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लद्दाख राज्य की मांग पर लेह में हंगामा, छात्रों और पुलिसकर्मियों के बीच झड़प

लद्दाख राज्य की मांग पर लेह में हंगामा, छात्रों और पुलिसकर्मियों के बीच झड़प

लद्दाख राज्य का दर्जा और आदिवासी दर्जे की मांग को लेकर लेह में विरोध प्रदर्शन हो रहा है. बुधवार को ये प्रदर्शन हिंसक हो गया. छात्रों और पुलिस के बीच झड़प हो गई.

लद्दाख राज्य का दर्जा और आदिवासी दर्जे की मांग को लेकर लेह में विरोध प्रदर्शन हो रहा है. बुधवार को ये प्रदर्शन हिंसक हो गया. छात्रों और पुलिस के बीच झड़प हो गई. लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर स्थानीय लोग प्रदर्शन कर रहे हैं. वे केंद्र सरकार से नाराज हैं. वे चाहते हैं कि सरकार उनकी मांगों को जल्द से जल्द पूरा करे. पहले लद्दाख जम्मू-कश्मीर का हिस्सा था. फिर ५ अगस्त, २०१९ को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया गया. छात्रों ने CPRF की गाड़ी में आग लगा दी. इस बीच, गृह मंत्रालय ने लद्दाख के नेताओं से बातचीत की शुरुआत कर दी है. अगली बैठक 6 अक्टूबर को नई दिल्ली में होगी.

इसलिए छठी अनुसूची में शामिल होना चाहते हैं लद्दाख के लोग

छठी अनुसूची के किसी भी इलाके में अलग तरह की स्वायत्ता होती है. संविधान के अनुच्छेद 244(2) और अनुच्छेद 275 (1) में विशेष व्यवस्था दी गई है. जम्मू-कश्मीर राज्य का हिस्सा होने पर लद्दाख के पास यह विशेष अधिकार था. पूर्वोत्तर के कई राज्यों असम, त्रिपुरा, मेघालय, मिजोरम में आज भी यह विशेष व्यवस्था लागू है. इसका फायदा यह है कि यहां इनका अपना प्रशासन है. इसे लागू होने के बाद खास इलाके में कामकाज को सामान्य बनाने के इरादे से स्वायत्त जिले बनाए जा सकते हैं. इनमें 30 सदस्य रखे जाते हैं. चार सदस्य राज्यपाल नामित करते हैं. बाकी स्थानीय जनता से चुनकर आते हैं. इन जिलों में बिना जिला पंचायत की अनुमति के कुछ नहीं हो सकता. यह सब तभी संभव है जब केंद्र सरकार इन्हें संविधान के मुताबिक यह अधिकार देगी.

नई व्यवस्था में लद्दाख से एक भी विधायक नहीं

केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद जम्मू-कश्मीर में तो विधानसभा बची हुई है लेकिन लद्दाख से विधायक नहीं चुने जाने का प्रावधान किया गया है. पहले यहां से चार एमएलए चुनकर जम्मू-कश्मीर विधान सभा में लद्दाख का प्रतिनिधित्व करते थे. लोगों के आक्रोश का एक बड़ा कारण यह भी है. इनका आरोप है कि अब उनकी बात सरकार तक पहुंचाने का कोई उचित माध्यम नहीं है. सरकार ने जितने वायदे किए थे, सब बेदम साबित हुए. आरोप है कि अब तो भाजपा के जिम्मेदार लोग इस आंदोलन को ही खारिज कर रहे हैं.

सरकारी नौकरियों का भारी संकट

जब से नई व्यवस्था लागू हुई तब से सरकारी नौकरियों का संकट बढ़ गया है. पहले जम्मू-कश्मीर पब्लिक सर्विस कमीशन के मध्य से अफसरों की भर्तियाँ होती थीं तो लद्दाख को भी मौका मिलता था. आंदोलनकारियों का आरोप है कि बीते पांच साल में राजपत्रित पदों पर एक भी भर्ती लद्दाख से नहीं हुई है. गैर-राजपत्रित पदों पर छिटपुट भर्तियों की जानकारी जरूर सामने आई है. पर, लद्दाख में बेरोजगारी बढ़ी है. पढे-लिखे उच्च शिक्षित लोग छोटे-छोटे व्यापार करने को मजबूर हैं. बेहद कम आबादी होने की वजह से बिक्री न के बराबर होती है. दुकानें बंद करने की मजबूरी आन पड़ी है.

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