हर साल एक सवाल सामने आता है कि संख्या गणना में यह कौन-सी बुद्ध जयंती है? कुछ लोग हर साल यह सवाल पूछ बैठते हैं।नुक्ते की चार बातें याद रखने रखने वाली हैं, कभी गणना में भ्रम नहीं होगा।पहली बात, कि सन् १९५६ में भगवान के परिनिर्वाण के २५०० साल पूरे हुए थे, जिसे पूरे विश्व में बड़े धूमधाम से मनाया गया था और उसी वर्ष भारत सरकार द्वारा कुशीनगर में महापरिनिर्वाण स्थली का पुनरुद्धार तथा लोकार्पण किया गया था।
राष्ट्रीय स्तर पर बुद्ध जयंती मनायी गयी थी।इस सब की योजना सन् १९५४ में बन गयी थी जिसमें बोधिसत्व बाबा साहेब की बड़ी भूमिका थी।सन् १९५४ में छठी संगीति बर्मा में आयोजित हुई थी, जिसमें बोधिसत्व बाबा साहेब आमंत्रित अतिथि थे। यह संगीति दो साल चली थी।
बर्मा प्रवास के दौरान बोधिसत्व बाबा साहेब डा. बी. आर. अम्बेडकर ने श्रुत परम्परा से चली आ रही भगवान बुद्ध की एक भविष्यवाणी सुनी- मेरे महापरिनिर्वाण के २५०० वर्षों बाद जम्बुद्वीप में एक उपासक के द्वारा धम्म का पुनरोदय किया जाएगा…जम्बुद्वीप अर्थात भारत। यह भविष्यवाणी बर्मा में बच्चे-बच्चे को मालूम है, भिक्खु संघ के पास तो सदियों से संरक्षित ही है।यह सुनते ही बोधिसत्व बाबा साहेब उत्साहित हो गये। धम्म के मर्मज्ञों के बीच वहीं बैठ कर उन्होंने गणना की तथा पाया कि भगवान के परिनिर्वाण के २५०० वर्ष सन् १९५६ में पूरे हो रहे हैं।वहीं बर्मा में ‘वर्ल्ड इंस्टिट्यूट ऑफ बुद्धिस्ट कल्चर’ के डायरेक्टर डा. आर. एल. सोनी के कार्यालय में १२ दिसम्बर’१९५४ को बाबा साहेब ने उत्साहित कण्ठ से घोषणा की:”भगवान बुद्ध की २५००वीं जयंती सन् १९५६ में पड़ रही है। मैंने धम्मदीक्षा का पक्का निश्चय किया है।”उसी घोषणा की परिणति है- १४ अक्टूबर’१९५६ को अशोक विजयदशमी के दिन नागपुर की दीक्षाभूमि पर महान सामूहिक धम्मदीक्षा।
इस प्रकार, बुद्ध जयंती की संख्या की गणना का यह पहला आधार कि सन् १९५६ में भगवान के महापरिनिर्वाण के २५०० साल पूरे हुए थे।दूसरा बिन्दु कि बुद्ध जयंती को त्रिविधपावनी बुद्ध पूर्णिमा कहते हैं। त्रिविधपावनी का तात्पर्य कि वैशाख की पूर्णिमा के दिन ईसा पूर्व सन् ५६३ में भगवान का जन्म है। तीसरा बिन्दु कि जन्म के २९वें वर्ष में महाभिनिष्क्रमण है यानी गृहत्याग। और गृहत्याग के छठे वर्ष में बोधिलाभ है। उस दिन भी वैशाख की पूर्णिमा थी।इस प्रकार ५६३ में से ३५ (२९+६=३५) घटाने पर बोधिलाभ का वर्ष निकलता है- ५२८ ईसा पूर्व।
चौथा बिन्दु कि ८० वर्ष की आयु में भगवान महापरिनिर्वाण को उपलब्ध हुए। यानी ५६३ में से ८० घटाने पर महापरिनिर्वाण का वर्ष निकलता है- ४८३ ईसा पूर्व।किसी भी व्यक्तिव की जयंती मनाने की परम्परा प्राय: काया की शान्ति के बाद शुरू होती है।चूँकि भगवान का जन्म, बोधिलाभ तथा महापरिनिर्वाण तीनों घटनाएं वैशाख की पूर्णिमा पर घटित हुईं, इसीलिए इसे त्रिविधपावनी बुद्ध पूर्णिमा कहते हैं, इस नाते २५००वीं जयंती सन् १९५६ में घटित होने की गणना को आधार मानकर बुद्ध जयंती की संख्या निकाला जाए तो कभी भ्रम नहीं होगा।अब तक के ज्ञात इतिहास में भगवान बुद्ध के जीवन की तीन तिथियों के एक ही दिन घटित होने जैसा दुनिया में दूसरा उदाहरण नहीं है। भगवान अनुपम हैं, उनकी किसी से उपमा नहीं दी जा सकती।
आचार्य राजेश चंद्रा