उत्तर भारत में हरियाणा राज्य १९६६ में पंजाब से स्वतंत्र हुआ। लेकिन आज हरियाणा और पंजाब दोनों की राजधानी चंडीगढ़ हैं। यह बहुतों को ज्ञात नहीं है कि यह हरा-भरा हरियाणा कभी महायान पंथ संस्कृति का प्रमुख केंद्र था। शुंग और कुशाण राजवंशों के फलते-फूलते शहर यहीं थे। उनके तांबे के सिक्के यहां ढाले गए थे। राजा हर्षवर्धन की राजधानी हरियाणा के थानेसर में थी। प्राचीन परंपराकें अनुसार यहा बैशाख पूर्णिमा कें आसपास एक उत्सव मनाया जाता हैं। हालाँकि आज इसे सरस्वती महोत्सव कहा जाता है, लेकिन यह मूलरूप में बुद्ध पूर्णिमा का उत्सव है।
सातवीं शताब्दी में सौराष्ट्र के आचार्य शांतिदेव ने २७ कारिकों का एक ग्रंथ लिखा था, जिसमें सामूहिक रूप से ‘शिक्षासमुचय’ के रूप में महायानी सिद्धांतों का वर्णन किया गया है। यह ग्रंथ वल्लभी विश्वविद्यालय और हरियाणा में बहुत प्रसिद्ध था। इस ग्रंथमें महायान पंथ बोधिसत्व सरस्वती देवी की स्तुति है। शायद इस कारण, देवी सरस्वती हरियाणा में बहुत लोकप्रिय हो गयी। हरियाणा राज्य में ऐसे कई स्थान हैं जहां महायान बौद्ध धर्म फला-फूला। उनकी जानकारी इस प्रकार है।१) आदि बद्री: यह स्थान हरियाणा के यमुनानगर जिले में शिवालिक के वन क्षेत्र में पहाड़ियों की तलहटी में स्थित है। कई स्तूपों और विहारों के अवशेष यहां बिखरे हुए हैं। यहीं पर सरस्वती और सोमा नदियों के तट पर वैशाख के महीने में एक बड़ा पांच दिवसीय उत्सव आयोजित किया जाता है। इसे ‘आदि बद्री आखा तिज मेला’ भी कहा जाता है। साथ ही नवंबर में, कार्तिक की पूर्णिमा के दिन, यहां ‘बद्री कपाल मोचन’ नामक सात दिवसीय उत्सव आयोजित किया जाता है।
यहां १४ एकड़ वन भूमि पर तीन पहाड़ियों की खुदाई की गई है और दो हजार साल पुराने ईंट के स्तूप मिले हैं। खुदाई में कई मिट्टी के बर्तन, बर्तन, टेराकोटा के मोती, माला और बुद्ध की छोटी मूर्तियां भी मिली हैं। भिक्षुओंके छोटे आवास यहाँ पाए गये और उनके भिक्षापात्र भी यहाँ मिले थे।२) सुंघ: यह स्थान यमुनानगर जिले में स्थित है और कभी प्राचीन शुंग वंश की राजधानी थी। सम्राट अशोक के समय से बौद्ध संस्कृति के अवशेष यहां पाए गए हैं। भगवान बुद्ध जहां भी गए, जहां भी रहे और जहां उन्होंने उपदेश दिया, वहां सम्राट अशोक ने स्तूप बनवाए। भगवान बुद्ध इस सूंघने गांव में संकिसा से पैदल ही आए थे। और उन्होंने यहां आकर धम्मदेशना दी थी । इसलिए इस पवित्र स्थानमें सम्राट अशोक द्वारा एक बड़ा ईंट का स्तूप बनवाया गया था। ब्रिटिश पुरातत्ववेत्ता अलेक्जेंडर कनिंघम ने यहां सबसे पहले सर्वेक्षण और उत्खनन किया था।
३) हर्ष का टीला: यह स्थान थानेसर जिले में है और ८८-८९ में की गई खुदाई में वहां बौद्ध संस्कृति की ठोस ईंटों का निर्माण पाया गया। हर्षवर्धन के शासनकाल के सिक्के भी यहीं मिले थे। उस समय थेरवाद संप्रदाय का संमितीय पंथ वहां प्रमुख था। और राजा हर्षवर्धन की बहन राजेश्वरी उसी संप्रदायसे जुडी थीं।४) भुना हिल: यह पहाड़ी फतेहाबाद जिले में है और वहां खुदाई के दौरान कुशाण वंश के 68 तांबे के सिक्के मिले थे।५) नौरंगाबाद: यह स्थान भिवनी जिले में है और यहां कुशाण वंश के टंकसाली के ढेर सारे अवशेष मिले हैं।
६) खोकराखोट : इस स्थान पर कुशाण काल के बलुआ पत्थर के दो दान पत्र मिले हैं। इसपर धम्मलिपी में “ये दानपत्र कनिष्क राजा ने दिया” ऐसा लिखा है। महायानी संप्रदाय के गहन ज्ञानवाले कई विद्वान यहां रहते थे। एक समय में कई संघराम यहां मौजूद थे।७) हर्नोल: यह स्थान गुड़गांव जिले में स्थित है। यहां भी कुशाण काल के बौद्ध संस्कृतीके अवशेष और संघाराम पाये गये ।८) मुहम्मदनगर : यहां भी प्राचीन बौद्ध संस्कृति के अवशेष मिले हैं।
इतिहासकारों का कहना है कि ११वीं शताब्दी के बाद मोहम्मद घोरी के आक्रमण से बौद्ध संस्कृति नष्ट हो गई थी। यहाँ के संघराम में बहुत से बौद्ध भिक्षु रहते थे।९) चनेती बौद्ध स्तूप: तीसरी शताब्दी का यह स्तूप ठोस ईंटों से बना है और अच्छी स्थिति में है। चिनी प्रवासी भिक्खू हुएनत्संग ने भी देड हजार साल पहिले इसका वर्णन किया हैं। इस प्रसिद्ध स्तूप को देखने के लिए कई विदेशी भिक्षु और हरियाणा विश्वविद्यालय के छात्र नियमित रूप से यहां आते हैं। युट्यूब पर इसके कई वीडियो हैं।भारत में भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद धम्म के अठारह संप्रदाय हुए, मगर मूल बौद्ध सिद्धांत सबमें एक ही था। आज के हरियाणा में विकसित संस्कृति बुध्दिझम की मूल महायान संप्रदाय की है। इसलिये सरस्वती उत्सव वहाँ प्रसिद्ध बौद्ध तिथियों ( बैशाख पौर्णिमा )पर मनाया जाता है। इसके लिए हरियाणा सरस्वती विरासत विकास निगम की भी स्थापना की गई है। उत्तर प्रदेश में सैनी समुदाय खुद को सम्राट अशोक का वंशज मानता है। और वे आज बौद्ध संस्कृती अपना रहे हैं। लेकिन हरियाणा में सैनी समुदाय अपने पूर्वजों का इतिहास जानने के बावजूद खामोश है। हरियाणा के अन्य समाज भी अपनी मूल संस्कृति को भूल चुके हैं। आइए हम प्रार्थना करें कि बुद्ध की शिक्षाएं भारत की सभी जनजातियों को ज्ञात हों और वे समृद्ध हों। — संजय सावंत www.sanjaysat.in
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