केंद्र की मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि OBC अर्थात पिछड़ी जातियों की जाति आधारित गणना करना प्रशासनिक रूप से कठिन और असाध्य काम है.इसलिए सोच समझकर एक नीतिगत फैसले के तहत इस तरह की जानकारी को जनगणना के दायरे से अलग रखा गया है।
ओबीसी जनगणना को लेकर केंद्र का रूख इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि देश के तमाम OBC संघटनाओं समेत बिहार से सभी दलों के प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर जाति आधारित जनगणना कराने की मांग की थी. लेकिन आरएसएस तथा बीजेपी के सवर्ण जातिगत जनगणना के सख्त खिलाफ थे और है. जिसके वजह से ही केंद्र की मोदी सरकार इनके अनुरूप OBC की जातिगत जनगणना से इंकार कर दिया है.
महाराष्ट्र सरकार ने लगाई है याचिका
सुप्रीम कोर्ट में महाराष्ट्र सरकार की ओर से याचिका दायर की गई है। जिसमें मांग की गई है कि केंद्र और संबंधित अथॉरिटी को निर्देश दिया जाए कि वह राज्य को सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (SECC) 2011 में दर्ज ओबीसी के जातीय आंकड़ों की जानकारी मुहैया कराएं। याचिका में राज्य सरकार ने कहा कि उन्होंने बार-बार इसके लिए केंद्र से गुहार लगाई लेकिन उन्हें जानकारी नहीं दी गई। केंद्र सरकार ने की, कहा जाति से संबंधित जनगणना के रिकॉर्ड विश्वसनीय नहीं है। ऐसे में किसी भी तरह का आरक्षण, रोजगार या स्थानीय चुनाव के लिए कोई फैसला इसके आधार पर करना सही नहीं होगा। यह मामला गुरुवार को न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आया था, जिसने इस पर सुनवाई की अगली तारीख 26 अक्टूबर तय की है.
महाराष्ट्र सरकार ने भी जाती जनगणना के लिए विधानसभा में प्रस्ताव पारित किया था वही झारखंड सरकार भी इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री से मिलनेका समय मांग रही है. ओबीसी संघटनायें लगातार जनगणना के पक्ष में आंदोलन कर रहे है. लेकिन केंद्र की मोदी सरकार इन्हे हक-अधिकारों से वंचित रखना चाहती है.