ऊत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनाव के बाद अब विधान परिषद के चुनाव को लेकर सपा-भाजपा ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। बहुजन समाज पार्टी ने इन चुनावों में अपने प्रत्याशी नहीं उतारने का फैसला लिया है. जैसे ही बसपा की राजनीती कमजोर हुई वैसे ही दलितों का राजनैतिक महत्त्व कमजोर होते जा रहा है. विधान परिषद के चुनाव में बीजेपी ने जहां सबसे ज़्यादा उम्मीदवार ठाकुर समुदाय से खड़े किये है तो वहीँ समाजवादी पार्टी ने इस बार यादवों पर दाव खेला है. दोनों ही पार्टियों ने इस बार चुनाव में दलित समुदाय के लोगों को ऑउट कर दिया है और ठाकुर-यादव पर सियासी दाव खेला है.
बीजेपी ने 36 विधान परिषद की सीटों के लिए अपने उम्मीदवार मैदान में उतार दिए है. पार्टी ने इस बार समाजवादी पार्टी और कांग्रेस से आए दलबदलू नेताओ पर भरोसा जताया है और उनपर सियासी दांव खेला है. बीजेपी ने जातीय समीकरण के हिसाब से भी अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे है. इसमें सबसे ज़्यादा उम्मीदवार ठाकुर और पिछड़ा वर्ग से है. पार्टी की ओर से जारी की गई लिस्ट के हिसाब से 16 ठाकुर, 11 पिछड़े, 5 ब्राह्मण, 3 वैश्य और 1 कायस्थ को एमएलसी का टिकट दिया है.
समाजवादी पार्टी 36 एमएलसी सीटों में से 34 सीटों पर खुद चुनाव लड़ रही हैं,जबकि 2 सीटे सहयोगी दल आरएलडी के लिए छोड़ी है. समाजवादी पार्टी ने 19 उम्मीदवार यादव समुदाय से, 4 अन्य ओबीसी को उम्मीदवार बनाया है. इसके अलावा पार्टी ने 4 मुस्लिम, 3 ठाकुर, 3 ब्राह्मण और 1 जैन समुदाय के नेता को एमएलसी का टिकट दिया हैं.
अपने-आप को सभी वर्गों की पार्टी कहनेवाली समाजवादी पार्टी फिर से अपने पुराने स्वभाव पर लौट आई है वही बीजेपी ने ब्राह्मणवाद अर्थात सवर्णों के तुष्टिकरण की अपनी पुराणी राजनीती फिर से शुरू की है. आम आदमी पार्टी ने भी पंजाब में किसी भी बहुजन समाज के व्यक्ति को टिकट न देते हुए सभी 4 सीटों पर सवर्ण प्रत्याशी उतारे है. जबतक मायावती बहुजनवाद के आधार पर बसपा को मजबूत नहीं करेंगी तबतक बहुजन समाज के लोग हमेशा सवर्णों से पिछड़ते रहेंगे.