पहले जाने की ऋद्धियां क्या है?
एक होकर बहुत होता है, बहुत होकर एक होता है। प्रगट होता है, अन्तर्ध्यान होता है।
दीवार के आरपार,प्राकार के आरपार और पर्वत के आरपार बिना टकराये चला जाता है,मानो आकाश में जा रहा है।
पृथ्वी में, जल में जैसा गोते लगाता है, जल के तल पर भी पृथ्वी के तल पर जैसा चलता है। आकाश में भी पालथी मारे हुए उडता है,मानो पक्षी उड़ रहा हो।
महा तेजस्वी सूरज और चांद को भी हाथ से छूता है और मलता है, ब्रह्मलोक तक अपने शरीर से वश में किए रहता है। यही है ऋद्धियां ।
एक समय तथागत बुद्ध नालंदा के पास पावारिक आम्रवन में विहार करते थे। तब केवट्ट गृहपतिपुत्र जहाँ भगवान थे वहां गया। भगवान को अभिवादन कर एक ओर बैठा।
एक ओर बैठे केवट्ट गृहपतिपुत्र ने भगवान से कहा – ” भन्ते ! यह नालंदा समृद्ध, धन-धान्यपूर्ण और बहुत घनी बस्ती वाली हैं। यहां के लोग आपके प्रति बहुत श्रद्धालु हैं। भगवान कृपया एक भिक्खुको कहें कि अलौकिक ऋद्धियोंको दिखावे। इससे नालंदा के लोग आप भगवान के प्रति ओर भी अधिक श्रद्धालु हो जायेंगे।”
ऐसा कहने पर भगवान ने केवट्ट गृहपतिपुत्र को कहा – ” केवट्ट ! मैं भिक्खुओं को इस प्रकार का उपदेश नही देता हूँ कि – – – भिक्खुओं ! आओ, तुम लोग उजले कपडे पहनने वाले गृहस्थों को अपनी ऋद्धि दिखलाओ।”
दूसरी बार, तीसरी बार केवट्ट ने भगवान को ऋद्धि शक्ति बताने का आग्रह किया और कहा – ” मैं भगवान को छोटा दिखाना नहीं चाहता हूँ।”
केवट्ट का उद्देश्य था कि नालंदा के लोग भगवान के प्रति अधिक श्रद्धालु हो जायें। फिर भी तथागत ने केवट्ट की प्रार्थना को स्वीकार नहीं किया, क्योंकि तथागत इस प्रकार ऋद्धियों को बताने का दुष्परिणाम जानते थे।
भविष्य में ढोंगी और धुतारे लोग धम्म को धंधा बना कर लोगों को लूटने का काम न करें, यही बुद्ध का अभिप्राय था, उदेश्य था।
आज के समय में हम देखते हैं कि ढोंगी, धुतारे और व्यभिचारी साधु, बावा, भुवा, जादूगर, तांत्रिक, मांत्रिक आदि जनता को लूटते है, स्त्रियों का यौन शोषण करते हैं। यह सब चमत्कार जैसी निम्न प्रकार की विद्या और ईश्वर, स्वर्ग – नर्क आदि की प्रकार की कल्पनाओं का परिणाम हैं, जहरीला फल हैं।
इस प्रकार के दुष्कर्म को रोक ने के लिए ही केवट्ट की प्रार्थना को तथागत बुद्ध ने अस्वीकार कर दिया था।
आज भी यह प्रासंगिक है।