही में, 21 सितंबर 2020 को यहाँ की विधान सभा में पास हुआ। इस विश्वविद्यालय का नाम होगा खांगचेन झोंगा बुद्ध विश्वविद्यालय (Khangchendzonga Buddhist University -KBU )।सिक्किम सरकार द्वारा स्थापित ये भारत का पहला स्वतंत्र बौद्ध विश्वविद्यालय होगा। मुख्यमंत्री प्रेमसिंग तमंग ने कहा कि इस तरह काफी दिनों से सिक्किम जनता की जो माँग थी वह पूरी होने जा रही है। विश्व दर्जे के इस विश्वविद्यालय में सभी स्तर के विद्यार्थियों को प्रवेश दिया जायेगा। धम्म शिक्षा पद्धति के साथ ही यहाँ आधुनिक विज्ञान के विषय भी पढ़ाये जाएंगे। ये विश्वविद्यालय UGC से संबद्ध होगा। वज्रयान बुद्धिज़म का सिक्किम में खासा प्रभाव है इसलिए अन्य धर्मीय लोग भी यहाँ बुद्ध विहारों में जाते हैं। इसके मद्देनज़र बौद्ध विश्वविद्यालय निर्माण को जनता का भारी समर्थन मिला हुआ है।
दरअसल बौद्ध विश्वविद्यालय बौद्ध संस्कृति की धरोहर के रूप में जिन भी राज्यों को प्राप्त है उन राज्यों ने अनुकरण स्वरूप इस शिक्षण पद्धति की परंपरा को शासकीय बौद्ध विश्वविद्यालयों के रूप में स्थापित कर अपनाया जाना था। क्योंकि शिक्षा ही काफी नहीं होती इसके बरक्स मानवीय मूल्यों, सदाचरण, शील, नीतिमत्ता, प्रज्ञा के विकास तथा ध्यान साधना की भी महद् आवश्यकता होती है। क्या इसी के अनुरूप बोरीवली में, कान्हेरी लेणी और संजय गाँधी राष्ट्रीय उद्यान के पास ऐसा ही विश्वविद्यालय नहीं बनाया जा सकता ?
( हिंदी रूपान्तरण : राजेंद्र गायकवाड़ )