पंजाब के नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने सोमवार को CM पद की शपथ ली। उनके साथ डिप्टी सीएम के तौर पर सुखजिंदर सिंह रंधावा और ओपी सोनी ने भी शपथ ली। पंजाब में पहली बार 2 डिप्टी सीएम बनाए गए हैं। दरअसल आज़ादी के 74 साल बाद यह पहला मौका है जब पंजाब में किसी दलित को मुख्यमंत्री बनाया गया है. पंजाब लगभग 35 फीसदी दलित आबादी है. इस लिहाज से अब तक दलितों के साथ हमेशा अन्याय ही हुआ है.
पंजाब 117 में से 34 सीटें आरक्षित हैं। सामान्य सीटों पर भी दलितों का प्रभाव है। दोआबा क्षेत्र तो गढ़ है। वोट बंटने के बावजूद किंग मेकर की भूमिका में रहे हैं। आजादी के बाद से पंजाब में 15 मुख्यमंत्री चेहरों में कभी भी दलित चेहरे को नेतृत्व का मौका नहीं मिला। मांग हमेशा उठती रही। कैप्टेन अमरिंदर सिंह की सरकार में केवल 3 दलित मंत्री थे, जबकि कांग्रेस के पास 23 दलित विधायक है.
बसपा संस्थापक मान्यवर कांशीराम पंजाब से थे। उनके सक्रिय रहने तक यहां बहुजन समाज पार्टी मजबूत थी। वे चाहते थे कि पंजाब में दलित सीएम बने। कांग्रेस ने यह संदेश दिया है कि उसने कांशीराम का सपना पूरा किया है। उत्तर प्रदेश में भी वह इसे भुना सकती है। सामाजिक प्रतिनिधित्व देने में वह अन्य पार्टियों से आगे निकल गई है। हालांकि यह उसकी सियासी मजबूरी भी है, क्योंकि शिअद दलित डिप्टी सीएम देने का ऐलान कर चुका था और भाजपा भी दलित मुख्यमंत्री देने की बात कह चुकी है। कांग्रेस ने सिखों के एक बड़े तबके को नाराज करने का जोखिम भी लिया है, जिसकी भरपाई वह डिप्टी सीएम बनाकर करने की कोशिश करेगी।
अकाली दल ने बसपा से गठबंधन कर डिप्टी सीएम बनाने का वादा किया है। कांग्रेस की इस चाल ने उसे भी फंसा दिया है। वह जितना हासिल करना चाहती थी, उसको पाने के लिए अब ज्यादा मोहरे इस्तेमाल करने पड़ेंगे। आम आदमी पार्टी की भी नजर इस वोट बैंक पर थी। पिछले चुनाव में उसने 9 आरक्षित सीटें जीती थीं। वह मुख्यमंत्री के लिए दलित चेहरे का ऐलान कर चुकी है। ऐसे में अब दलित मतदाताओं को रिझाने के लिए उसके पास सीमित विकल्प बचे हैं।
लेकिन ये मान्यवर कांशीराम और बसपा अध्यक्ष मायावती का ही करिश्मा है की आज पंजाब में पहला दलित CM बना है. मान्यवर कांशीराम ने दलितों में जिस तरह राजनितिक चेतना पैदा की उसीका ये नतीजा है की आज हाशिए वाला समाज राजनीती की मुख्यधारा में स्थापित हो रहा है.
महाराष्ट्र में भी बसपा के बढ़ते प्रभाव के कारण 2003 में दलित नेता सुशिल कुमार शिंदे को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाया गया था, लेकिन सत्ता में वापस आनेपर उनकी जगह विलासराव देशमुख को मुख्यमंत्री बनाया गया. शिंदे को आंध्रप्रदेश का राज्यपाल बनाया गया, क्या इस बार भी चन्नी के साथ ऐसा ही होंगा ये सबसे बड़ा सवाल है.