प्रख्यात आंबेडकरवादी लेखिका, स्कॉलर, प्रखर चिंतक, विचारक, ज्ञानवंत, प्रोफ़ेसर गेल ऑम्वेट नहीं रहीं। आज सुबह उनका परिनिर्वाण हो गया। वो पिछले कई दिनों से बीमार चल रही थीं। महाराष्ट्र के कासेगांव में गेल ओम्वेट अपने पति डॉ.भारत पाटणकर के साथ रहती थीं।
गेल ओमवेट जी का जाना समाज के लिए बहुत बड़ा नुकसान है। ओमवेट ने भारत में बहुजनों की स्थिति और इतिहास पर शानदार काम किया है। बाबासाहब डॉ आंबेडकर पर उनकी किताबों ने बहुजन आंदोलन को धार दी, साथ ही वो महिला अधिकारों को लेकर भी लगातार सक्रिय रहीं।
अमेरिका के मिनीपोलिस में जन्मीं गेल ओमवेट हमेशा के लिए भारतीय होकर रह गईं। डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के विचारों को पढ़ने के लिए वो एलिनार झेलियट के साथ भारत आयी थी. दोनों ने इस विचार हमेशा के लिए आत्मसात क्या। बाबासाहब के विचारों से प्रभावित होकर गेल ओमवेट ने अपना समूचा जीवन मानवता के लिए समर्पित किया।
भारत में जाति विरोधी आंदोलन, दलित अधिकार, महिला अधिकार और पर्यावरण से जुड़े मसलों पर गेल ओमवेट ने जिंदगी भर शिद्दत से काम किया। वो जितनी बेहतर स्कॉलर थीं, उतनी ही बेहतर इंसान भी थीं। पढ़ने की अपार क्षमता उनमें थी। आंदोलन के लिए देशभर भ्रमण किया। उन्होंने विभिन्न आंदोलनों में अग्रणी भूमिका निभाई। उन्होंने क्रांतिवीरांगना इंदुताई की पहल पर पश्चिमी महाराष्ट्र में परित्यक्त महिलाओं के आंदोलन का नेतृत्व किया।
डॉ.गेल ओमवेट अमेरिका जैसे प्रगतशील राष्ट्र में जन्मी। हालांकि, उन्होंने भारत में रहने का फैसला किया, खासकर महाराष्ट्र मे, महिला मुक्ति आंदोलनों का अध्ययन करते हुए उनकी मुलाकात इंदुताई पाटनकर से हुई। आंदोलन में पूर्णकालिक काम करते हुए, डॉ.भरत पाटनकर से परिचय होने के बाद, उन्होंने उनसे शादी करने का फैसला किया। उन्होंने अपनी अमेरिकी नागरिकता त्याग दी और भारतीय नागरिकता हासिल की । डॉ. गेल और डॉ. भारत ने कई सामाजिक लड़ाइयाँ लड़ी।
डॉ.गेल अपने छात्र जीवन से ही अमेरिका में विभिन्न आंदोलनों में सक्रिय रही हैं। अमेरिका की साम्राज्यवादी युद्ध जैसी प्रवृत्तियों के खिलाफ खड़े होने वाले युवा आंदोलन में वह सबसे आगे थीं। वह अमेरिका में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी करने के बाद भारत आई। विभिन्न आंदोलनों का अध्ययन करते हुए महाराष्ट्र पहुंची । उन्होंने महात्मा फुले के संघर्ष को अपनाया।
महात्मा फुले के आंदोलन पर उन्होंने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले में ‘पश्चिमी भारत में गैर-ब्राह्मण आंदोलन’ पर अपना पीएचडी शोध प्रबंध प्रस्तुत किया। उस विषय में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। उनसे पहले, भारत में किसी ने भी महात्मा फुले आंदोलन का इतने विस्तृत तरीके से अध्ययन नहीं किया था और पूरे महाराष्ट्र की यात्रा नहीं की थी। उनका शोध प्रबंध न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में विद्वानों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। उनकी पुस्तक ने महात्मा फुले के आंदोलन फिर से अधोरेखित किया। उनकी इस किताब के बाद मान्यवर कांशीराम भी उनसे प्रभावित हुए।
उन्होंने निस्वास, उड़ीसा में डॉ.अम्बेडकर अध्ययन के प्रोफेसर, नॉर्डिक में एशियाई अतिथि प्रोफेसर, एशियाई अध्ययन संस्थान, कोपेनहेगन, नेहरू मेमोरियल संग्रहालय और पुस्तकालय, नई दिल्ली, शिमला संस्थान में काम किया है। वह FAO, UNUP, NOVIB की सलाहकार थीं। उन्होंने आईसीएसएसआर की ओर से ‘भक्ति’ पर शोध किया है।
डॉ गेल ने 25 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित की हैं, विशेष रूप से ‘कोलनियल सोसाइटी में सांस्कृतिक विद्रोह – पश्चिमी भारत में गैर-ब्राह्मण आंदोलन’, ‘सीकिंग बेगमपुरा’, ‘भारत में बौद्ध धर्म’, ‘डॉ.बाबासाहेब अम्बेडकर’, ‘महात्मा जोतिबा फुले’, ‘दलित और लोकतांत्रिक क्रांति’, ‘अंडरस्टैंडिंग कास्ट’, ‘वी विल स्मैश द प्रिज़न’, ‘न्यू सोशल मोमेंट इन इंडिया’ ऐसी उनकी ग्रंथसंपदा रही।
भारत में दलितों के उत्थान से जुड़े कार्यक्रमों में अक्सर गेल ओमवेट जी दिखाई देती थीं। मान्यवर कांशीराम साहब द्वारा शुरू किए गए बामसेफ के एक कार्यक्रम में गेल ओमवेट ने बहुजनों के सशक्तिकरण पर जबरदस्त संबोधन किया था।