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महिलाओं के मुक्तिदाता डॉ. बाबासाहब आंबेडकर

महिलाओं के मुक्तिदाता डॉ. बाबासाहब आंबेडकर

5 फरवरी 1951 को डॉ. भीमराव आंबेडकर ने संसद में ‘हिंदू कोड बिल’ पेश किया. इसका मकसद हिंदू महिलाओं को सामाजिक शोषण से आजाद कराना और पुरुषों के बराबर अधिकार दिलाना था. महिला सशक्तीकरण की दिशा में इस ऐतिहासिक कदम से आज शायद बहुत कम लड़कियां परिचित होंगी. इसी  बिल में महिला सशक्तीकरण की असली व्याख्या है.

हमारा समाज सदियों से मनुवादी संस्कृति से ग्रसित रहा है. मनुस्मृति काल में नारियों के अपमान और उनके साथ अन्याय की पराकाष्ठा थी.

ऋग्वेद में बेटी के जन्म को दुखों की खान और पुत्र को आकाश की ज्योति माना गया है. ऋग्वेद में ही नारी के मनोरंजनकारी भोग्या रूप का वर्णन है. नियोग प्रथा को पवित्र कर्म माना गया है. अथर्ववेद में कहा गया है कि दुनिया की सब महिलाएं शूद्र हैं.

रात और दिन, कभी भी स्त्री को स्वतंत्र नहीं होने देना चाहिए. उन्हें लैंगिक संबंधों द्वारा अपने वश में रखना चाहिए, बालपन में पिता, युवावस्था में पति और बुढ़ापे में पुत्र उसकी रक्षा करें, स्त्री स्वतंत्र होने के लायक नहीं है.– मनु स्मृति (अध्याय 9, 2-3)

मनु स्मृति में स्त्रियों को जड़, मूर्ख और कपटी स्वभाव का माना गया है और शूद्रों की भांति उन्हें अध्ययन से वंचित रखा गया. मनु ने कहा कि पत्नी, पुत्र और दास को संपत्ति अर्जन का अधिकार नहीं है. अगर ये संपत्ति अर्जित करें तो संपत्ति उसकी हो जाएगी, जिसके वे पत्नी, पुत्र या दास होंगे. बाबासाहेब ने संविधान के जरिए महिलाओं को वे अधिकार दिए जो मनुस्मृति ने नकारे थे. उन्होंने राजनीति और संविधान के जरिए भारतीय समाज में स्त्री-पुरुष के बीच असमानता की गहरी खाई पाटने का सार्थक प्रयास किया. जाति- लिंग और धर्मनिरपेक्ष संविधान में उन्होंने सामाजिक न्याय की कल्पना की है.

महिला सशक्तिकरण को लेकर अंबेडकर की जुनूनी लड़ाई की शुरूआत साल 1942 में शोषित वर्ग की महिलाओं के एक सम्मेलन में देखने को मिली थी, जब उन्होंने कहा था, ‘किसी समुदाय की प्रगति महिलाओं की प्रगति से आंकी जाती है।’ उनके यही शब्द उन्हें नारीवाद का एक बड़ा नेता मानते है, जिसने जाति समस्या और महिला के अधिकारों को एक करके देखा|

उनका मानना था कि महिलाओं की स्थिति इसलिए बदहाल है क्योंकि वे सब  जाति-प्रथा के जाल में फंसी हुई है| आजादी मिल जाने के बाद भी चिंता इस बात की थी कि आधी आबादी का क्या होगा| देश में जहां संविधान को बनाने में तीन साल से ज्यादा का समय लग गया था, वही महिला अधिकारों के लिए लड़ाई अभी भी बाकी थी| भारत सामाजिक व्यवस्था के तौर पर पितृसत्तात्मक है| महिला का स्थान पुरूष से नीचे हैं| बेटियों को हीन नज़र से देखा जाता है| हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में स्त्रियों को हीन नजर से देखा और प्रस्तुत किया गया है| मनुस्मृति जैसी किताबों में महिलाओं को नीचे दर्जे का दिखाया गया है व सभी अधिकारों से वंचित किया गया| 

अंबेडकर ने महिला सशक्तिकरण के रूप में प्राचीन ‘मनुस्मृति’ का दहन किया| वह केवल उपदेश देने में विश्वास नहीं रखते थे बल्कि उन्होंने हिंदू कोड बिल लाकर बेजोड़ मिसाल कायम की, जब यह बिल संसद में पेश किया गया तब इसे लेकर संसद के अंदर और बाहर विद्रोह मच गया| सनातनी धर्मावलम्बी से लेकर आर्य समाजी तक अंबेडकर के विरोधी हो गए| संसद में जहां जनसंघ समेत कांग्रेस के हिंदूवादी इसका विरोध कर रहे थे तो वहीं संसद के बाहर हरिहरानन्द सरस्वती उर्फ करपात्री महाराज के नेतृत्व में बड़ा प्रदर्शन चल रहा था|

‘हिंदू कोड बिल’ के जरिए उन्होंने संवैधानिक स्तर से महिला हितों की रक्षा का प्रयास किया. इस बिल के मुख्यतया 4 अंग थे-

  • हिंदुओं में बहू विवाह की प्रथा को समाप्त करके केवल एक विवाह का प्रावधान, जो विधिसम्मत हो.
  • महिलाओं को संपत्ति में अधिकार देना और गोद लेने का अधिकार देना.
  • पुरुषों के समान नारियों को भी तलाक का अधिकार देना, हिंदू समाज में पहले पुरुष ही तलाक दे सकते थे.
  • 4. आधुनिक और प्रगतिशील विचारधारा के अनुरूप हिंदू समाज को एकीकृत करके उसे मजबूत करना.

डॉ. आंबेडकर का मानना था

सही मायने में प्रजातंत्र तब आएगा, जब महिलाओं को पिता की संपत्ति में बराबरी का हिस्सा मिलेगा. उन्हें पुरुषों के समान अधिकार मिलेंगे. महिलाओं की उन्नति तभी होगी, जब उन्हें परिवार-समाज में बराबरी का दर्जा मिलेगा. शिक्षा और आर्थिक तरक्की उनकी इस काम में मदद करेगी.

बाबा साहब के लिए ‘हिंदू कोड बिल’ संसद में पास कराना आसान नहीं था. जैसे ही इसे सदन में पेश किया गया. संसद के अंदर और बाहर विरोध के स्वर गूंजने लगे. सनातन हिंदुओं से लेकर आर्य समाजी तक आंबेडकर के विरोधी हो गए. संसद के अंदर भी काफी विरोध हुआ.

आंबेडकर हिंदू कोड बिल पारित कराने को लेकर काफी चिंतित थे. सदन में इस बिल पर सदस्यों का समर्थन नहीं मिल पा रहा था. वे कहते थे, ‘मुझे भारतीय संविधान के निर्माण से ज्यादा दिलचस्पी और खुशी हिंदू कोड बिल पास कराने से मिलेगी.’

सच तो ये है कि हिंदू कोड बिल महिला हितों की रक्षा करने वाला विधान बनाना भारतीय कानून के इतिहास की महत्वपूर्ण घटना है. लेकिन तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने इसका विरोध किया था. उन्होंने नेहरु को लिखे एक पत्र में कहा था-

प्रिय जवाहरलाल जी, इस बिल से यद्यपि काफी लाभ हैं, फिर भी मेरा ऐसा विचार है कि बिल के दूरगामी परिणामों के बारे में लोगों में मतभेद है. इसलिए संविधान सभा को इस बिल को पास नहीं करना है. किसी भी परिस्थिति में इस बिल का समर्थन नहीं करना है. इसे पास करने की जल्दी नहीं करनी है. बिल के द्वितीय वाचन में जल्दबाज़ी हुई है. इस संदर्भ में मैंने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की हैं. मेरा अनुरोध है कि इन सब बातों पर ध्यान देकर विचार कीजिए.

आखिर में 26 सितम्बर 1951 को नेहरु ने घोषणा की कि ये बिल इस सदन से वापस लिया जाता है. इस बिल के पास न होने पर बाबा साहब को पुत्र निधन जैसा दुख हआ. 27 सितंबर 1951 को बाबा साहब ने मंत्रीपद से इस्तीफा दे दिया. मकसद पूरा न होने पर सत्ता से छोड़ देना निस्वार्थ समाजसेवी की पहचान है. ये बाबासाहब जैसे लोग ही कर सकते थे. करपात्री महाराज के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, हिंदू महासभा और दूसरे हिंदूवादी संगठन हिंदू कोड बिल का विरोध कर रहे थे| इसलिए जब इस बिल को संसद में चर्चा के लिए लाया गया तब हिंदूवादी संगठनों ने इसके खिलाफ देशभर में प्रदर्शन शुरू कर दिए| आरएसएस ने दिल्ली में दर्जनों विरोध-रैलिया की| इस सबके बावजूद अंबेडकर लड़ते रहे| हिंदू कोड बिल औपचारिक रूप से 5 फरवरी 1951 को पेश किया गया था| यह बिल हिंदू स्त्रियों की उन्नति के लिए प्रस्तुत किया गया था| हिंदू विवाह अधिनियम, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम, और हिंदू दत्तक और रखरखाव अधिनियम 1952 और 1956 के बीच पारित किए गए थे।

बाबासाहब के इस्तीफा के बाद देश भर में हिंदू कोड बिल के पक्ष में बड़ी प्रतिक्रिया हुई. खास तौर से महिला संगठनों द्वारा. विदेशों में भी इसकी प्रतिक्रिया हुई. कुछ साल बाद 1955-56 हिंदू कोड बिल के अधिकांश प्राविधानों को निम्न भागों में संसद ने पारित किया. इसका श्रेय डॉ. आंबेडकर को ही जाता है.

इस बिल में स्त्रियों को तलाक लेने का अधिकार मिला क्योंकि हिंदू ग्रन्थों के अनुसार ऐसी मान्यता थी कि अगर महिला अपने घर से डोली पर निकलती है तो वापस उसकी अर्थी उठती है और विवाहित स्त्रियों का अपने पिता के घर वापस आना पाप माना जाता था| उनकी इस पहल से महिलाएं अब कानूनी रूप से मजबूत हो गई थी|  एक पत्नी के होते हुए दूसरी शादी न करने का प्रावधान भी किया गया था| पुरूष चाहे तो कितनी ही शादी कर सकता था और ऐसी अवस्था में उसकी पहली पत्नी को प्रताड़ित किया जाता था| लेकिन इस कानून से स्त्रियों की दशा में सुधार हुआ|

महिलाओं को बच्चा गोद लेने का अधिकार  मिला और बाप-दादा की संपत्ति में भी हिस्से का अधिकार प्राप्त हुआ| इसके अलावा कई महत्वपूर्ण अधिकार जैसे – स्त्रियों को अपनी कमाई पर अधिकार और बेटी को उत्तराधिकार होने का| इसके अलावा अंतरजातीय विवाह करने का व अपना उत्तराधिकारी निश्चित करने की स्वतंत्रता भी दी गई|

आज के परिवेश में जहाँ महिला सुरक्षा के नामपर केवल खर्चे जाते है वहां बाबा साहब ने मेरे जैसी हर महिलाओं को सुरक्षा का अधिकार दिया, मैं शायद तब तक उन्हें दलितो का मसीहा या संविधान-निर्माता  मानती थी जब तक मैने उनके बारे मे पढ़ा नहीं था या यूँ कहें जब तक हिंदू कोड बिल के लिए उनकी लड़ाई व संघर्ष को नहीं पढ़ा था| यह सब पढ़ने से ही वो मेरे लिए नारिवादी हो गए जो महिलाओं के अधिकारों पर केवल लिखते या बोलते नहीं थे बल्कि इसके लिए उन्होनें लंबी लड़ाई भी लड़ी|

ये ‘संविधान शिल्पी’ के प्रयासों का परिणाम है कि भारतीय समाज में महिलाओं को अवसर प्राप्त हुए. वैसे अब भी कुछ सामाजिक रूढि़यां महिलाओं के रास्ते की रुकावटें हैं. फिर भी मुझे और मेरे जैसी महिलाओं को अपने विचारों की अभिव्यक्ति की आजादी है तो सिर्फ बाबासाहब की वजह से ही मुमकिन हो पाई.

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