80 साल के मल्लिकार्जुन खड़गे 137 पुरानी पार्टी कांग्रेस के नए अध्यक्ष बन गए हैं। उन्होंने शशि थरूर को 6,825 वोट से हराया। 9 बार विधायक और दो बार सांसद रह चुके खड़गे 1972 में पहली बार चुनाव मैदान में उतरे थे। तब से सिर्फ एक बार 2019 का लोकसभा चुनाव हारे। एक मौका ऐसा भी आया, जब उन्होंने अपने दोस्त के लिए CM पद की दावेदारी छोड़ दी।
मल्लिकार्जुन खड़गे के अध्यक्ष पद पर निर्वाचित होने के बाद बसपा अध्यक्ष मायावती ने प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा है उन्होंने ट्वीट कर कहा कि कांग्रेस का इतिहास गवाह है कि इन्होंने दलितों व उपेक्षितों के मसीहा परमपूज्य बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर व इनके समाज की हमेशा उपेक्षा व तिरस्कार किया। इस पार्टी को अपने अच्छे दिनों में दलितों की सुरक्षा व सम्मान की याद नहीं आती बल्कि बुरे दिनों में इनको बलि का बकरा बनाते हैं।
लेकिन अगर गौर से देखा जाएं तो मल्लिकार्जुन खड़गे एक संघर्षशील नेता रहें है. 1947 का अगस्त महीना। मैसूर राज्य (अब कर्नाटक) का वरवट्टी गांव। तब यहां निजाम की हुकूमत थी। भारत को बांटकर पाकिस्तान बनाया गया, तो इस इलाके में भी हिंदू-मुस्लिम दंगे भड़क गए। वरवट्टी गांव पर निजाम की सेना ने हमला कर दिया। साथ में लुटारी (अमीरों को लूटने वाले) भी थे। उन्होंने पूरे गांव में आग लगा दी। यहीं एक घर में 5 साल के बच्चे ने अपनी मां को जिंदा जलते देखा।
पिता उसे बचाकर गांव से दूर ले गए। 3 महीने जंगल में रहे। मजदूरी की। बच्चे को काम में लगाने के बजाय पढ़ाया। मल्लिकार्जुन नाम का वह बच्चा बड़ा होकर पहले वकील बना, फिर यूनियन लीडर, विधायक, अपने प्रदेश कर्नाटक में मंत्री, सांसद, केंद्रीय सरकार में मंत्री और अब कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष। जी हां, ये मल्लिकार्जुन खड़गे की कहानी है।
खड़गे की जिंदगी हमेशा मुश्किल भरी रही, लेकिन लीडरशिप की क्वालिटी उनमें बचपन से थी। वे स्कूल में हेड बॉय थे। कॉलेज गए तो स्टूडेंट लीडर बन गए। गुलबर्गा जिले के पहले दलित बैरिस्टर बने, पहली बार में विधायक बने और 9 बार चुने गए, दो बार सांसद भी रहे, लेकिन तीन बार कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए।
खड़गे इंदिरा गांधी के समय से गांधी परिवार के करीब रहे हैं। यही वजह है कि अध्यक्ष पद के लिए उनके नाम पर सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी तीनों की सहमति थी।
साईबववा (मां) और मपन्ना खड़गे (पिता) के घर 21 जुलाई 1942 को मल्लिकार्जुन का जन्म हुआ था। दलित समुदाय से आने वाले मपन्ना ने अपने जीवित रहते मल्लिकार्जुन को कभी काम नहीं करने दिया। उनकी सोच थी कि बेटा पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बने। खटक चिंचौली से निकलकर मपन्ना तीन दिन लगातार पैदल चलकर गुलबर्गा पहुंचे। यहां उन्होंने कपड़ा मिल में काम शुरू किया।
मल्लिकार्जुन ने 12वीं तक की पढ़ाई नूतन स्कूल से पूरी की। इसके बाद गवर्नमेंट कॉलेज से ग्रेजुएशन। गुलबर्गा के सेठ शंकरलाल लाहोटी लॉ कॉलेज से कानून की डिग्री ली। खड़गे गुलबर्गा के पहले दलित वकील थे। उनकी होशियारी देख सुप्रीम कोर्ट के जज शिवराज पाटिल ने उन्हें अपना असिस्टेंट बना लिया। मपन्ना, मल्लिकार्जुन के साथ बसवानगर में रहने लगे। यहीं एक घर बनाया और पास के स्कूल में मल्लिकार्जुन का एडमिशन करा दिया। चुनावों के दौरान आज भी मल्लिकार्जुन खड़गे इसी स्कूल में वोट डालने आते हैं। उनके पिता के बनाए घर की जगह उन्होंने दो मंजिला मकान बनवाया है। अब यहां 6 परिवार किराए से रहते हैं।
मल्लिकार्जुन 1969 में MSK मिल के लीगल एडवाइजर बनाए गए। उनके पिता कभी इसी मिल में काम करते थे। मजदूरों के कहने पर खड़गे यूनियन लीडर बन गए। वे बिना पैसे लिए गरीबों और मजदूरों के केस लड़ते थे। इस वजह से खड़गे कुछ ही दिन में शहर के लोगों, खास तौर से दलितों में मशहूर हो गए। उन्हें गुलबर्गा के संयुक्त मजदूर संघ का सबसे प्रभावशाली नेता कहा जाने लगा। यहीं से कांग्रेस नेताओं की नजर उन पर पड़ी।
मल्लिकार्जुन के लिए कहा जाता है कि कांग्रेस जब भी कर्नाटक में सत्ता में आई वे ‘CM इन वेटिंग’ रहे। 2004 में उनका मुख्यमंत्री बनना लगभग तय था, लेकिन उनके दोस्त धर्म सिंह का नाम सामने आया तो मल्लिकार्जुन पीछे हट गए। 2013 में भी मल्लिकार्जुन कांग्रेस विधायक दल के नेता चुने जाने वाले थे। तब आखिरी वक्त में सिद्धारमैया का नाम आगे कर दिया गया।
1980 में आर गुंडु राव सरकार में मंत्री बनने के बाद मल्लिकार्जुन सभी कांग्रेस सरकारों में मंत्री रहे। राज्य की राजनीति में लिंगायतों और वोक्कालिगाओं के वर्चस्व के कारण वे मुख्यमंत्री नहीं बन पाए। 8 भाषाएं जानने वाले खड़गे की मराठी पर अच्छी पकड़ है। इसीलिए 2018 में पार्टी ने उन्हें महाराष्ट्र की जिम्मेदारी सौंपी थी।
मल्लिकार्जुन बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं। वे सिद्धार्थ विहार ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं। ट्रस्ट ने बुद्ध और डॉ. अंबेडकर के विचारों को फैलाने के लिए गुलबर्गा के बाहरी इलाके में बुद्ध विहार बनवाया है। इसकी देखरेख का जिम्मा उनके रिश्तेदार कल्याणी कांबले के पास है। मल्लिकार्जुन खड़गे की पत्नी का नाम राधाबाई है। उनके तीन बेटे और दो बेटियां हैं। बड़े बेटे राहुल खड़गे परिवार का बिजनेस संभालते हैं। दूसरे बेटे मिलिंद डॉक्टर हैं, उनका बेंगलुरु में स्पर्श नाम से हॉस्पिटल है। छोटे बेटे प्रियांक खड़गे गुलबर्गा जिले के चित्तपुर से विधायक हैं।
खबर है कि 80 वर्षीय नेता की एंट्री अनुसूचित जाति यानी SC की भाजपा की ओर बढ़ती रफ्तार को धीमा कर सकती है। दरअसल, खड़गे खुद SC (राइट) से आते हैं, जहां भाजपा ने सियासी जमीन तलाश ली है। अब कांग्रेस नेता के प्रमोशन से इनमें से कुछ वर्ग भी खड़गे के पीछे लामबंद हो सकते हैं। इसके अलावा कांग्रेस भी यह संदेश देना चाहेगी कि उनका नेतृत्व दलित नेता कर रहे हैं और कांग्रेस शासन में उनका ध्यान रखा जाएगा।
पहला, प्रदेश प्रमुख डीके शिवकुमार और पूर्व सीएम सिद्धारमैया के बीच जारी तनातनी पर विराम लग सकता है। विधानसभा चुनाव 2023 में कांग्रेस की सरकार बनने की स्थिति में सीएम उम्मीदवार चुनने में फायदा हो सकता है। हालांकि, खुद खड़गे पहले तीन बार सीएम बनने से चूक गए थे। इसके अलावा कर्नाटक में बड़े कद के नेता की मौजूदगी पार्टी को टिकट बटवारे में मदद कर सकती है।
दरअसल खरगे के कांग्रेस अध्यक्ष बनने से बसपा के वोट्स कांग्रेस में शिफ्ट होने का खतरा मायावती को नजर आ रहा है. 80 साल के खरगे देशभर भ्रमण करते है लेकिन 67 साल की मायावती पार्टी मुख्यालय में कार्यकर्ताओं से मीटिंग करती है. दिल्ली और लखनऊ के आगे की दुनिया उन्हें नजर नहीं आती. ऐसे में खरगे के अध्यक्ष बनने से बसपा के लिए चैलेंज की स्थिती बन गई है.