Awaaz India Tv

भारत के संविधान के अनुसार देश का धर्म क्या है!

भारत के संविधान के अनुसार देश का धर्म क्या है!

भारत में हर व्यक्ति को एक ख़ास धर्म स्वीकार करने की स्वतंत्रता मिली हुई है। समानता, अभिव्यक्ति और जीने की स्वतंत्रता के अधिकारों के साथ ही धार्मिक स्वतंत्रता को भी संविधान के मौलिक अधिकार में शामिल किया है।

पिछले कुछ सालों में भारत जैसे धर्म-निरपेक्ष देश के अंदर धर्म को लेकर ज़बरदस्त बहस हुई हैं, ख़ासकर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के 2014 में सत्ता में आने के बाद हिंदुत्व और हिंदू धर्म को लेकर कई सवाल खड़े हुए हैं। साथ ही धर्म परिवर्तन और लव जिहाद जैसे शब्द काफ़ी ज़्यादा चर्चित रहे हैं, ऐसे में यह जानना ज़रूरी है कि आप देश में किस तरह अपने धर्म को चुनने के लिए स्वतंत्र हैं। धार्मिक विविधताओं से भरे भारत में सभी व्यक्ति को स्वतंत्रता मिली हुई है कि वह अपने तरीके से अपने धर्म का अभ्यास या प्रचार प्रसार कर सकता है।

साल 1976 में भारतीय संविधान के 42वें संशोधन के बाद भारत ‘धर्मनिरपेक्ष राज्य’ बना। संविधान का अनुच्छेद 25-28 धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार को सुनिश्चित करता है और भारत को एक धर्म-निरपेक्ष राज्य बताता है।

जानिए क्या है धर्म को लेकरआपकेअधिकार

  • भारत (राष्ट्र) के पास कोई भी अपना आधिकारिक धर्म नहीं है
  • राज्य दो धर्मों के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं कर सकता है
  • अनुच्छेद-25: आप राज्य की सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य और इसके अन्य प्रावधानों के अधीन अपने पसंद के धर्म के उपदेश, अभ्यास और प्रचार करने के लिए स्वतंत्र हैं।
  • अनुच्छेद-26: राज्य की सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन सभी धार्मिक संप्रदाय और पंथ अपने धार्मिक मामलों का स्वयं प्रबंधन करने, धार्मिक संस्थाएं स्थापित करने, क़ानून के अनुसार संपत्ति रखने के लिए स्वतंत्र हैं।
  • अनुच्छेद-27: किसी भी व्यक्ति को अपने धर्म या धार्मिक संस्था को बढ़ावा देने के लिए टैक्स देने पर बाध्य नहीं किया जा सकता है।

चुंकि धर्म एक निजी विषय है इसलिए संविधान के अनुच्छेद-28 में कहा गया है कि राज्य के द्वारा वित्तपोषित शैक्षिक संस्थाओं में किसी विशेष धर्म की शिक्षा नहीं दी जा सकती है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *