तेलंगाना की रेवंत रेड्डी सरकार को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना सरकार की उस अर्जी को खारिज कर दिया जिसमें OBC आरक्षण को दायरे को बढ़ाने पर हाई कोर्ट के अंतरिम स्टे को चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इनकार करने के साथ शीर्ष न्यायालय ने तेलंगाना सरकार की याचिका को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को याद दिलाया की आरक्षण की अधिकतम सीएम 50 फीसदी है। जुबली हिल्स विधानसभा उपचुनाव और स्थानीय निकाय चुनावों से पहले सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने सीएम रेवंत रेड्डी को बड़ा झटका दिया है। अब रेवंत रेड्डी स्थानीय निकाय चुनावों में 42 फीसदी सीटें ओबीसी के लिए आरक्षित नहीं कर सकेंगे।
- दरअसल, तेलंगाना की रेवंत रेड्डी सरकार ने राज्य में ओबीसी के लिए आरक्षण सीमा को बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दिया था। रेवंत रेड्डी की सरकार के इस फैसले को इससे पहले तेलंगाना हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। हालांकि, उच्च न्यायालय ने सरकार के इस फैसले पर अंतरिम रोक लगा दी थी।
- इसके बाद राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय के फैसले को शीर्ष न्यायालय में चुनौती दी गई थी। लेकिन यहां से भी राज्य की रेड्डी सरकार को झटका लगा है। हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इनकार करने के साथ शीर्ष न्यायालय ने तेलंगाना सरकार की याचिका को खारिज कर दिया।

कांग्रेस के तेलंगाना OBC मॉडल को झटका
तेलंगाना में सरकार बनने के बाद जाति जनगणना के आधार पर रेवंत रेड्डी सरकार ने आरक्षण की लिमिट को बढ़ाने का फैसला किया था। तेलंगाना में ओबीसी के लिए की गई कवायद को लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी ने राष्ट्रीय स्तर पर पेश किया था। इतना ही नहीं उन्होंने गुजरात के अहमदाबाद में हुए कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में इसकी खूब चर्चा की। बाद में रेवंत रेड्डी सरकार ने लोकल बॉडी चुनावों में ओबीसी का आरक्षण 42 फीसदी करने का ऐलान विधानसभा में किया था। सरकार के इस फैसले को चुनौती दिए जाने पर हाईकोर्ट ने अंतरिम रोक लगा दी थी। हाईकोर्ट की अंतरिम स्टे के खिलाफ तेलंगाना सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी। जिसे शीर्ष कोर्ट ने खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने हाईकोर्ट के 9 अक्टूबर के आदेश के विरुद्ध तेलंगाना सरकार की याचिका खारिज कर दी।
राज्य सरकार ने कोर्ट में दिया ये तर्क
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान राज्य ने तर्क दिया कि कोटा बढ़ाने का उद्देश्य लोकल बॉडी चुनावों के लिए OBCs को 42 परसेंट रिज़र्वेशन देना है। राज्य सरकार ने अपने फैसले को एक सही पॉलीसी करार दिया। राज्य सरकार की ओर से पेश सीनियर वकील अभिषेक मनु सुंघवी ने कहा कि सभी पार्टियों का एकमत प्रस्ताव इस पॉलिसी का समर्थन करता है। बिना दलील के इस पर रोक कैसे लगाई जा सकती है? उन्होंने जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ से कहा कि ये लोग कौन होते हैं बिना दलील के रोक लगाने वाले, जब इसे विधानसभा ने सर्वसम्मति से पास किया था।
हाईकोर्ट ने सरकार से मांगा है जवाब
सुप्रीम कोर्ट ने 1992 के अपने ऐतिहासिक इंद्रा साहनी फैसले में आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत तय की थी। तेलंगाना सरकार ने अपनी याचिका में राज्य ने तर्क दिया कि कोटा बढ़ाना और स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी को 42 प्रतिशत आरक्षण देना एक नीतिगत निर्णय है। इसके अनुसार राज्य में कुल कोटा 67 प्रतिशत होगा। कुछ याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट में 26 सितंबर, 2025 के सरकारी आदेश को चुनौती देते हुए कहा कि पिछड़े वर्गों को 42 प्रतिशत आरक्षण देने से स्थानीय निकायों में कुल आरक्षण 67 प्रतिशत हो जाता है। उन्होंने दावा किया कि यह न्यायालय द्वारा अपने फैसलों में निर्धारित 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा का उल्लंघन करता है। इसके बाद हाईकोर्ट ने राेक लगा दी थी। तब तेलंगाना सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी।