अनागरिक धर्मपाल का जन्म श्रीलंका में 17 सितंबर, 1864 को हुआ था। उनका बचपन का नाम डाॅन डेविड हेविथरने था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा ईसाई स्कूलों में हुई। स्कूली शिक्षा की समाप्ति के बाद उन्होंने प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान भदंत हिवकडुवे श्रीसुमंगल नामक महास्थविर से पालि भाषा की शिक्षा और बौद्ध धर्म की दीक्षा ली. अनागरिक धम्मपाल ने भारत की बौद्ध विरासत को दुनिया के सामने प्रस्तुत किया.
बौद्ध धर्म की दीक्षा लेने के बाद इन्होंने अपना नाम बदलकर ‘अनागरिक धम्मपाल’ रख लिया और अपना जीवन बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार को समर्पित कर दिया। अनागरिक धम्मपाल ने सार्वजनिक प्रचार कार्य के लिए एक मोटर बस को घर बनाया। वह गांव-गांव घूमकर विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार की अपील करते तथा भगवान बुद्ध के उपदेशों का प्रचार करते। पर्यावरण संरक्षण पर वह अधिक बल देते थे। प्रथम महायुद्ध के समय ये पांच वर्षों के लिए कलकत्ता में नजरबंद कर दिए गए थे। अनागरिक धम्मपाल ने अपने प्रयत्नों से महाबोधि सभा की स्थापना की। महाबोधि सभा ने कई राज्यों व अनेक देशों में अपनी शाखाए खोली व बौद्ध स्थलों का संरक्षण किया। 22 जनवरी 1891 को उन्होंने ‘लाईट ऑफ एशिया’ पढ़ने के बाद पहली बार बोधगया पहुंच कर महाबोधि मंदिर देखा। उसकी दयनीय स्थिति देखते हुए मंदिर मुक्ति आंदोलन की शुरूआत की।
अनागरिक धम्मपाल ने भारत के अनेक बौ़द्ध स्थलों के संरक्षण में भूमिका निभाई। सारनाथ, बोधगया, कुशीनगर और सांची के बौद्ध स्थलों को संरक्षित करने का कार्य उन्होंने किया। सारनाथ में धर्मराजिका स्तूप का संरक्षण उनकी देखरेख में हुआ। महाबोधि सभा के कार्यों को देखकर भारत सरकार ने तक्षशिला से मिले बुद्ध अस्थि अवशेष को धर्मराजिका स्तूप में रखवाया। इसके अलावा बुद्ध के शिष्यों के अवशेष भी सुरक्षित रखने को महाबोधि सभा को दिया, जो बोधगया में रखा है। अनागरिक धम्मपाल ने 1893 में संपन्न विश्व धर्म सम्मेलन में बौद्ध धर्म का प्रतिनिधित्व किया और अपने प्रभाव से ही स्वामी विवेकानन्द को अपने भाषण के समय से स्वामी विवेकानन्द को बोलने के लिए समय दिया।29 अप्रैल, 1933 को 69 वर्ष की आयु में अनागरिक धर्मपाल की मृत्यु हो गयी। उनकी अस्थियों पत्थर के एक छोटे-से स्तूप में ‘मूलगंध कुटी विहार’ में रख दी गई।आज उनकी जयंती पर उन्हें शत शत नमन !!
देखिये इस वीडियो में उनके जीवन का संघर्ष