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मंदिरों का सोना इंसानों के काम : M. K. Stalin सरकार की योजना

मंदिरों का सोना इंसानों के काम : M. K. Stalin सरकार की योजना

मंदिरों के सोने का इस्तेमाल लोगों की भलाई में करने के लिए तमिलनाडु में मुख्यमंत्री एमके स्टालिन की सरकार राज्य के मंदिरों का सोना पिघलाने की योजना लेकर आई है। इन्हें पिघला कर 24 कैरेट के गोल्ड बार्स बनाए जाएँगे। राज्य सरकार का कहना है कि ये वो सोना है, जो मंदिरों के नियंत्रण में है और जिनका उपयोग नहीं हो पा रहा। सबसे पहले तिरुवरकाडु के श्री कुमारीअम्मन मंदिर, समयपुरम के मरियम्मन मंदिर और ईरुक्कनकुडी के मरियम्मन मंदिर पर सरकार की नजर है।

तमिलनाडु की सरकार ने कहा है कि सोना को पिघला कर बिस्किट बनाए जाने के बाद उन्हें राष्ट्रीय बैंकों में डिपॉजिट किया जाएगा और उससे जो रुपए आएँगे, उसका इस्तेमाल ‘स्टेट हिन्दू चैरिटेबल एंड रिलीजियस एंडोमेंट्स (HR & CE)’ विभाग द्वारा मंदिरों के विकास में किया जाएगा। मुख्यमंत्री स्टालिन ने बुधवार (13 अक्टूबर, 2021) को ये योजना लॉन्च की। सरकार का कहना है कि वो श्रद्धालुओं द्वारा दान में दिए गए सिर्फ उन्हीं सोने के आभूषणों को पिघलाएगी, जिनका पिछले 10 वर्षों से इस्तेमाल नहीं हुआ है।

तमिलनाडु सरकार ने कहा है कि मंदिरों के सोने को ‘मोनेटाइज’ करने की योजना 1979 में ही आ गई थी। बताया गया है कि इसके तहत 9 प्रमुख मंदिरों में श्रद्धालुओं द्वारा दान में दिए जाने वाले सोने को पिघलाया जाता है, जिनमें मदुरै का प्राचीन मीनाक्षी सुन्दरीश्वर मंदिर, पलानी का धनदायुथपानी मंदिर, तिरुचेंदूर का श्री सुब्रमण्य स्वामी मंदिर और समापुरम का मरियम्मम मंदिर शामिल है। स्टालिन सरकार ने कहा है कि ये योजना नई नहीं है।

तमिलनाडु सरकार ने मद्रास हाईकोर्ट में एक सुनवाई के दौरान कहा कि पिछले 44 वर्षों से ये योजना चली आ रही है। अब तक मंदिरों में रखे 500 किलो सोने को पिघला कर बैंकों में डिपॉजिट किया गया है और इससे राज्य सरकार को ब्याज के रूप में 11 करोड़ रुपए की कमाई हुई है। सरकार ने अब 2137 किलो सोने को पिघलाने का फैसला लिया है। इसके खिलाफ अदालत में याचिकाएँ दाखिल हुई हैं और कहा गया है कि ये प्रक्रिया पारदर्शी नहीं है।

एक याचिका में कहा गया है कि तमिलनाडु की तथाकथित सेक्युलर सरकार राज्य के 38,000 मंदिरों में रखे गए 2000 किलो से भी अधिक सोने को पिघलाएगी, जिसका मूल्य 10,000 करोड़ रुपए से भी अधिक है। यचिकाओं में कहा गया है कि ये आभूषण मंदिरों के हैं और भक्तों ने इन्हें दान में दिया है, इसीलिए सरकार को इन्हें छूने का कोई हक़ नहीं है। सवाल है कि जब 60 वर्षों से कोई रजिस्टर ही मेंटेन नहीं किया जा रहा तो पता कैसे चलेगा कौन से आभूषणों का उपयोग नहीं हो पा रहा और कौन से 10 वर्ष पुराने हैं?

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