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मराठा आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्विचार याचिका क्यों खारिज की

मराठा आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्विचार याचिका क्यों खारिज की

सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण पर केंद्र द्वारा दाखिल पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी है. पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 5 मई को दिए गए मराठा आरक्षण फैसले में 102 वें संवैधानिक संशोधन की उच्चतम न्यायालय की व्याख्या को चुनौती देने वाली केंद्र सरकार द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया है। (भारत संघ बनाम शिव संग्राम और अन्य) । उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुनाया था कि 102वें संशोधन के माध्यम से संविधान में अनुच्छेद 342ए को शामिल करने के बाद, यह अकेले केंद्र हैं जिसे सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान करने का अधिकार है।

फैसले में संविधान पीठ ने कहा है कि हमने रिट याचिका (सी) संख्या 938/2020 में निर्णय दिनांक 05 मई, 2021 के खिलाफ दायर समीक्षा याचिका के माध्यम से देखा है। पुनर्विचार याचिका में लिए गए आधार उन सीमित आधार के भीतर नहीं आते हैं जिस पर समीक्षा याचिका पर विचार किया जा सकता है। समीक्षा याचिका में लिए गए विभिन्न आधारों को मुख्य निर्णय में पहले ही निपटाया जा चुका है। हमें इस पुनर्विचार याचिका पर विचार करने के लिए कोई पर्याप्त आधार नहीं मिलता है। यह कहते हुए संविधान पीठ ने समीक्षा याचिका खारिज कर दिया।

केंद्र ने पुनर्विचार याचिका दाखिल करके उच्चतम न्यायालय से आग्रह किया कि वह पांच मई के बहुमत से लिए गए अपने फैसले पर पुनर्विचार करे। इस फैसले में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि 102वें संविधान संशोधन के बाद राज्यों के पास नौकरियों और दाखिलों में आरक्षण प्रदान करने के लिए सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) की घोषणा करने का अधिकार नहीं है। हाल में महाराष्ट्र सरकार ने मराठाओं को आरक्षण दिया था। उच्चतम न्यायालय ने इसे खारिज कर दिया था। मराठा आरक्षण निरस्त करने के फैसले के खिलाफ केंद्र ने पुनर्विचार याचिका दाखिल किया था। समीक्षा याचिका में केंद्र ने कहा था कि संशोधन ने एसईबीसी की पहचान और घोषणा करने संबंधी राज्यों की शक्तियां नहीं छीनी हैं और शामिल किए गए दो प्रावधानों ने संघीय ढांचे का उल्लंघन नहीं किया है।

जस्टिस अशोक भूषण के नेतृत्व वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने महाराष्ट्र सरकार की ओर से मराठाओं को दिए गए आरक्षण को खारिज कर दिया था। साथ ही आरक्षण को 50 फीसदी तक सीमित रखने के 1992 के मंडल संबंधी निर्णय को वृहद पीठ को भेजने से इनकार कर दिया था। था। याचिका ख़ारिज होने के बाद महाराष्ट्र के उद्धव सरकार की मुश्किलें और बढ़ सकती है. मराठाओं को मैनेज करने की लिए राज्य सरकार ने अनु.जाती-जनजाति तथा भटके विमुक्त का प्रमोशन में आरक्षण रोक दिया है.

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