Awaaz India Tv

बौद्ध बनकर क्या मिला? डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के धर्मांतर से क्या क्रांति हुई !

बौद्ध बनकर क्या मिला? डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के धर्मांतर से क्या क्रांति हुई !

Dilip Mandal

जो दलित हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध बन गए, उनकी शैक्षणिक स्थिति, शहरीकरण, सेक्स रेशियो और काम करने वालों की संख्या न सिर्फ़ हिंदू दलितों से बल्कि तमाम हिंदुओं की तुलना में बेहतर हो गयी। #Census_Data 2011 से ये बातें देश के सामने आईं। बौद्धों, जिनमें ज़्यादातर धर्म परिवर्तन कर बौद्ध बने, की साक्षरता 81.29% हैं। हिंदुओं की साक्षरता सिर्फ 73.27% है।

भारत में अनुसूचित जाति की साक्षरता दर सिर्फ 66% है। यानी बौद्ध परिवार अपने बच्चे-बच्चियों की शिक्षा पर ज़्यादा ध्यान देते हैं और उस पर निवेश करते हैं।उत्तर प्रदेश में 68.59% बौद्ध साक्षर हैं। उत्तर प्रदेश का की औसत साक्षरता 67.68% है। यूपी में हिंदू दलितों की साक्षरता सिर्फ 60.88% है। यानी बौद्ध बन कर दलित न सिर्फ़ हिंदू दलितों से बल्कि बाक़ी हिंदुओं से भी आगे निकल गए। छत्तीसगढ़ में 87.34%, महाराष्ट्र में 83.17% और झारखंड में 80.41% बौद्ध साक्षर हैं।

महिला साक्षरता की बात करें तो बौद्ध महिलाओं की साक्षरता दर 74.04% है जो भारतीय औसत 64.63% से बहुत ज़्यादा है। यानी बौद्ध परिवार लड़कियों की शिक्षक ज़्यादा ध्यान देते हैं। हिंदू महिलाओं की साक्षरता दर सिर्फ 56% है। सिर्फ यूपी एक ऐसा राज्य है जहां बौद्ध महिला शिक्षा में हिंदुओं से पीछे हैं। बौद्ध परिवार लड़कियों को जन्म लेने और ज़िंदा रहने का ज़्यादा मौक़ा देते हैं। बौद्धों में प्रति 1000 पुरुषों पर 965 महिलाएँ हैं। भारत का आँकड़ा 943 है। हिंदुओं का जेंडर रेशियो सिर्फ 939 है।

बौद्ध अपना परिवार हिंदुओं की तुलना में छोटा रखते हैं। भारत में 43% बौद्ध शहरों में रहते हैं। भारतीय एवरेज 31% है। महाराष्ट्र में तो हर दूसरा बौद्ध शहरों में रहता है। लेकिन जो बौद्ध गाँवों में रह गए, उनकी बड़ी संख्या खेत मज़दूर के तौर पर काम करती है। बौद्ध अपनी आबादी के अनुपात में राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में सबसे ज़्यादा योगदान करने वाले समुदायों में हैं। उनका work participation ratio 43.15% है जो न सिर्फ़ बाक़ी दलितों से (40.87%) से बल्कि राष्ट्रीय औसत (39.79%) से भी ज़्यादा है।

बौद्ध मेहनतकश हैं। माँगकर नहीं खाते।ये तो हो गई सरकारी जनगणना के आँकड़ों की बात। अब मेरी व्याख्या: हिंदू दलित का मन मरा हुआ होता है। वह भाग्यवाद और पुनर्जन्म में विश्वास करता है। अपनी बदहाली को पूर्व जन्मों का फल मानकर संतोष कर लेता है। ये उसके बुरे हाल में होने की बड़ी वजह है। बौद्ध बनने से उसका मन आज़ाद हो जाता है। तरक़्क़ी करने की इच्छा जग जाती है।

वरिष्ठ पत्रकार, चिंतक, लेखक, अभ्यासक दिलीप मंडल की फेसबुक पोस्ट से साभार

Related Articles

2 Comments

Avarage Rating:
  • 0 / 10
  • Rajiv , October 14, 2021 @ 9:23 pm

    Righ

  • mehar Prabhulal , October 16, 2021 @ 6:13 pm

    बौद्ध धम्म करना ही इंसान को इंसान बना कर मानवता का संदेश देने के काबिल बनाता है,जीवन भर इंसानियत से जीना सीखा देता हैं।

    प्रभुदयाल बौद्ध
    समता सैनिक दल जिला अध्यक्ष झालावाड़ राज।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *