कनिष्क के काल में बौद्ध धर्म ने उसी प्रकार उन्नति की जिस प्रकार सम्राट अशोक के काल में बौद्ध धम्म देश-विदेश में फ़ैल चूका था.सम्राट कनिष्क के काल में कनिष्क के संरक्षण में बौद्ध धर्म की चौथी संगीति (महासभा) उसके शासन काल में हुई। इसलिए कनिष्क ने काश्मीर के कुण्डल वन विहार में एक महासभा का आयोजन किया, जिसमें 500 प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान सम्मिलित हुए। अश्वघोष के गुरु आचार्य वसुमित्र और पार्श्व इनके प्रधान थे। वसुमित्र को महासभा का अध्यक्ष नियत किया गया। महासभा में एकत्र विद्वानों ने बौद्ध धर्म के सिद्धांतों को स्पष्ट करने और विविध सम्प्रदायों के विरोध को दूर करने के लिए ‘महाविभाषा’ नाम का एक विशाल ग्रंथ तैयार किया। यह ग्रंथ बौद्ध त्रिपिटक के भाष्य के रूप में था। यह ग्रंथ संस्कृत भाषा में था और इसे ताम्रपत्रों पर उत्कीर्ण कराया गया था। ये ताम्रपत्र एक विशाल स्तूप में सुरक्षित रूप से रख दिए गए थे। यह स्तूप कहाँ पर था, यह अभी तक ज्ञात नहीं हो सका है। यदि कभी इस स्तूप का पता चल सका, और इसमें ताम्रपत्र उपलब्ध हो गए, तो निःसन्देह कनिष्क के बौद्ध धर्म सम्बन्धी कार्य पर उनसे बहुत अधिक प्रकाश पड़ेगा। ‘महाविभाषा’ का चीनी संस्करण इस समय उपलब्ध है।
सम्राट कनिष्क के काल में ही बौद्ध धर्म भारत से निकल कर चीन और दक्षिण – पूर्व एशिया में फैला और इस का श्रेय कनिष्क को ही दिया जाना चाहिए की उन्होंने बुद्ध धर्म के प्रकाश से पुरे दक्षिण – पूर्व एशिया को रोशन कर दिया ,उनके काल में बोहत से बुद्ध स्तूप बने लेकीन अभी मिले स्तुपो ने उनका प्रसिद्ध स्तूप है पेशावर के पास मिला कनिष्का स्तूप उनके काल में बौद्ध धर्म ने उसी प्रकार उन्नति की जिस प्रकार सम्राट अशोक के काल में उन के समय में बौद्ध धर्म इराक ,ईरान और पूरे चीन और दक्षिण – पूर्व एशिया में फैला ,सम्राट कनिष्क के समय ने बुद्ध को उन्होंने अपने सिक्को पर भी आंकित करवाया ,और पुरे राज्य में हज़ारो बौद्ध स्तुपो का निर्माण करवाया ,जिस आज भी उनके प्रभाव वाले क्षेत्र में देखा जा सकता है
आज भी पाकिस्तान और अफगानिस्तान या भारत के पंजाब और हरियाणा में पाये जाने वाले ज्यादा तर बौद्ध स्मारक कनिष्क काल के ही है ,इन में से ज्यादा तर स्मारक तबाह हो गए है ,क्यों की पंजाब के रस्ते भारत पर बहुत विदेशी आक्रमण हुए और आक्रमकारी इन सब स्मारकों को तबाह करते हुए ही आगे बढ़ाते थे ,लेकीन इन के निशान आज भी इन इलाको में देखे जा सकते है ,इस के अलावा गांधार और मथुरा काला में बुद्ध की मुर्तिया भी सम्राट कनिष्का का ही योगदान है ,उन की राजधानी पेशावर और मथुरा थी
आज सम्राट कनिष्क के वंशज भारत में गुर्जर के नाम से जाने जाते है अगर हम गुर्जर शब्द को चीनी भाषा में लिखेंगे को सम्राट कनिष्क के कबीले “यू ची “का नाम बनेगा ,जो गुर्जर या यू ची का संस्कृत में बिगाड़ा हुआ रूप है
इस वीडियो के माध्यम से जानिए सम्राट कनिष्क के बारे में