आर्थिक रूप से कमज़ोर (ईडब्ल्यूएस) वर्ग को परिभाषित करने के केंद्र सरकार के तरीक़े पर सुप्रीम कोर्ट ने आपत्ति जताई है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण के लिए पात्रता निर्धारित करने के लिए ‘आठ लाख रुपए की सालाना आय’ को आधार क्यों और कैसे बनाया गया है?
इसके बाद से EWS आरक्षण का मुद्दा एक बार फिर सुर्ख़ियों में आ गया है. पूरा मामला नेशनल एलिजिबिलिटी एंट्रेंस टेस्ट (नीट) में दाखिले को लेकर केंद्र सरकार की ओर से जुलाई में जारी अधिसूचना से जुड़ा है.
इस मामले की सुनवाई की शुरुआत में ही सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस धनंजय वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने सरकार से कहा कि इस नियम और शर्त का कोई आधार भी है या सरकार ने कहीं से भी उठाकर ये मानदंड शामिल कर दिया है.
कोर्ट ने कहा कि आखिर इसके आधार में कोई सामाजिक, क्षेत्रीय या कोई और सर्वे या डेटा तो होगा? अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी में जो लोग आठ लाख रुपये सालाना से कम आय वर्ग में हैं वो तो सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े हैं, लेकिन संवैधानिक योजनाओं में ओबीसी को सामाजिक और शैक्षिक तौर पर पिछड़ा नहीं माना जाता. ये नीतिगत मामले हैं, जिनमें हम हाथ नहीं डालना चाहते. आपको यानी सरकार को अपनी जिम्मेदारी संभालना चाहिए. हम मुद्दे बता देंगे. कोर्ट ने आदेश दिया कि स्वास्थ्य, समाज कल्याण और कार्मिक मंत्रालय को नोटिस जारी कर उनसे दो हफ्ते में विस्तृत हलफनामा दाखिल करने को कहा है. इसमें उनको ये बताना होगा कि EWS और OBC के लिए NEET परीक्षाओं में अखिल भारतीय स्तर पर आरक्षण कोटे के क्या मानदंड है? यह बताते हुए कि OBC आरक्षण के लिए क्रीमी लेयर के लिए 8 लाख रुपये मानदंड है, OBC और EWS श्रेणियों के लिए समान मानदंड कैसे अपनाया जा सकता है, जबकि EWS में कोई सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ापन नहीं है.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने इसे लेकर कहा कि आपके पास कुछ जनसांख्यिकीय या सामाजिक या सामाजिक-आर्थिक डेटा होना चाहिए. आप पतली हवा से सिर्फ 8 लाख नहीं निकाल सकते. आप 8 लाख रुपये की सीमा लागू करके असमान को समान बना रहे हैं. OBC में 8 लाख से कम आय के लोग सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन से पीड़ित हैं. संवैधानिक योजना के तहत, EWS सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े नहीं हैं. ये नीतिगत मामला है, लेकिन न्यायालय इसकी संवैधानिकता निर्धारित करने के लिए नीतिगत निर्णय पर पहुंचने के लिए अपनाए गए कारणों को जानने का हकदार है. पीठ ने एक समय तो यह भी चेतावनी दी थी कि वह EWS अधिसूचना पर रोक लगा देगा.
सवर्ण गरीबों के लिए लाए गए EWS आरक्षण की न्यायिक पड़ताल अब शुरू हुई है. आर्थिक आधार पर दिए गए आरक्षण को संविधान संशोधन के तत्काल बाद सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाओं को जरिए चुनौती दी गई थी. अभी तक ये मामला (जनहित अभियान बनाम भारत सरकार) सुनवाई के लिए नहीं आया था. लेकिन अब ये मामला टाला नहीं जा सकता.
इसकी वजह मद्रास हाई कोर्ट का एक फैसला है. इस आदेश में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी के बिना मेडिकल एडमिशन (NEET नाम से लोकप्रिय) के ऑल इंडिया कोटा में EWS आरक्षण नहीं दिया जा सकता. कोर्ट के इसी आदेश में ऑल इंडिया कोटा में 27% ओबीसी आरक्षण को मंजूरी दी गई है.
मद्रास हाई कोर्ट के फैसले की वजह से NEET ऑल इंडिया कोटा में EWS आरक्षण पर रोक लग गई है, जिसे अब मद्रास हाई कोर्ट की बड़ी बेंच या सुप्रीम कोर्ट ही हटा सकता है. इस बीच, 27 डॉक्टरों ने केंद्र सरकार की उस अधिसूचना को चुनौती दी है जिसके जरिए ऑल इंडिया कोटा में OBC और EWS आरक्षण लाया गया था.