आज़ादी की लड़ाई में भील आदिवासियों ने अपना सबकुछ कुर्बान कर दिया लेकिन फिर भी उन्हें उचित सम्मान नहीं मिल पाया।
हमारे देश में जलियांवाला बाग नरसंहार को तो याद किया जाता है लेकिन उससे भी पहले हुए भील आदिवासियों के कत्लेआम का जिक्र ना ही इतिहास की किताबों में मिलता है और ना ही नेताओं के भाषणों में। जलियांवाला बाग नरसंहार से 6 साल पहले 17 नवंबर 1913 को आज ही के दिन राजस्थान-गुजरात की सीमा पर बसे बांसवाड़ा जिले में अंग्रेजों ने हैवानियत की सारी हदें पार कर दी थी। अंग्रेजों ने यहां लगभग 1500 भील आदिवासियों को बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया था।