देश के नए संसद भवन में राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ का अनावरण किया गया। पीएम मोदी ने बौद्ध विरासत के सबसे बड़े प्रतीक का अनावरण किया लेकिन राष्ट्रीय प्रतीक को स्थापित कराने में ब्राह्मणों से पूजा कराने को लेकर मोदी सरकार की आलोचना हो रही है। ब्राह्मणवाद के ख़िलाफ़ समता और न्याय के लिए संघर्ष करने वाले सम्राट अशोक की विरासत के प्रतीक का ब्राह्मणों के हाथों अनुष्ठान कराने की निंदा हो रही है। इसके अलावा स्तंभ में बनी शेरों की आकृति पर भी सवाल उठने लगे है.
वरिष्ठ पत्रकार और लेखक दिलीप सी मंडल ने इस बारे में ट्विटर पर लिखा ‘अशोक स्तंभ बौद्ध प्रतीक है। अब वह राष्ट्रीय प्रतीक है। नए संसद भवन में अशोक स्तंभ की स्थापना करने के लिए ब्राह्मणों को बुलाकर पूजा और पाखंड करना न सिर्फ इतिहास की परंपरा के खिलाफ है बल्कि असंवैधानिक भी है। बौद्ध भंते जी को बुलाते। या किसी को न बुलाते।’
दिलीप मंडल ने अशोक स्तंभ में बनी शेरों की आकृति पर भी सवाल उठाया। उन्होंने लिखा ‘अशोक स्तंभ का मूल स्वरूप सारनाथ संग्रहालय में रखा है। वही छवि डाक टिकटों से लेकर सरकारी दस्तावेज़ों में है। उनमें शेर की शांत मुद्रा है। आज प्रधानमंत्री ने जिस अशोक स्तंभ की ब्राह्मण रीति से नए संसद भवन में स्थापना की उसमें शेर बहुत नाराज़ और उग्र है। क्या आपने गौर किया?’
अमन कांबले ट्विटर पर लिखते है अशोक स्तंभ में मूल कृति के चेहरे पर सौम्यता का भाव था लेकिन वर्तमान में बने स्तंभ पर इंसान, पुरखों और देश का सबकुछ निगल जाने की आदमखोर प्रवृति का भाव मौजूद है। हर प्रतीक चिन्ह इंसान की आंतरिक सोच को प्रदर्शित करता है। इंसान प्रतीकों से आमजन को दर्शाता है कि उसकी फितरत क्या है।
AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी ने इस पर सवाल खड़े किए हैं। ओवैसी ने कहा है कि पीएम मोदी ने राष्ट्रीय प्रतीक का अनावरण करके गलत किया है। ट्वीट करते हुए ओवैसी ने लिखा कि संविधान- संसद, सरकार और न्यायपालिका की शक्तियों को अलग करता है। सरकार के प्रमुख के नाते संसद भवन के ऊपर राष्ट्रीय प्रतीक का अनावरण नहीं करना चाहिए था। लोकसभा का अध्यक्ष लोकसभा का प्रतिनिधित्व करता है जो सरकार के अधीन नहीं है। सभी संवैधानिक मानदंडों का उल्लंघन किया गया है।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने नए संसद भवन परिसर में राष्ट्रीय प्रतीक के अनावरण के मौके पर आयोजित एक धार्मिक समारोह को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधा। माकपा की ओर कहा गया कि ऐसे प्रतिष्ठानों को धर्म से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। माकपा ने ट्वीट कर कहा राष्ट्रीय प्रतीक के अनावरण को धार्मिक समारोहों से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। यह हर किसी का प्रतीक है, न कि उनका, जिनकी कुछ धार्मिक मान्यताएं हैं। धर्म को राष्ट्रीय समारोहों से दूर रखें।
तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य जवाहर सरकार ने सवाल किया कि इस प्रक्रिया में सांसदों से सलाह-मशविरा क्यों नहीं किया गया। उन्होंने एक ट्वीट में कहा कि इस इमारत में काम करने वाले सांसदों से कभी सलाह नहीं ली गई। मोदी अब हमें एक औसत दर्जे की वास्तुकला से रूबरू कराएंगे, जिसे उनके करीबी वास्तुकार ने अत्यधिक लागत पर डिजाइन किया है।
सपा ने भी PM मोदी द्वारा किये गए पूजा पाठ को पाखंड करार दिया है.
RSS खुले तौर पर सम्राट अशोक का विरोध करती है और उन्हें महान सम्राट मानने से इनकार करती है। ऐसे में अशोक स्तंभ को ब्राह्मण रीति से स्थापित करने का विरोध हो रहा है।अशोक स्तंभ भारत के उस महान इतिहास का प्रतीक है जिसे बौद्ध विरासत के महान राजा सम्राट अशोक ने स्थापित किया था। अशोक स्तंभ युगों-युगों तक हमें प्रेरित करता रहेगा। आपका इस बारे में क्या कहना है ?